
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने 5 सितंबर को शंकर दिनकर काने के शताब्दी समारोह के अवसर पर एक कार्यक्रम में कहा कि एक व्यक्ति की उत्कृष्टता को देवता मानने का निर्णय समाज करता है, खुद व्यक्ति नहीं. शंकर दिनकर ने 1971 तक मणिपुर में बच्चों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और छात्रों को महाराष्ट्र लाकर उनके ठहरने की व्यवस्था की.
भागवत ने काने के कार्य को याद करते हुए कहा, "हमें अपनी ज़िंदगी में जितना हो सके उतना अच्छा काम करने की कोशिश करनी चाहिए. कोई यह नहीं कह रहा है कि हमें चमकना या अलग दिखना नहीं चाहिए. हर कोई अपने काम के माध्यम से आदरणीय बन सकता है, लेकिन हम उस स्तर पर पहुँचे हैं या नहीं, इसका निर्धारण दूसरों द्वारा होगा, खुद द्वारा नहीं." उन्होंने यह भी कहा, "हमें यह नहीं घोषित करना चाहिए कि हम भगवान बन गए हैं."
मणिपुर की स्थिति का उल्लेख करते हुए आरएसएस प्रमुख ने चिंता व्यक्त की. भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक मणिपुर में न तो वहां से निकले हैं और न ही बेकार बैठे हैं. इसके विपरीत, वे दोनों समूहों के बीच तनाव को कम करने और राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, "वहां सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है. स्थानीय लोग अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. व्यापार या सामाजिक कार्य के लिए गए लोगों के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ऐसी परिस्थितियों में भी, आरएसएस स्वयंसेवक दृढ़ता से तैनात हैं, दोनों पक्षों की सेवा कर रहे हैं और स्थिति को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं."
मोहन भागवत के इस बयान ने समाज में व्यक्तिगत उत्कृष्टता और सामाजिक जिम्मेदारी की ओर एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है. उनके शब्द यह स्पष्ट करते हैं कि एक व्यक्ति की महानता का मूल्यांकन समाज और दूसरों के दृष्टिकोण से किया जाता है, न कि स्वयं के द्वारा.