World Environment Day 2020: विश्‍व पर्यावरण दिवस- पृथ्‍वी की मुस्कुराहट लौटाने का समय
विश्व पर्यावरण दिवस (Photo Credits: File Image)

कोविड-19 महामारी फैली तो दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन हो गया. इस दौरान फैक्‍ट्र‍ियां बंद हो गईं, वाहन रुक गए, विमान जमीन पर आ गये और ट्रेनें यार्ड में खड़ी हो गईं. और देखते ही देखते एयर पॉल्‍यूशन का लेवल तेज़ी से कम हो गया. जिस पीएम 2.5 की हम बात करते हैं, वह दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में अपने निम्न स्तर पर आ गया. सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल हुए, जिसमें पृथ्‍वी को मुस्कुराते हुए दर्शाया गया और इंसान को रोते हुए. कोरोना तो एक महामारी है, जो आज है, कल चली जाएगी, लेकिन क्या पृथ्‍वी की मुस्कुराहट लौटेगी? यह एक बड़ा सवाल है और विश्‍व पर्यावरण दिवस पर हम इसी पर बात करेंगे.

इतिहास के पन्नों से:

आगे बात करने से पहले आपको विश्‍व पर्यावरण दिवस के इतिहास पर एक नज़र डालते हैं. वर्ष 1973 में 5 जून को पहली बार विश्‍व पर्यावरण दिवस मनाया गया. इसकी शुरुआत कई गैर सरकारी संगठनों, सरकारों, शोधकर्ताओं, शिक्षण संस्‍थाओं, आदि के संयुक्त प्रयासों से हुई. तब एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में इसे मनाया जाता था. 1972 में यूनाइटेड नेशन जनरल एसेंबली और यूनाइटेड नेशन इंवॉयर्नमेंट प्रोग्राम ने 1972 में 5 जूल से 16 जून के बीच एक ह्यूमन इंवॉयर्नमेंट कॉन्‍फ्रेंस का आयोजन किया और उसके बाद से दुनिया के सभी देश यह दिवस मनाने लगे.

वर्ष 2020 में विश्‍व पर्यावरण दिवस का थीम "बायोडायवर्सिटी- ए कंसर्न" रखा गया है. हर साल विश्‍व पर्यावरण दिवस अलग-अलग देश होस्‍ट करते हैं, जहां अधिकारिक आयोजन होते हैं. इस साल जर्मनी के साथ संयुक्त रूप से कोलंबिया इस दिवस के कार्यक्रमों की मेज़बानी कर रहा है.

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प्रधानमंत्री मोदी की देशवासियों से अपील:

हर साल भारत भी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता है. बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी देशवासियों से अपील की थी कि वे अपनी हर क्रिया में इस बात का ध्‍यान रखें कि पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हो. उन्‍होंने कहा, "लॉकडाउन ने हमारी जिंदगी की गति धीमी कर दी है. लेकिन यह एक अवसर है, कि हम प्रकृति की ओर अपना ध्‍यान लेकर जाएं." प्रधानमंत्री ने सभी से रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के जरिए पानी बचाने की अपील भी की.

प्रधानमंत्री की इस अपील को अगर हमने गंभीरता से नहीं लिया, तो आगे क्या परिणाम होंगे, उसका अंदाजा शायद हममें से बहुत लोगों को नहीं है. केवल पानी बचाना ही नहीं बल्कि वायु प्रदूषण को कम करना भी हमारी जिम्मेदारी है. वो इसलिए क्योंकि पृथ्‍वी का तापमान निरंतर बढ़ रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पृथ्‍वी का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है. वर्ष 2016 में वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया था कि एक दशक में पृथ्‍वी के तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी. और अगर ऐसा हुआ तो उसके विनाशकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं.

यही कारण है कि 2016 में पेरिस एग्रीमेंट पर 195 देशों ने हस्ताक्षर किए, इस वादे के साथ कि वो तापमान में वृद्धि को कम करने की दिशा में प्रयास करेंगे. जाहिर है, सभी देशों में औद्योगिकीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है, लिहाजा पृथ्‍वी का तापमान तो बढ़ना तय है. लेकिन पेरिस एग्रीमेंट के तहत सभी देश इस बात के लिए प्रयासरत हैं, कि तापमान में वृद्धि 2 डिग्री के बजाए 1.5 डिग्री तक सीमित रह जाए.

अगर तापमान में हुई 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि:

अगर पृथ्‍वी के तापमान में हुई 2 डिग्री की वृद्धि तो क्या होंगे परिणाम? इस पर संयुक्त राष्‍ट्र की इंटर-गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज की एक रिपोर्ट 2019 में जारी हुई. रिपोर्ट के अनुसार कई कई देशों में औद्योगिकीकरण के पहले की तुलना में तापमान में 1.5 डिग्री की वृद्धि पहले ही हो चुकी है. अगर एक दशक में पृथ्‍वी पर दिन और रात का औसत तापमान 1.5 डिग्री तक बढ़ गया तो: -

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विज्ञान शोधपत्र लैनसेट जर्नल में पिछले वर्ष प्रकाशित रिपोर्ट की मानें तो तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन का दहन है. पूरी दुनिया में प्रति सेकेंड 1,71,000 किलोग्राम कोयला जलाया जाता है. यही नहीं हर सेकेंड में 11,600,000 लीटर गैस (एपीजी, सीएनजी, आदि के रूप में) और 1,86,000 लीटर तेल (पेट्रोल, डीजल के रूप में) को जलाया जाता है.

भारत ने समझी जिम्मेदारी:

पेरिस समझौते पर हस्‍ताक्षर करने वाले देशों को कई सारी ऐसी शर्तों को निभाना है, जिससे कार्बन का उत्‍सर्जन न्‍यूनतम स्‍तर पर लाया जा सके. भारत भी उन देशों में से एक है, जो इन शर्तों का सही तरीके से पालन कर रहा है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण है केंद्र सरकार का नेशनल क्लीन एयर ऐक्शन प्लान. देश के सभी राज्‍य एवं केंद्रशासित प्रदेश इस प्लान का हिस्सा हैं और केंद्र की नीतियों पर काम कर रहे हैं. आपको बता दें कि शहरी स्तर पर सबसे पहले इस प्‍लान को लॉन्‍च करने वाला पटना है. इस प्‍लान के तहत भारत का लक्ष्‍य 2024 तक पीएम2.5 और पीएम10 में 20 से 30 प्रतिशत तक की कमी लाना है.

इसके अलावा भारत में प्‍लास्टिक के सिंगल यूज़ पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है. इसके अलावा सभी बड़े शहरों में जैविक कचरे को बाकी के कचरे से अलग करने का नियम भी लागू है. यही नहीं अटल भूजल योजना भूगर्भ जल के संरक्षण में कारगर साबित होगी. इस योजना की शुरुआत देश के 78 जिलों की 8350 ग्राम पंचायतों से की गई है. आगे चलकर पूरे देश में इसे लागू किया जाएगा. वहीं वृक्षारोपण में भी भारत ने बड़े कदम उठाये. सरकार ने 2019-20 में करीब 1.87 मिलियन हेक्‍टेयर भूमि पर वक्षारोपण सुनिश्चित किया. बीते वर्ष 12000 लाख पौधे लगाये गए.

कुल मिलाकर सरकार जो प्रयास कर रही है, उससे एक कदम आगे बढ़कर आम आदमी को भी पृथ्‍वी के प्रति अपनी जिम्‍मेदारी समझनी होगी. हर व्‍यक्ति अपने-अपने स्तर पर अगर छोटे-छोटे प्रयास करे, तो पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों ने जो आशंकाएं जताई हैं, उनसे बचा जा सकता है.

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> पृथ्‍वी की 14 प्रतिशत लोगों को हर पांच वर्षों में सीवियर हीट वेव यानी बेहद गर्म हवाओं का सामना करना पड़ेगा. 2 डिग्री तक बढ़ोत्तरी हुई तो यह संख्‍या बढ़ कर 37 प्रतिशत हो जाएगी.

> करीब 184 से 270 मिलियन लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ सकता है.

> साल में कभी भी अनियमित रूप से भारी बारिश होगी, जिसके कारण बाढ़ आने का खतरा बढ़ेगा.

> दुनिया में 6 प्रतिशत कीड़े, 8 प्रतिशत पौधे और 4 प्रतिशत स्तनधारी जानवरों की संख्‍या आधे से कम हो जाएगी. (रिपोर्ट में 105,000 कीड़ों, पौधों, स्तनधारी जानवरों का अध्‍ययन किया गया)

> जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ जाएंगी. बीते वर्ष ऑस्‍ट्रेलिया के जंगलों की भयावह आग हम देख ही चुके हैं.

> समुद्र के पानी में ऑक्‍सीजन की कमी होगी और पानी अधिक अम्‍लीय होगा, जिसके कारण समुद्री जानवरों का जीवन खतरे में आ सकता है.

> समुद्र में कोरल रीफ 70 से 90 प्रतिशत तक घट सकता है. और अगर तापमान 2 ड्रिगी तक बढ़ा तो इसका अस्तित्व तक खत्म हो सकता है.

> गर्मी के कारण होने वाले रोग लोगों में बढ़ेंगे, जिसके कारण संबंधित बीमारियों से होने वाली मृत्यु की दर भी बढ़ सकती है.

> अनाज की पैदावार कम हो सकती है. साथ ही चावल में पाये जाने वाले पोषक तत्व भी कम हो सकते हैं.

पृथ्‍वी पर पर्यावरण से जुड़े कुछ ऐसे तथ्‍य भी हैं, जो हर किसी को सोचने पर मजबूर कर सकते हैं. ये वो तथ्‍य हैं, जिनके बारे में हर किसी को गंभीर होना ही पड़ेगा. जैव विविधता की बात करें तो पृथ्‍वी पर पौधों और जंतुओं की 80 लाख प्रजातियां हैं. बीते 150 वर्षों में कोरल लीफ आधी हो गई हैं, जबकि अगले 10 वर्षों में हर 4 प्रजातियों में से एक विलुप्त हो जाएगी.

प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण पर एक नज़र:

> हर साल पूरी दुनिया में 5 ट्रिलियन प्‍लास्टिक बैग इस्‍तेमाल होते हैं.

> हर साल करीब 13 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में बहा दी जाती है. यानी करीब एक ट्रक कूड़ हर मिनट समुद्र में बहाया जा रहा है.

> पिछले एक दशक में जितनी प्लास्टिक का निर्माण हुआ, उतना बीते 100 वर्षों से भी अधिक है.

> हम प्रति मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतल खरीदते हैं.

> मनुष्‍य जितना कूड़ा निकालते हैं, उनमें 10 प्रतिशत कूड़ा प्लास्टिक वेस्ट होता है.

पृथ्‍वी पर पीने के पानी की कमी:

पृथ्‍वी के 71 प्रतिशत हिस्से में केवल पानी है, लेकिन फिर भी दुनिया के लगभग सभी देश पानी के संकट से जूझ रहे हैं. यह संकट है पीने के पानी का. यही नहीं खेती, औद्योगिक कार्यों व दैनिक कार्यों के लिए प्रयोग होने वाले पानी की कमी भी पृथ्‍वी पर गहराती जा रही है. वर्ल्ड रिसोर्स ईन्स्टीट्युट द्वारा 2019 में जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 17 देश, जहां विश्व की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा रहेता है, वे पानी के ‘अति गंभीर’ संकट का सामना कर रहे हैं.

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यही नहीं दुनिया के 198 देश, उनके राज्य व गांवों को पानी का संकट, अकाल का संकट और बाढ़ के जोखिम के आधार पर क्रम दिया गया है. लोग दुनिया के इस एटलस को आसानी से समझ पाएं इसलिए एक्वीडक्ट ने उपलब्ध श्रेष्ठ जानकारी, सरल व ठोस पद्धति का इस्तेमाल किया है. एक्वीडक्ट के अपडेटेड हाईड्रोलोजिकल मोडल में पानी के संकट का पहले कभी न दिया गया हो ऐसा एकदम सटिक व स्पष्ट चित्र पेश किया गया है. इस प्लेटफोर्म का हर साल 50,000 से ज्यादा लोग व 300 से ज्यादा कंपनीयां इस्तेमाल करती हैं.

भारत की बात करें तो पानी के संकट के मामले में भारत का क्रम 13वां है. जबकी भारत की आबादी पानी के ‘अति गंभीर’ संकट वाले 16 देशों की आबादी से तीन गुना अधिक है.

भारत के सबसे ज्यादा जल संकट का सामना करने वाले राज्य व केंद्रशासित प्रदेश -

1. चंडीगढ़

2. हरियाणा

3. राजस्थान

4. उत्तर प्रदेश

5. पंजाब

6. गुजरात

7. उत्तराखंड

8. मध्य प्रदेश

9. जम्मू और कश्मीर

10. पोंडीचेरी

विश्व के जो 17 देश पानी के अति गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं, वहां जमीन के उपर के पानी और भूजल का 80 फिसदी इस्तेमाल कृषि, उद्योग और म्युनिसिपिलटी की ओर से पीने के पानी की सपलाई में किया जाता है.

वायु प्रदूषण एक गंभीर कारक:

पीएम2.5 के बारे आप अच्‍छी तरह जानते होंगे. पीएम का मतलब पर्टिकुलेट मैटर और 2.5 का मतलब ऐसे ऐसे तत्व जिनका आकार 2.5 माइक्रॉन या उससे कम हो. 2.5 माइक्रॉन से कम आकार के तत्व अगर हमारे शरीर में जाते हैं, तो कई प्रकार की बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है. खास कर फेफड़ों से संबंध‍ित बीमारियां. कोविड 19 की इस महामारी में वायरस का सबसे ज्यादा हमला उन पर हो रहा है, जिनके फेफड़े कमजोर हैं. फेफड़े कमजोर होने का कारण केवल धूम्रपान नहीं बल्कि वाहनों, फैक्‍ट्र‍ियों, आदि से निकलने वाला धुआं भी है.