नर्मदा जयंती 2019 विशेष: तट का हर पत्थर शिवलिंग समान पूज्यनीय, 60 लाख से अधिक तीर्थ मौजूद
नर्मदा नदी (Photo Credits: Twitter)

Narmada Jayanti 2019: भौगोलिक दृष्टि से भारत की ह्रदय में छलकने वाली नर्मदा (Narmada River) भारत की पांच सबसे प्राचीन एवं पवित्र नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी में एक है. इसका वर्णन वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, रामचरितमानस जैसे तमाम हिंदू ग्रंथों में मिलता है. आज माघ माह (शुक्ल पक्ष) की सप्तमी के दिन अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक के सभी ग्रामों व नगरों में उल्लास और उत्सव का दिन है. क्योंकि आज माँ नर्मदा की जयंती जो है. नर्मदा नदी की महिमा का वर्णन इस श्लोक में देखा जा सकता है.

'गंगा कनखले पुण्या, कुरुक्षेत्रे सरस्वती,

ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा l'

- अर्थात गंगा कनखल में और सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है, किन्तु नर्मदा गांव से लेकर वनों तक अपनी पुण्य प्रदायिका के नाम से लोकप्रिय महानदी है.

नर्मदा की उत्पत्ति-

लोकोक्ति है कि एक बार भगवान शंकर लोकहित के लिए मैकाले पर्वत पर तपस्या में लीन थे. उनके पसीने की बूंदों से करीब में ही एक कुंड बन गया. बताया जाता है कि इसी कुंड में एक बालिका नर्मदा उत्पन्न हुई थी. भगवान शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में प्रवाहित होने लगी. नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण होने के संदर्भ में यह कथा भी प्रचलित है. एक बार चंद्रवंश के सम्राट हिरण्यतेजा पित्तरों का तर्पण कर रहे थे, तब उन्हें पता चला क उनके पिता अतृप्त हैं. उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या की. इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नर्मदा को आदेश दिया कि वह जन कल्याण के लिए जल रूप में पृथ्वी पर अवतरित हों. शिव जी के आदेशानुसार नर्मदा माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन पृथ्वी पर अवतरित हुईं. शिव जी ने नर्मदा को आशीर्वाद दिया था कि नर्मदा के तटों पर स्थित हर पत्थर में शिवलिंग के समान महिमा होगी, जिसे पूजने पर साधक को शिवलिंग पूजने जैसे फल की प्राप्ति होगी. माघ के शुक्ल पक्ष में नर्मदा के अवतरण के कारण आज के ही दिन नर्मदा जयंती मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी.

धार्मिक ग्रंथों में नर्मदा का प्रवाह-

पौराणिक कथाओं में नर्मदा की महिमा अलग-अलग भावों में की गयी है. स्कंध पुराण में महर्षि मार्कण्डेयजी ने लिखा है कि नर्मदा तट पर श्री नारायण के सभी अवतारों ने आकर मां की स्तुति की है. कहा जाता है कि प्रलय के बाद भी नर्मदा अपने स्थान पर अडिग बनी हुई हैं. मत्स्य पुराण में उल्लेखित है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से तन मन पवित्र हो जाता है. देश की पांच पवित्र नदियों नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती को ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद के समान पवित्र माना जाता है. महर्षि मारकण्डेय ने तो यहां तक कहा है कि नर्मदा के दोनों ओर की तटों पर लाखों तीर्थ हैं, जिनका दर्शन मात्र से पुण्य लाभ प्राप्त हो जाता है. स्नान एवं आचमन करके मनुष्य मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है.

पुराणों में वर्णित है कि इसके मारकण्डेय, अगस्त्य, कपिल जैसे कई महर्षियों ने इसके घाटों पर कड़ी तपस्या की है. शंकराचार्यों ने भी इसकी महिमा का गुणगान किया है. बताया जाता है कि संसार में एकमात्र मां नर्मदा नदी ही है जिसकी परिक्रमा सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मानव आदि करते हैं.  आदिगुरु शंकराचार्य जी ने नर्मदाष्टक में माता नर्मदा को सर्वतीर्थ नायकम्‌ के नाम से संबोधित किया है. 12 ज्योर्तिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर नर्मदा तट पर ही स्थित है. इसके अलावा भृगुक्षेत्र, शंखोद्वार, धूतताप, कोटीश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर भी नर्मदा तट पर स्थित हैं.

नर्मदा नदी की भौगोलिक स्थिति-

भौगोलिक दृष्टिकोण से नर्मदा की उत्पत्ति अमरकंटक से प्रारंभ होकर लगभग 12 सौ किमी के सफर में नर्मदा विध्याचल पर्वत से होते हुए, मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों को स्पर्श करते हुए गुजरात के खंभात स्थित अरब सागर में जाकर मिलती है. नर्मदा की कुछ सहायक नदियां भी हैं.