कारगिल: भारतीय सैनिक ने पाकिस्तानी जवान को दिलाया वीरता का सर्वोच्च सम्मान, जानें कैप्टन शेर खान और ब्रिगेडियर बाजवा की कहानी

Nishan-e-Haider: युद्ध के मैदान में दुश्मन सैनिक भी एक दूसरे की बहादुरी और हिम्मत के कायल हो जाते हैं. ऐसी ही एक कहानी है 1999 के कारगिल युद्ध (India-Pakistan Kargil War) की, जो भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था. इस कहानी के हीरो हैं पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) के कैप्टन करनल शेर खान (Captain Karnal Sher Khan) और भारतीय सेना (Indian Army) के एक ब्रिगेडियर एम.पी.एस. बाजवा (Brigadier MPS Bajwa).

कैप्टन शेर खान इस लड़ाई में मारे गए थे. शुरुआत में तो पाकिस्तान ने यह मानने से ही इनकार कर दिया था कि उनके सैनिक इस लड़ाई में शामिल थे और उन्होंने खान का शव लेने से भी मना कर दिया. लेकिन बाद में न केवल उन्होंने शव स्वीकार किया, बल्कि कैप्टन खान को पाकिस्तान के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'निशान-ए-हैदर' से भी सम्मानित किया. यह सब मुमकिन हुआ भारतीय सेना के अफसर, ब्रिगेडियर एम.पी.एस. बाजवा की वजह से.

ब्रिगेडियर बाजवा, कैप्टन खान की बहादुरी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनकी तारीफ में एक नोट लिखा और शव पाकिस्तान को सौंपते समय उसे खान की जेब में रख दिया. इसी नोट की वजह से कैप्टन खान को उनके देश में पहचान और सम्मान मिला.

टाइगर हिल की लड़ाई

यह घटना रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण टाइगर हिल की लड़ाई के दौरान हुई. ब्रिगेडियर बाजवा (अब रिटायर्ड) उस समय 192 माउंटेन ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे. उन्होंने द प्रिंट को बताया कि टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने की ज़िम्मेदारी 18 ग्रेनेडियर्स और 8 सिख रेजिमेंट को दी गई थी.

4 जुलाई 1999 को, भारतीय सैनिकों ने टाइगर हिल की चोटी पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन लड़ाई अभी भी जारी थी. ब्रिगेडियर बाजवा को अंदेशा था कि पाकिस्तानी सेना पलटवार कर सकती है.

5 जुलाई की सुबह, पाकिस्तानी सैनिकों ने दो बार जवाबी हमला किया. दूसरा हमला बहुत भीषण था, जिसका नेतृत्व दो पाकिस्तानी अफसर कर रहे थे - कैप्टन करनल शेर खान और मेजर इक़बाल. इस हमले में भारत ने अपने कई जवान खो दिए.

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पाकिस्तानी सेना के कैप्टन शेर खान का शव

कैप्टन खान की दिलेरी

ब्रिगेडियर बाजवा ने बताया कि हालात बहुत मुश्किल हो गए थे. तभी उन्हें फॉरवर्ड पोस्ट पर तैनात सिपाही सतपाल सिंह से पता चला कि कैप्टन खान अपने बचे हुए सैनिकों को लगातार लड़ने के लिए जोश दिला रहे थे. ब्रिगेडियर बाजवा समझ गए कि इस पाकिस्तानी अफसर को रोकना बहुत ज़रूरी है.

इसके बाद, सिपाही सतपाल सिंह और दो अन्य सैनिकों ने कैप्टन खान को महज़ 10 गज की दूरी से मार गिराया. उनके गिरते ही पाकिस्तानी हमला कमजोर पड़ गया और टाइगर हिल पर भारत की जीत हुई.

लड़ाई खत्म होने के बाद, भारतीय सेना ने दुश्मन के 30 सैनिकों को दफनाया. ब्रिगेडियर बाजवा ने कैप्टन खान का शव नीचे मंगवाया. तलाशी लेने पर उनकी जेब से उर्दू में लिखी उनकी पत्नी की चिट्ठियाँ मिलीं. ब्रिगेडियर बाजवा ने कहा, "कैप्टन ने वाकई बहुत बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी."

दुश्मन के लिए सम्मान

शव को दिल्ली भेजने से पहले, ब्रिगेडियर बाजवा ने अपने सीनियर अफसर को कैप्टन खान की बहादुरी के बारे में बताया. उन्होंने खान की तारीफ में एक छोटा सा नोट लिखने की इच्छा जताई, ताकि उनके देश में उन्हें वह सम्मान मिल सके जिसके वे हक़दार थे.

कागज़ के एक टुकड़े पर हाथ से लिखा गया, "कैप्टन खान बहुत बहादुरी से लड़े और उन्हें उनका हक़ मिलना चाहिए." यह नोट उनकी जेब में रख दिया गया.

शुरुआत में पाकिस्तान ने यह कहते हुए शव लेने से इनकार कर दिया कि उनका कोई सैनिक वहां नहीं लड़ा. लेकिन बाद में जब उन्होंने शव स्वीकार किया, तो उन्हें वह नोट भी मिला. यह जानकर खुशी हुई कि कैप्टन खान को 'निशान-ए-हैदर' से सम्मानित किया गया. बाद में कैप्टन खान के पिता ने भारतीय सेना को धन्यवाद देते हुए एक पत्र भी लिखा.