
होलिका-दहन और चैत्र नवरात्रि के मध्य में पड़नेवाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी भी कहते हैं, जो हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है, और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च अथवा अप्रैल मास में आती हैं, इस वर्ष 25 मार्च 2025, मंगलवार को पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. ‘पापमोचनी’ जो 'पाप' से बना है जिसका अर्थ है 'पाप' अथवा 'दुर्भावना' और मोचनी का आशय है, हटाने वाला, अर्थात जो जानकर या अनजाने में किए गए पापों को नष्ट करता है. आइये जानते हैं पापमोचिनी एकादशी के महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा आदि के बारे में. यह भी पढ़ें : Ramadan Eid Moon Sighting 2025: सऊदी अरब, UAE और भारत में ईद कब मनाई जाएगी, इस तारीख को देखा जाएगा चांद
पापमोचिनी एकादशी मूल तिथि, मुहूर्त एवं पारण काल
चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभः 05.05 AM (25 मार्च 2025, बुधवार)
चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी समाप्तः 03.45 AM (26 मार्च 2025, गुरूवार)
उदया तिथि के अनुसार पापमोचिनी एकादशी 25 मार्च 2025 को मनाई जाएगी.
पारण कालः 01.08 PM से 04.08 PM तक (27 मार्च 2025)
पापमोचनी एकादशी का महत्व
प्राचीन हिंदू धर्म शास्त्रों में इस एकादशी व्रत के बारे में भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ या स्वयं भगवान विष्णु के दर्शन के महत्व के बारे में समझाया है. ऐसा कहा जाता है कि जो भी जातक पापमोचिनी एकादशी व्रत के नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे उसे भगवान विष्णु के धाम में स्थान मिलता है, पापमोचिनी एकादशी सभी पापों को नष्ट करनेवाली सबसे दिव्य एकादशी कहा जाता है.
पापमोचिनी एकादशी अनुष्ठान विधि:
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर विष्णु जी का ध्यान करें और व्रत-पूजा का संकल्प लें. घर के मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा का पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करें. धूप दीप प्रज्वलित करें, और निम्न मंत्र का जाप जारी रखते हुए पूजा जारी रखें.
'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'
भगवान विष्णु को पुष्प अर्पित करते हुए मस्तिष्क पर लाल चंदन से तिलक लगाएं. तुलसी, पान, सुपारी, इत्र आदि अर्पित करें, भोग में फल एवं मिष्ठान चढ़ाएं.
विष्णु सहस्त्र नाम का जाप करें, इसके बाद भगवान विष्णु की आरती उतारें. शाम को फलाहार लें, अगले दिन मुहूर्त के अनुरूप पारण करें.
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
वैदिक काल में ऋषि च्यवन पुत्र मेधवी साथ में रहते थे, मेधवी स्वस्थ, सुंदर एवं सम्पन्न थे, सदा तपस्या में लीन रहते थे. इंद्र को उनकी उत्कृष्टता सहन नहीं हुई. उन्होंने अप्सराओं को उनका ध्यान भंग करने भेजा, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला. तब मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा. मंजुघोषा के मधुर गायन-नृत्य तथा कामदेव के बाण (इंद्र के कहने पर) से मेधवी में भोग-विलास भावना जागृत हुई. मंजुघोषा के साथ लंबे समय तक प्रेम में लीन रहने के बाद उन्हें लगा कि उनके सारे फल नष्ट हो गये. उन्होंने मंजुघोषा को ब्रह्माण्ड की सबसे बदसूरत महिला बनने का श्राप दे दिया. मेधवी ने अपने पिता ऋषि च्यवन से छमा मांगी. ऋषि च्यवन ने मेधवी को शांत करते हुए उन्हें और मंजुघोषा को पापमोचिनी एकादशी व्रत की सलाह दी. मेधवी और मंजुघोषा ने ऐसा ही किया और भगवान विष्णु के आशीर्वाद से उन्हें पापों से मुक्ति मिल गई.