प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
डब्ल्यूएचओ का मानना है कि 2050 तक दुनिया के 70 करोड़ से अधिक लोग, यानी हर 10 में से 1 इंसान, गंभीर श्रवण हानि से ग्रसित होगा.विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक लगभग 2.5 अरब लोग किसी न किसी रूप में सुनने की समस्या से ग्रसित हो सकते हैं. जबकि 70 करोड़ से अधिक लोगों को सुनने की पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता होगी. ऐसे लगभग 80 फीसदी लोग, जिन्हें गंभीर हानि होने की आशंका है, वह निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं.
यह समस्या न केवल स्वास्थ्य बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर डाल रही है. उनका अनुमान है कि इस समस्या से विश्व स्तर पर सालाना लगभग दस खरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो रहा है.
युवाओं में बढ़ता खतरा
आज की युवा पीढ़ी के लिए यह खतरा और भी गंभीर है. एक अरब से अधिक युवा कान के लिए असुरक्षित उपकरणों का उपयोग करने के कारण जोखिम में है. शोरगुल वाले वातावरण में लंबे समय तक रहना और उच्च ध्वनि स्तर पर हेडफोन का उपयोग करना इस समस्या को और बढ़ा रहा है.
लखनऊ स्थित डॉ. भाटिया कॉक्लिया एडवांस्ड सर्जिकल सेंटर में मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले डॉ. करण भाटिया ने बताया कि उनकी प्रैक्टिस में सबसे आम मामला बहरेपन से संबंधित देखने को मिलते है. उन्होंने देखा है कि खासतौर पर कोविड-19 महामारी के बाद सुनने की समस्याओं के मामलों में भारी वृद्धि आई है.
सुनने की क्षमता बहाल करने की नवीनतम तकनीक
डॉ. भाटिया बताते हैं कि आम तौर पर 60-65 साल की उम्र के बाद सुनने की समस्या अधिक देखी जाती थी, लेकिन कोविड-19 के बाद से बच्चों और युवाओं में भी इस समस्या के मामले लगातार बढ़े हैं. ध्वनि प्रदूषण सुनने की समस्याओं को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारण है. जेनेटिक समस्याओं के कारण जन्म से बहरे और मूक बच्चों के मामले भी बढ़ रहे हैं.
डॉ. भाटिया ने बताया कि ऐसे लोगों के लिए जो सबसे नई तकनीक उपलब्ध है उसे कॉक्लियर इंप्लांट कहते हैं. इसमें सर्जरी करके कॉक्लियर इंप्लांट नामका उपकरण लगाया जाता है, जो ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल कर उसे मस्तिष्क तक पहुंचाता है.
मूल रूप से कॉक्लिया कान का वह अंग है जहां से ध्वनि गुजरती है, लेकिन सुनने का वास्तविक कार्य मस्तिष्क करता है. कान केवल ध्वनि को मस्तिष्क तक भेजने का माध्यम होता है. जिन लोगों की नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं या जिनका कॉक्लिया, जो आंतरिक कान का एक हिस्सा है, प्रभावित होता है, उनके लिए एक मशीन लगाई जा सकती है, इसे ही कॉक्लियर इंप्लांट कहा जाता है.
ध्वनि प्रदूषण से बदल रहा है जेनेटिक्स
ध्वनि प्रदूषण भी हियरिंग लॉस का एक प्रमुख कारण बन रहा है. अत्यधिक शोर के कारण कान के अंदर के बाल (हेयर सेल्स) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है. शरीर में आनुवांशिक जानकारी रखने वाले डीएनए और आरएनए के स्तर पर भी बदलाव देखे जा रहे हैं, जिससे अचानक श्रवण हानि के मामले बढ़ रहे हैं.
डॉ. भाटिया बताते हैं कि जैसे स्ट्रोक या हार्ट अटैक में एक घंटे के भीतर आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं, वैसे ही अचानक सुनने की क्षमता खो जाना भी एक आपातकालीन स्थिति होती है. यदि इसे तुरंत, यानी 72 घंटों के भीतर, सही तरीके से उपचारित किया जाए, तो व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो सकता है. उनका कहना है कि कोविड के बाद से इस प्रकार के मामलों की संख्या में भी वृद्धि देखी गई है.
बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है?
सबसे आम कारण जन्म के समय बहुत से बच्चों को होने वाला पीलिया (जॉन्डिस) है. यदि बच्चा 9 महीने से पहले जन्म लेता है, तो इसका जोखिम बढ़ जाता है. माता-पिता के बीच रक्त संबंध (कजिन मैरिज) होने से भी यह समस्या बढ़ सकती है.
आईवीएफ के कारण भी जन्म से जुड़ी असामान्यताएं बढ़ रही हैं. बचाव के लिए अच्छी चिकित्सा देखभाल ही सबसे महत्वपूर्ण है. नवजात का जन्म सही मेडिकल सुविधा में होना चाहिए, क्योंकि जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी (10-15 सेकंड भी) बहरेपन की समस्या का कारण बन सकता है.
डॉ. भाटिया ने बताया कि समस्या यह है कि भारत में उपचार में देरी हो जाती है. इससे बचाव के लिए निओनेटल हियरिंग स्क्रीनिंग बहुत जरूरी है, जो कि दुनिया भर में की जाती है लेकिन भारत में यह नियमित रूप से नहीं होती. उनका कहना है कि यदि ऐसे बच्चे का एक वर्ष के भीतर कॉक्लियर इम्प्लांट हो जाए, तो वह सामान्य जीवन जी सकता है.
नवीनतम उपचार विकल्प
डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक स्तर पर श्रवण देखभाल सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए "वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग" (2021) और "वर्ल्ड हेल्थ असेंबली रिजॉल्यूशन" के तहत कई पहल की हैं. इनका उद्देश्य दुनिया भर में कान और सुनने की देखभाल को प्रभावी और सुलभ बनाना है.
डॉ. भाटिया बताते हैं कि सबसे अच्छी बात यह है कि सुनने की समस्या के लिए कई तरह के ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं. इसमें स्टेम सेल थेरेपी भी आजमाई जा रही है, जिसमें कान में स्टेम सेल के इंजेक्शन दिए जाते है जो सुनने की क्षमता में सुधार लाने में मदद करता है.
सुनने की समस्या एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट है, लेकिन उचित रोकथाम, समय पर पहचान और पुनर्वास सेवाओं के माध्यम से इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है और भविष्य में करोड़ों लोगों की सुनने की क्षमता को बचाया जा सकता है.
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
डब्ल्यूएचओ का मानना है कि 2050 तक दुनिया के 70 करोड़ से अधिक लोग, यानी हर 10 में से 1 इंसान, गंभीर श्रवण हानि से ग्रसित होगा.विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक लगभग 2.5 अरब लोग किसी न किसी रूप में सुनने की समस्या से ग्रसित हो सकते हैं. जबकि 70 करोड़ से अधिक लोगों को सुनने की पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता होगी. ऐसे लगभग 80 फीसदी लोग, जिन्हें गंभीर हानि होने की आशंका है, वह निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं.
यह समस्या न केवल स्वास्थ्य बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर डाल रही है. उनका अनुमान है कि इस समस्या से विश्व स्तर पर सालाना लगभग दस खरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो रहा है.
युवाओं में बढ़ता खतरा
आज की युवा पीढ़ी के लिए यह खतरा और भी गंभीर है. एक अरब से अधिक युवा कान के लिए असुरक्षित उपकरणों का उपयोग करने के कारण जोखिम में है. शोरगुल वाले वातावरण में लंबे समय तक रहना और उच्च ध्वनि स्तर पर हेडफोन का उपयोग करना इस समस्या को और बढ़ा रहा है.
लखनऊ स्थित डॉ. भाटिया कॉक्लिया एडवांस्ड सर्जिकल सेंटर में मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले डॉ. करण भाटिया ने बताया कि उनकी प्रैक्टिस में सबसे आम मामला बहरेपन से संबंधित देखने को मिलते है. उन्होंने देखा है कि खासतौर पर कोविड-19 महामारी के बाद सुनने की समस्याओं के मामलों में भारी वृद्धि आई है.
सुनने की क्षमता बहाल करने की नवीनतम तकनीक
डॉ. भाटिया बताते हैं कि आम तौर पर 60-65 साल की उम्र के बाद सुनने की समस्या अधिक देखी जाती थी, लेकिन कोविड-19 के बाद से बच्चों और युवाओं में भी इस समस्या के मामले लगातार बढ़े हैं. ध्वनि प्रदूषण सुनने की समस्याओं को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारण है. जेनेटिक समस्याओं के कारण जन्म से बहरे और मूक बच्चों के मामले भी बढ़ रहे हैं.
डॉ. भाटिया ने बताया कि ऐसे लोगों के लिए जो सबसे नई तकनीक उपलब्ध है उसे कॉक्लियर इंप्लांट कहते हैं. इसमें सर्जरी करके कॉक्लियर इंप्लांट नामका उपकरण लगाया जाता है, जो ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल कर उसे मस्तिष्क तक पहुंचाता है.
मूल रूप से कॉक्लिया कान का वह अंग है जहां से ध्वनि गुजरती है, लेकिन सुनने का वास्तविक कार्य मस्तिष्क करता है. कान केवल ध्वनि को मस्तिष्क तक भेजने का माध्यम होता है. जिन लोगों की नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं या जिनका कॉक्लिया, जो आंतरिक कान का एक हिस्सा है, प्रभावित होता है, उनके लिए एक मशीन लगाई जा सकती है, इसे ही कॉक्लियर इंप्लांट कहा जाता है.
ध्वनि प्रदूषण से बदल रहा है जेनेटिक्स
ध्वनि प्रदूषण भी हियरिंग लॉस का एक प्रमुख कारण बन रहा है. अत्यधिक शोर के कारण कान के अंदर के बाल (हेयर सेल्स) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है. शरीर में आनुवांशिक जानकारी रखने वाले डीएनए और आरएनए के स्तर पर भी बदलाव देखे जा रहे हैं, जिससे अचानक श्रवण हानि के मामले बढ़ रहे हैं.
डॉ. भाटिया बताते हैं कि जैसे स्ट्रोक या हार्ट अटैक में एक घंटे के भीतर आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं, वैसे ही अचानक सुनने की क्षमता खो जाना भी एक आपातकालीन स्थिति होती है. यदि इसे तुरंत, यानी 72 घंटों के भीतर, सही तरीके से उपचारित किया जाए, तो व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो सकता है. उनका कहना है कि कोविड के बाद से इस प्रकार के मामलों की संख्या में भी वृद्धि देखी गई है.
बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है?
सबसे आम कारण जन्म के समय बहुत से बच्चों को होने वाला पीलिया (जॉन्डिस) है. यदि बच्चा 9 महीने से पहले जन्म लेता है, तो इसका जोखिम बढ़ जाता है. माता-पिता के बीच रक्त संबंध (कजिन मैरिज) होने से भी यह समस्या बढ़ सकती है.
आईवीएफ के कारण भी जन्म से जुड़ी असामान्यताएं बढ़ रही हैं. बचाव के लिए अच्छी चिकित्सा देखभाल ही सबसे महत्वपूर्ण है. नवजात का जन्म सही मेडिकल सुविधा में होना चाहिए, क्योंकि जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी (10-15 सेकंड भी) बहरेपन की समस्या का कारण बन सकता है.
डॉ. भाटिया ने बताया कि समस्या यह है कि भारत में उपचार में देरी हो जाती है. इससे बचाव के लिए निओनेटल हियरिंग स्क्रीनिंग बहुत जरूरी है, जो कि दुनिया भर में की जाती है लेकिन भारत में यह नियमित रूप से नहीं होती. उनका कहना है कि यदि ऐसे बच्चे का एक वर्ष के भीतर कॉक्लियर इम्प्लांट हो जाए, तो वह सामान्य जीवन जी सकता है.
नवीनतम उपचार विकल्प
डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक स्तर पर श्रवण देखभाल सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए "वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग" (2021) और "वर्ल्ड हेल्थ असेंबली रिजॉल्यूशन" के तहत कई पहल की हैं. इनका उद्देश्य दुनिया भर में कान और सुनने की देखभाल को प्रभावी और सुलभ बनाना है.
डॉ. भाटिया बताते हैं कि सबसे अच्छी बात यह है कि सुनने की समस्या के लिए कई तरह के ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं. इसमें स्टेम सेल थेरेपी भी आजमाई जा रही है, जिसमें कान में स्टेम सेल के इंजेक्शन दिए जाते है जो सुनने की क्षमता में सुधार लाने में मदद करता है.
सुनने की समस्या एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट है, लेकिन उचित रोकथाम, समय पर पहचान और पुनर्वास सेवाओं के माध्यम से इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है और भविष्य में करोड़ों लोगों की सुनने की क्षमता को बचाया जा सकता है.