30 अगस्त- राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस विशेष: कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के दौरान भारत के अंदर के माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइसेस पर संकट के गहरे बादल छा गए. वहीं भारत के बाहर अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर छिड़ गई. तमाम निवेशक चीन की कंपनियों से अलग होकर भारत में ज्वाइंट वेंचर के अवसरों को तलाशने लगीं. इसी बीच भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज का ऐलान कर दिया. देखते ही देखते एमएसएमई पर काले बादल छंटने लगे और इस सेक्टर में ऐसा हुआ जो इतिहास में कभी नहीं हुआ था. केंद्र सरकार ने इस सेक्टर से जुड़े नियम-कानूनों में कई बदलाव किए और एक बार फिर इस सेक्टर ने रफ्तार पकड़ ली.
30 अगस्त को भारत लघु उद्योग दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर लघु उद्योग के साथ-साथ मझोले और माइक्रो उद्योगों की बात करना तो बनता है. अगर आने वाले समय में इन उद्योगों के क्षेत्र में संभावनाओं की बात करें तो यह वो सेक्टर है, जिसके दम पर भारत अपने पड़ोसी देश चीन को मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में पछाड़ सकता है. दरअसल आज बहुत से देशों में चीन के प्रति नकारात्मक भाव आया है. इस वजह से कई देशों की कंपनियां भारत की तरफ देख रही हैं. हाल में कई ऑर्डर भी आये हैं. इस परिप्रेक्ष्य में अगर ज्वाइंट वेंचर और एफडीआई की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं. आने वाले समय में इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट, फार्मास्युटिकल्स, फूड प्रोसेसिंग, खिलौने, आदि में रोजगार के तमाम अवसर बढ़ने की संभावना है.
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फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो एंड स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइसेस (FISME) के सेक्रेटरी जनरल अनिल भारद्वाज ने हाल ही में प्रसार भारती से बातचीत में कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में एमएसएमई ड्राइविंग फोर्स बनेंगी.
उन्होंने कहा, "एमएसएमई भारत को आत्मनिर्भर बनाने में एमएसएमई एक ड्राइविंग फोर्स की तरह काम करेंगी. भारत के कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा एमएसएमई से आता है. भारत के कुल निर्यात का 50 प्रतिशत एमएसएमई से आता है. सच पूछिए तो एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था का स्तम्भ हैं. नीतियों में बदलाव के साथ ऐसे उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, जिनका उत्पादन भारी मात्रा में यहां होता है."
एमएसएमई की नई परिभाषा का क्या होगा प्रभाव?
इस पर श्री भारद्वाज ने कहा कि 14 साल बाद एमएसएमई की परिभाषा में परिवर्तन एक बड़ा कदम है. अब बड़ी एमएसएमई अपना उत्पादन बढ़ा कर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में आगे आयेंगी. बाहर के देशों में बड़ी तादाद में उत्पाद एक्सपोर्ट किए जा सकेंगे. इससे छोटी से छोटी इंडस्ट्री के लिए वैश्विक स्तर के द्वार खुलेंगे. जर्मनी, दक्षिण कोरिया और ताइवान को ले लीजिए, वहां पर मीडियम साइज के उद्योग ही उनकी अर्थव्यवस्था को ड्राइव करते हैं. उनकी सरकारों ने छोटे उद्योगों को ग्लोबल मार्केट में अपने उत्पाद बेचने का अवसर दिया, जिसकी वजह से वे बाज़ार पर कब्जा जमाने में सफल हुए. इसी तर्ज पर अब भारत के छोटे उद्योगों का भी दायरा बढ़ेगा.
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मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कितना बढ़ेगा एमएसएमई शेयर?
अनिल भारद्वाज ने कहा, "नई परिभाषा के साथ एमएसएमई में नई टेक्नोलॉजी आयेगी, वित्तीय पोषण बढ़ेगा साथ ही इनोवेशन भी होगा. लघु उद्योग में सकारात्मक परिवर्तन दिखेंगे, लेकिन मीडियम एंटरप्राइसेस में ज्वाइंट वेंचर की अपार संभावनाएं हैं. मेक इन इंडिया की बात करें, तो जो चीजें बाहर बनती हैं, हम नहीं बना पाते हैं, तो उसके लिए टेक्नोलॉजी चाहिए. टेक्नोलॉजी के लिए टेक्नोलॉजी पार्टनर चाहिए और उसके लिए ज्वाइंट वेंचर चाहिए. ज्वाइंट वेंचर को बढ़ावा मिलेगा, तो मैन्युफैक्चरिंग अपने आप बढ़ेगी."
कैसे दूर होगी एमएसएमई को मिलने वाले फंड की परेशानी?
उन्होंने कहा कि बैंक एक तरह से पब्लिक मनी की कस्टोडियन है, वो जनता का पैसा ही उद्योगों पर लगाते हैं. बैंक को लोन देते समय यह ध्यान रखना होता है कि जो पैसा हम दे रहे हैं, वो डूब तो नहीं जाएगा. क्योंकि जिससे पैसा लिया है, उसको कैसे लौटाएंगे. ऐसे में क्रेडिट गारंटी फंड कारगर साबित होता है. अभी तक 2 करोड़ रुपए तक के फंड एमएसएमई ले सकती थीं. यह एक सफल फंड रहा है. अब इसमें 2 लाख करोड़ रुपए की फंडिंग होगी. इसका लाभ केवल उनको मिलेगा, जिन उद्योगों ने पहले ही कोई न कोई लोन ले रखा है और आउटस्टैंडिंग लोन का 20 प्रतिशत उनको मिल रहा है.
कुल मिलाकर देखें तो एमएसएमई के सेक्टर के बढ़ते कदम रोजगार के लिए तेज़ी से दरवाजे खोल रहे हैं. खास बात यह है कि इस क्षेत्र में निवेशों की राह को आसान बनाने के लिए केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं. लैंड बैंक पोर्टल इसका ताज़ा उदाहरण है, जिसे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को लॉन्च किया. इस पोर्टल पर उन जमीनों का डाटाबेस है जहां पर उद्योग लगाए जा सकते हैं. साथ ही उन जमीनों के पास कच्चे माल की उपलब्धता, ट्रांसपोर्ट आदि की व्यवस्था के बारे में भी बताया गया है.
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एमएसएमई को उबरने में अभी कितना समय लगेगा?
इस सवाल पर फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) महानिदेशक, अजय सहाय ने कहा कि डिमांड में कमी आने की वजह से कई एमएसएमई अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हैं, क्योंकि लॉकडाउन के चलते उत्पादन बंद हो गया था. अब देश लगभग अनलॉक हो चुका है। धीरे-धीरे सब कुछ खुल रहा है. लिहाज़ा डिमांड भी धीरे-धीरे बढ़ने लगेगी. दूसरी बात सरकार ने जो निधि बंद पड़ीं एमएसएमई के लिए आवंटित किया है, जैसे ही उन तक पैसा पहुंचेगा, वैसे ही उत्पादन भी शुरू हो जाएगा. और हां केवल खुलने से समस्या का समाधान नहीं होगा, कई उद्योगों को कच्चा माल खरीदने के लिए पैसे की जरूरत होगी, इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जरूरत होगी.
पहले की स्थिति में आज की स्थिति में क्या फर्क है?
अजय सहाय ने कहा कि पहले एमएसएमई के लिए सबसे बड़ी चुनौती फंड की उपलब्धता और उसकी कीमत थी. कई एमएसएमई इसी लिए लोन लेने से डरती थीं, कि कहीं वो उसका ब्याज भी चुका पायेंगी या नहीं. भारत सरकार ने जिस पैकेज का ऐलान किया है और आरबीआई ने जिस तरह से लोन की ब्याज दरों को कम किया है. इससे एमएसएमई को बड़ी राहत मिलेगी और आसानी से फंड मिल सकेगा.