Kargil Vijay Diwas 2022: आजादी के बाद पाकिस्तान भारत पर चार बार (1948, 1965, 1971, और 1999 में) आक्रमण कर चुका है, हर बार भारतीय जांबाजों ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया. आज बात करेंगे, भारत पाकिस्तान के बीच हुए चौथे युद्ध की. इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़कर ऑपरेशन विजय के रूप में टाइगर हिल और अन्य चौकियों पर पुनः कब्जा किया. 26 जुलाई 1999 को इस युद्ध में मिले विजय को ‘करगिल विजय दिवस’ के नाम से जाना जाता है. ‘करगिल विजय दिवस’ प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को पाकिस्तान पर भारत की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस दिन देश भर में कारगिल युद्ध में शहीद सैकड़ों भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दिया जाता है. यह भी पढ़े: Kargil Vijay Diwas: पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में दागे गए थे ढाई लाख बम, जानें वॉर के और तथ्य
परवेज मुशर्रफ की कारस्तानी! फरवरी में सीमा समझौता, मई में सीमा उल्लंघन!
साल 1998 में भारत-पाकिस्तान द्वारा परमाणु परीक्षण किये गये. लाहौर घोषणा में कश्मीर समस्या के शांतिपूर्ण समाधान का वादा किया गया था. इसी शांति के मुद्दे पर दोनों देशों ने फरवरी 1999 में हस्ताक्षर भी किये. लेकिन पाकिस्तान अपने रवैये से बाज नहीं आने वाला था. उसने फिर एक नई चाल चली.
दरअसल कश्मीर के कारगिल में सामरिक महत्व वाली ऊंची-ऊंची चोटियां जो भारतीय क्षेत्र में आती हैं, शीत ऋतु में इसकी स्थिति विकट हो जाती है. मौसम की विकटता और जनजीवन शून्य होने के कारण भारतीय सेना भी इस क्षेत्र में कम आती थी. पाकिस्तानी सेना ने इसका लाभ उठाते हुए भारतीय भूभाग में करीब 11 किमी अंदर घुस गये. चौंकाने वाली बात यह थी कि बाद में पाकिस्तानी जनरल परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर मसूद असलम भी हेलीकॉप्टर से इस भारतीय भूभाग पर आ गये थे. कहते हैं कि दोनों ने जिकरिया मुस्तकार नामक जगह पर रात बिताई.
मई 1999 में एक ग्वाले ने सेना को इस संदर्भ में जानकारी दी. उसी दरम्यान बटालिक सेक्टर में लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के पेट्रोल कार पर भी हमला किया तो भारतीय सेना ने पहले उन्हें जिहादी समझा. सेना की छोटी टुकड़ी के साथ उन्हें खदेड़ने की कोशिश की, लेकिन शीघ्र ही भारतीय सैनिक समझ गये कि पाकिस्तानी सेना भारतीय इलाके में घुस चुकी है.
ऑपरेशन विजय!
भारतीय सीमा में पाकिस्तानी सेना के घुसपैठ की बात पुख्ता होते ही भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ का मिशन शुरू किया. इस मिशन में 30 हजार भारतीय सैनिक शामिल थे. लेकिन भारतीय सेना की समस्या यह थी कि दुश्मन ऊंचाई पर थे और इन्हें नीचे से सेना की सुरक्षा के साथ उन पर आक्रमण करना था. 8 मई को कारगिल युद्ध शुरू होने के बाद 11 मई से भारतीय वायुसेना भी इस मिशन में जुड़ गई.
ऑपरेशन सफेद सागर
पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने के लिए भारतीय थलसेना के साथ भारतीय वायुसेना के 300 लड़ाकू विमानों ने एक मिशन शुरू किया, जिसे ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ नाम दिया गया. उधर जल सेना ने कराची तक पहुंचने वाले समुद्री मार्ग से सप्लाई रोकने अपने पूर्वी इलाकों में जहाजी बेड़े अरब सागर में खड़ा कर दिया. भारतीय वायुसेना ने मिग-27 और मिग-29 से भारतीय क्षेत्र में घुस आये पाकिस्तानी सेना पर चौतरफ़ा हमला बोल दिया. वायुसेना ने पाकिस्तान के कई इलाकों पर आर-77 मिसाइलें दागीं. हालांकि 20 हजार फीट की ऊंचाई से दुश्मनों पर हमले कर रहे भारतीय वायुसेना के पायलटों के लिए जान जोखिम में डालने जैसा था. विमान भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकते थे, लेकिन भारतीय जांबाजों ने हिम्मत नहीं हारी.
कारगिल युद्ध ने द्वितीय विश्व युद्ध की याद ताजा कर दी
जानकारों के अनुसार इससे पूर्व दुश्मन सेना पर इतना घातक हमला द्वितीय विश्व युद्ध में हुआ था. कहते हैं, कारगिल युद्ध में आर्टिलरी से करीब ढाई लाख गोले और रॉकेट दागे गये. 300 से अधिक तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों ने प्रतिदिन करीब 5 हजार बम बरसाये. दरअसल भारतीय सेना ठानकर आई थी कि पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर देंगे. चौतरफा हमला देख परवेज मुशर्रफ अपने ब्रिगेडियर के साथ कब भागे पता नहीं चला. पाकिस्तानी सेना के भी पांव उखड़ गये. ऐसा लग रहा था कि भारतीय सेना 1966 की कहानी दोहरायेगी, लेकिन अमेरिकी हस्तक्षेप से भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों की जिंदा वापसी की अपील को मान लिया. युद्ध के नियम भी यही होते हैं. कारगिल युद्ध पर भारतीय विजय ने बाकी देशों को भी भारतीय शक्ति का अहसास करा दिया था.