Hindi Diwas 2019: आजादी के बाद हिंदी को मिला राजभाषा का राष्ट्रीय झुनझुना, जानिए हिंदी भाषा की संवैधानिक स्थिति
हिंदी दिवस 2019 (Photo credits: Wikipedia)

Hindi Diwas 2019: किसी भी आजाद देश (Independent Country) में राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय परिवेश तो राष्ट्र की प्रतीकात्मक पहचान होते हैं, किंतु राष्ट्रभाषा राष्ट्र की धमनियों में संचारित होनेवाली राष्ट्रीयता (Nationality) की लाइफ लाइन कही जाती है. राष्ट्रभाषा (National Language) के बिना न ही जन-जन के बीच पारस्परिक संपर्क सम्भव है और न देशवासियों के दिलों में एकता के बीज बोने की गुंजाइश बनती है. राष्ट्र के प्रति भावात्मक एकता की बात करनेवाले राजनेताओं को ध्यान देना होगा कि विदेशी भाषा के माध्यम से स्वदेशी भावना का प्रचार करना आकाश तोड़कर लाने जैसी बात ही होगी.

ब्रिटिश हुकूमत के भारत छोड़ने के पश्चात जब हमें आजादी मिली तो संविधान सभा द्वारा भारत के लिए राजभाषा चुनने का प्रश्न मुखर हुआ. अंततः तमाम सामूहिक मंथन के पश्चात सभी ने हिंदी को राजभाषा (Rajbhasha Hindi) बनाये जाने का निर्णय लिया. यह फैसला 14 फरवरी 1949 के दिन लिया गया. हिंदी को भारतीय संविधान भाग 17 अनुच्छेद 343 (1) कानूनी जामा पहनाते हुए सर्व सम्मति से माना गया कि संघ की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी. इसके बाद से हर वर्ष देश के हिंदी भाषी क्षेत्र 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस (Hindi Diwas) मनाकार हिंदी के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन कर लेते हैं. लेकिन क्या कभी हमने यह जानने की कोशिश की है कि हिंदी को राजभाषा का संवैधानिक जामा पहनाने के बावजूद हिंदी की दशा एवं दिशा में कोई सुधार आया है? क्या आज भी हिंदी अंग्रेजी के सामने दोयम दर्जे की भाषा नहीं बनी हुई है? आखिर आजादी के 72 साल बाद भी भारत की राष्ट्रभाषा पर कोई ठोस निर्णय क्यों नहीं लिया जा सका है?

भारतीय संविधान द्वारा हिंदी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुए लगभग 70 साल हो चुके हैं. किंतु देश का दुर्भाग्य देखिये कि मंगल और चांद पर पहुंचने के दावे करनेवाले न हिंदी को उसका राष्ट्रीय अधिकार दिलवा सके और न ही गर्व के साथ यह कहने की स्थिति रख सके कि हमारी राष्ट्रभाषा क्या है. आखिर राष्ट्रभाषा के मुद्दे पर सरकार की नैराश्यता की क्या वजह हो सकती है? यह भी पढ़ें: Hindi Diwas 2019: हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा... हिंदी दिवस के खास अवसर पर दें गरिमामय भाषण

इस त्रासदीपूर्ण स्थिति के कारणों की तह में जाने से पूर्व हम संविधान में बनाए गये प्रावधानों के प्रति चिंतन-मनन करना होगा! संविधान के अनुच्छेद 343 में देवनागरी लिपि वाली हिंदी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया गया. किंतु इसी अनुच्छेद में आगे यह भी लिखा गया है कि संविधान लागू होने के आगामी 15 वर्षों तक अंग्रेजी ही भारतीय संघ की राजभाषा बनी रहेगी. अनुच्छेद 344 में कार्यालयीन उद्देश्यों के लिए इस अवधि में आठवीं अनुसूची में उल्लेखित भाषाओं (22 भाषाओं) का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों तथा एक अध्यक्ष का आयोग राष्ट्रपति के द्वारा गठित किया जाना था, तथा उक्त आयोग इस संदर्भ में हिंदी की प्रगति, अंग्रेजी पर प्रतिबंध, सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों एवं अधिनियम बिल आदि की भाषा के उद्देश्यों के लिए, भाषा के उपयोग के संदर्भ में अपनी अनुशंसा करना था.

इस अनुशंसा में आयोग को औद्योगिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक प्रगति तथा अहिंदी भाषी क्षेत्रों के हितों को ध्यान में रखना था. इसी अनुच्छेद में 30 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किये जाने का भी प्रावधान था, जो आयोग की अनुशंसाओं का परीक्षण कर अपनी राय राष्ट्रपति को बताती और फिर राष्ट्रपति इस संदर्भ में विचार-विमर्श कर आवश्यक निर्देश जारी करते.

अब इस आयोग या कमेटी ने क्या किया. इस संबंध में कोई प्रमाणि दस्तावेज उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह जानकारी सभी को है कि राजभाषा अधिनियम, 1963 (यथासंशोधित 1967) पारित कर उपरोक्त 15 वर्षों की अवधि को अनंतकाल तक बढ़ाकर भारत संघ की मुख्य भाषा अंग्रेजी को ही बनाये रखने का निर्णय कर उस पर अपने फैसले की मुहर लगा दी गयी.

अनुच्छेद 345, 346 एवं 347 में राज्यों को भाषा, राज्य और संघ के बीच की भाषा एवं राज्य के अधिकांश लोगों के द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली भाषा को मान्यता दिये जाने का प्रावधान है. अनुच्छेद 348 में सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों की और अधिनियमों, बिल, आदेश, नियम आदि की भाषा अंग्रेजी में ही रहने के और अनुच्छेद 350 एवं 351 में भाषाओं के प्रेम संबंधी विशेष निर्देश दिये गये हैं. यह भी पढ़ें: विश्व हिंदी दिवस: जानें 10 जनवरी को क्यों मनाया जाता है विश्व हिंदी दिवस?

संविधान के उपरोक्त प्रावधानों तथा राजभाषा विधेयक 1967 के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिंदी की वर्तमान दुर्दशा के लिए सत्ताधारी जो विदेशी भाषा के माध्यम से शासन करना चाहते हैं. हिंदी के शीर्ष विद्वान जिन्होंने कभी भी इसका खुल कर विरोध नहीं नहीं किया और वास्तुस्थिति को जानते हुए भी इसके प्रति उदासीन रहे, संविधान में हिंदी राजभाषा होते हुए भी कुछ भी नहीं है और देश की हालात एवं सत्ताधीशों की निष्क्रियता को देखते हुए कभी हो भी नहीं पायेगी, क्योंकि कभी भी सारे अहिंदी भाषी राज्य इसके लिए सहमत नहीं होंगे.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.