छत्रपति साहूजी महाराज उन बहादुर एवं निर्भीक शासकों में शुमार होते हैं, जिन्होंने कुशलता पूर्वक सत्ता संचालन के साथ-साथ समाजसुधारक कार्यों से भी जीवन पर्यंत जुड़े रहे. राजर्षि शाहू के नाम से भी लोकप्रिय साहुजी महाराज कोल्हापुर रियासत के पहले महाराजा थे. आज देश उनकी 147वीं जयंती मना रहा है.
जन्म, शिक्षा एवं विवाह:
शाहू जी महाराज का जन्म 26 जून, 1874 को कोल्हापुर के कागल गांव में घाटगे परिवार जयसिंह राव और राधाबाई के यहां हुआ था. बचपन में उनका नाम यशवंत राव घाटगे रखा गया था. जयसिंह राव आबा साहब घाटगे वस्तुतः ग्राम प्रधान थे, जबकि पत्नी राधाभाई मुधोल के शाही परिवार से थीं. यशवंत राव जब मात्र तीन वर्ष के थे उनकी मां का निधन हो गया. पिता की देखरेख में 10 वर्षों तक उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई. उसी वर्ष कोल्हापुर रियासत के राजा शिवाजी चतुर्थ की विधवा रानी आनंदी बाई ने यशवंत राव को गोद ले लिया था. हांलाकि उन दिनों नियमानुसार भोसले वंश के ही किसी व्यक्ति को वे गोद लिया जा सकता था. यशवंत राव ने राजकोट के राजकुमार कॉलेज में अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद भारतीय सिविल सेवा के प्रतिनिधि सर स्टुअर्ट फ्रेजर से प्रशासनिक मामलों की शिक्षा हासिल की. 1891 में बड़ौदा के एक रईस की बेटी लक्ष्मीबाई खानविलकर से उनका विवाह हुआ था. उनकी दो बेटियां और दो बेटे थे. 1894 में उन्होंने सिंहासन संभाला.
यह भी पढ़ें- यूपी: माताओं की कोख में पलने वाले बच्चे अब होंगे संस्कारी, कानपुर विश्वविद्यालय इससे जुड़ी देगी शिक्षा
सभी के लिए समान शैक्षणिक योजनाएं:
छत्रपति शाहूजी महाराज ने 1894 से 1922 तक कोल्हापुर में शासन किया. इन 28 सालों में उन्होंने अपने साम्राज्य में कई सामाजिक सुधारों की शुरुआत की. उन्होंने जन-जन को शिक्षित करने का मुहिम चलाया. कई शैक्षिक कार्यक्रम शुरू किए. उन्होंने विभिन्न धर्म एवं जातियों मसलन पांचाल, देवदान्य, नाभिक, शिम्पी, धोर-चंभर समुदायों, मुसलमानों, जैनियों एवं ईसाइयों के लिए छात्रावासों का निर्माण कराया. पिछड़ी जाति के गरीब लेकिन मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृत्तियां शुरू कीं. सभी के लिए अनिवार्य मगर मुफ्त शिक्षा शुरू करवाई. उन्होंने ग्राम प्रधानों या पाटिलों को बेहतर प्रशासक बनाने के लिए विशेष स्कूल भी शुरू किए.
सबको समानता का अधिकार:
साहू समाज समानता के प्रबल समर्थक थे. उन्होंने ब्राह्मणों को किसी भी प्रकार का विशेष दर्जा देने से मना कर दिया. उन्होंने देखा कि जब ब्राह्मण गैर ब्राह्मणों के लिए धार्मिक संस्कार करने इंकार कर दिया, तब दरबार के सारे ब्राह्मण सलाहकारों के पदों हटा दिया. साहूजी ने एक युवा मराठा विद्वान को नियुक्त किया, जो गैर-ब्राह्मणों को वेदों को पढ़ने के लिए प्रेरित करता था. इस घटना से वेदोक्त विवाद शुरू हुआ.
निचली जाति का उत्थान!
शाहूजी ने जाति-धर्म के भेद-भाव एवं अस्पृश्यता को खत्म करने के तमाम प्रयास किए. समाज के निचले वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की शुरुआत की. समाज के हर व्यक्ति को समान दर्जा देने के लिए अछूतों को कुओं-तालाबों जैसी सार्वजनिक उपयोगिताओं के साथ-साथ स्कूलों और अस्पतालों जैसे प्रतिष्ठानों की उपलब्धता कराने के लिए शाही फरमान जारी किया. इसके साथ ही उन्होंने अंतर्जातीय विवाहों को वैध बनाया, और दलितों के उत्थान का प्रयास किया. इसके साथ ही उन्होंने कई कुप्रथाओं को भी खत्म करवाया. 1917 में उन्होंने उस ‘बलूतदारी-प्रथा’ का अंत किया, जिसके तहत एक अछूत को थोड़ी-सी जमीन देकर बदले में उससे और उसके परिवार वालों से पूरे गाँव के लिएमुफ्त सेवाएं ली जाती थीं. इसी तरह 1918 में उन्होंने कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा ‘वतनदारी’ का अंत किया तथा भूमि सुधार लागू कर भूमिहारों को भू-स्वामी बनने का हक़ दिलाया.
महिलाओं को समुचित सम्मान और शिक्षा!
शाहू जी महाराज ने निचली जाति के साथ-साथ महिलाओं के उत्थान एवं उनकी स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में काफी कार्य किया. उन्होंने स्त्री-शिक्षा को मुखर बनाने के लिए स्कूलों की स्थापना की. देवदासी प्रथा को खत्म करने वाला कानून बनाया, जिसके नाम पर मासूम लड़कियां ईश्वर के नाम पर पादरियों द्वारा शोषित होती थीं. 1917 में उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को कानूनी रूप से मान्यता दिलायी और दूसरी तरफ बाल-विवाह जैसी कु-प्रथा को रोकने के लिए कदम उठाये.
खेल, साहित्य एवं कला को बढ़ावा:
5 फिट 9 इंच के कद-काठी वाले साहूजी महाराज खुद भी बहुत अच्छे खिलाड़ी और पहलवान भी थे. उन्होंने अपने सामाजिक उत्थान कार्यक्रमों के साथ-साथ खेल, कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए तमाम तरह के कार्य किये. उन्होंने संगीत, साहित्य और ललित कला के क्षेत्र में कार्य कर रही हस्तियों को प्रेरित के लिए प्रोत्साहित किया. साहित्यकारों, शोधकर्ताओं को उनके प्रयासों में समर्थन और पुरस्कृत किया. पहलवानों के लिए व्यायाम शालाएं एवं कुश्ती के लिए अखाड़ों का निर्माण कराया.
निधन:
शाहूजी महाराज की मृत्यु 6 मई 1922 को बॉम्बे, (अब मुंबई) में गिरगांव के पास खेतवाड़ी 13 लेन में पन्हाला लॉज नामक एक लॉज में हुई. हालांकि यह लॉज अब अस्तित्व में नहीं है. ना ही सरकार द्वारा इसे संरक्षित किया गया.