शरण कानून का ‘गलत इस्तेमाल’ रोकना चाहते हैं जर्मन गृह मंत्री
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी के गृह मंत्री अलेक्जांडर दोबरिंट ने कहा कि प्रवासन को लेकर उनकी “नीति बहुत कठोर है” और उन्होंने शुरुआत से ही जरूरी कदम उठाए हैं. क्या इससे धुर-दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की लोकप्रियता और सफलता पर कोई असर होगा?जर्मनी के गृह मंत्री अलेक्जांडर दोबरिंट ने डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि जब उन्होंने पद संभालने के बाद सख्त प्रवासन नीतियों की घोषणा की थी, तो कोई बड़ा वादा नहीं किया था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरी नीति बहुत कठोर है और इसे ठीक वैसे ही समझा गया है. हमने शुरुआत से ही उन कदमों को उठाया जो जरूरी थे, ताकि सीमा नियंत्रण कड़ा रहे. लोगों को वापस लौटाया गया और परिवारों के दोबारा मिलने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी.”

दोबरिंट सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल रूढ़िवादी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) पार्टी से आते हैं. उनका मानना है कि इन कदमों से जर्मनी में शरण के शुरुआती आवेदनों की संख्या में 60 फीसदी की कमी आई है. उनके अनुसार, यह इस बात का ‘स्पष्ट सबूत' है कि अवैध प्रवासन की दर में काफी कमी आ रही है.

अनियमित या बिना दस्तावेज वाले प्रवासन का मतलब उस स्थिति से है जब लोग सही दस्तावेजों के बिना सीमाएं पार करके किसी देश में रहने लगते हैं. कई आलोचक "अवैध प्रवासन” शब्द को अमानवीय और गुमराह करने वाला बताते हैं.

प्रवासन का मुद्दा उठाकर बढ़ाया जनाधार

गृह मंत्री दोबरिंट ने आगे कहा कि प्रवासन का मुद्दा लंबे समय से कट्टरपंथी राजनीतिक दलों के लिए भावनाएं भड़काने और समर्थन जुटाने का सबसे बड़ा कारण रहा है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रवासन के मुद्दे पर राजनीतिक सोच बदल चुकी है. हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि "जब प्रवासन के मुद्दे को लेकर राजनीति की दिशा बदल रही होती है, तो उसे समझने में समय लगता है. इस बदलाव को व्यक्तिगत और भावनात्मक स्तर पर अनुभव करने में भी देरी होती है.”

जर्मनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी ‘अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' (एएफडी) कुछ हद तक दक्षिणपंथी कट्टरपंथी है. यह चुनावों में लगातार बढ़त बना रही है. भले ही, सरकार की नीति प्रवासन को लेकर पूरी तरह बदल रही है. फिलहाल, जर्मनी की संघीय सरकार में कंजर्वेटिव क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू), क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) और सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) शामिल हैं.

इस बीच, प्रवासन विशेषज्ञों का मानना है कि शरण चाहने वालों की संख्या में गिरावट आने का कारण सिर्फ जर्मन सीमा पर सख्ती बढ़ाना नहीं है, बल्कि इसके अन्य कारण भी हैं. बिरगिट ग्लोरियस, केमनित्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवासन पर शोध कर रही हैं. उन्होंने जर्मन पब्लिक ब्रॉडकास्टर ‘टागेसशाउ' को बताया कि सीरिया में गृह युद्ध खत्म होने के साथ-साथ ग्रीस से लेकर ऑस्ट्रिया तक बाल्कन रूट पर सख्त नियंत्रण की वजह से भी संख्या में कमी आई है.

जर्मनी में शरण का अधिकार बना रहेगा

गृह मंत्री दोबरिंट ने यह भी इशारा किया कि वह शरण के व्यक्तिगत अधिकार पर रोक नहीं लगाएंगे. उन्होंने इंटरव्यू में कहा, "हमारे पास शरण का व्यक्तिगत अधिकार है. मैं इस पर सवाल नहीं उठाता, लेकिन मैं इस अधिकार के गलत इस्तेमाल पर सवाल जरूर उठाता हूं. हमें इसके खिलाफ अपनी पूरी क्षमता से लड़ना होगा.”

दोबरिंट ने कहा कि वे यह भी चाहते हैं कि प्रवासन की गति को कम करने और यूरोपीय संघ के सभी देशों में प्रवासियों को समान रूप से भेजने के लिए ईयू स्तर पर ज्यादा कार्रवाई की जाए. अगले साल ईयू माइग्रेशन पैक्ट लागू होने वाला है. इसका एक बड़ा लक्ष्य यह है कि शरणार्थियों को यूरोपीय देशों में ज्यादा बराबरी से बांटा जाए. जर्मनी चाहता है कि जिन देशों में शरणार्थी सबसे पहले पहुंचते हैं, वे उन्हें ठीक तरह से रखें और उन्हें आगे दूसरे देशों में न जाने दें.

दोबरिंट ने डीडब्ल्यू को बताया, "शरण चाहने वाले लोगों को उन देशों में वापस भेजने की प्रक्रिया अक्सर जटिल होती है, जहां वे पहली बार पहुंचते हैं. इस चुनौती को दूर करने के लिए आवश्यक सुधार किए जाने चाहिए ताकि यह प्रक्रिया संभव हो सके.”

अफ्रीका में ‘रिटर्न हब' बनाने की योजना

ईयू के दूसरे सदस्य देशों के साथ मिलकर, जर्मनी के गृह मंत्री अफ्रीका में तथाकथित ‘रिटर्न हब' (वापसी केंद्र) बनाने के लिए एक सहयोगी देश की तलाश करना चाहते हैं. इन केंद्रों में उन शरणार्थियों को वापस भेजा जा सकेगा जिनके आवेदन अस्वीकृत हो गए हैं. भले ही, उनका जन्म उस देश में न हुआ हो या वे उस देश के न हों.

दोबरिंट कहते हैं, "अभी कई देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या वे इसे एक साथ मिलकर करना चाहते हैं और वे किस सहयोगी देश के साथ मिलकर ऐसा करेंगे. हालांकि, हमें निश्चित तौर पर अफ्रीकी महाद्वीप में एक ऐसे सहयोगी देश की जरूरत होगी.”

इससे पहले, इटली ने यह योजना बनाई थी कि वह शरण चाहने वाले ऐसे लोगों को गैर-यूरोपीय देश अल्बानिया भेज देगा. शरण के उनके आवेदनों पर जब तक विचार होगा, वे अल्बानिया में बने केंद्रों में रहेंगे. हालांकि, कानूनी अड़चनों और बहुत अधिक खर्च के कारण यह कोशिश सफल नहीं हो सकी. इसी तरह, ब्रिटेन सरकार ने भी शरण चाहने वाले लोगों को रवांडा भेजने की अपनी योजना को रोक दिया है.

कुछ ही अफगानी नागरिकों को शरण दी गई

जर्मनी की नई सरकार की प्रवासन को सीमित करने की योजना में उन अफगानों के लिए विशेष प्रवेश कार्यक्रम को खत्म करना भी शामिल है, जिन्होंने अफगानिस्तान में रहते हुए जर्मन सरकारी एजेंसियों या सेनाओं का सहयोग किया था.

गृह मंत्री दोबरिंट ने संकेत दिया कि साल के अंत तक उन सभी अफगान नागरिकों को जर्मनी लाया जाएगा, जिनके पास ‘कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रवेश प्रतिबद्धता' है. अनुमान के मुताबिक, ऐसे करीब 2,000 लोग हैं और इनमें से ज्यादातर फिलहाल पाकिस्तान में रहते हुए जर्मनी आने का इंतजार कर रहे हैं.

दोबरिंट ने अभी तक जर्मनी आने की अनुमति सिर्फ उन लोगों को दी है, जिन्होंने प्रशासनिक अदालतों में मुकदमा दायर किया है. गृह मंत्री ने सोशल डेमोक्रेट्स, ग्रीन्स और लिबरल्स के पिछले गठबंधन पर जिम्मेदारी डालते हुए कहा, "यह ऐसी समस्या है जो हमें विरासत में मिली है. यह एक पुराना बोझ है जो हमें पिछली सरकार से विरासत में मिला है.”

जर्मनी की पिछली सरकार ने उन लोगों को सुरक्षा देने का वादा किया था, जिन्होंने अफगानिस्तान में जर्मन संस्थानों के लिए काम किया था या जिन्हें तालिबान से खतरा था. दोबरिंट ने कहा कि वह इन सब मामलों को ‘लॉ एंड ऑर्डर के हिसाब से' देख रहे हैं.

जर्मनी के लिए संभावित खतरा है रूस

जर्मनी के गृह मंत्री ने इस बात से भी इनकार नहीं किया कि रूस और दूसरी विदेशी ताकतें जर्मनी को अस्थिर करने की कोशिश कर रही हैं. बाल्टिक सागर में डेटा केबलों पर हमले और एयरपोर्ट पर देखे गए ड्रोनों से पैदा हुए खतरे के अलावा, दोबरिंट ने साइबर हमलों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि कुछ हमले रूस के कुछ हिस्सों से हुए थे. उन्होंने चेतावनी दी कि वे और ज्यादा बार हो सकते हैं.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे लगता है कि अगले कुछ महीनों में हमें साइबर हमलों की अधिक घटनाएं देखने को मिलेंगी. साथ ही ड्रोन दिखने की घटनाएं भी बढ़ेंगी. कुल मिलाकर हाइब्रिड खतरों (युद्ध के गैर-पारंपरिक तरीके) में बढ़ोतरी की संभावना है.”

उन्होंने एएफडी के सह-अध्यक्ष टिनो क्रुपाला की ओर से हाल ही में दिए गए विवादित बयान को भी ‘पूरी तरह बकवास' बताया. इसमें कहा गया था कि नाटो का साथी पोलैंड जर्मनी के लिए खतरा बन सकता है. उन्होंने आगे कहा, "मुझे लगता है कि यह बहुत बुरा है. सच कहूं, तो समाज में इस तरह के मूर्खतापूर्ण विचार फैलाने की कोशिश करना काफी घृणित काम है.”

एक टॉक शो में क्रुपाला ने कहा था कि उन्हें अभी रूस से जर्मनी को कोई खतरा नहीं दिख रहा है, लेकिन कोई भी देश जर्मनी के लिए खतरा बन सकता है. जब उनसे पूछा गया कि क्या उनका मतलब लक्जमबर्ग, पोलैंड या फिनलैंड से भी है, तो उन्होंने कहा, "बेशक, पोलैंड भी हमारे लिए खतरा हो सकता है.”

एएफडी पर बैन मत लगाओ, लेकिन ‘इसे नियंत्रित करो'

गृह मंत्री ने एएफडी पर बैन लगाने की कार्रवाई शुरू करने की बात से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, "मैंने हमेशा साफ तौर पर कहा है कि एएफडी को खत्म करना राजनीति की जिम्मेदारी है. ऐसा उसे प्रतिबंधित करके नहीं, बल्कि राजनीतिक तरीके से परास्त करके करना होगा.”

उन्होंने एएफडी की बढ़ती लोकप्रियता का कारण जर्मन समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण को बताया. दोबरिंट ने तर्क दिया कि इसका मुकाबला करने के लिए नीति में बदलाव होना चाहिए, न कि पार्टी पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए.

जर्मन पब्लिक ब्रॉडकास्टर ‘एआरडी' के सबसे हाल के पॉलिटिकल ओपिनियन पोल ‘डॉयचलैंडट्रेंड' के मुताबिक, सीडीयू/सीएसयू को एएफडी की तुलना में केवल एक प्रतिशत अंक अधिक समर्थन मिला है. एएफडी पार्टी कहती है कि वह प्रवासन को पूरी तरह से रोकना चाहती है.