Chaitra Krishna Janmashtami 2025: चैत्र कृष्ण जन्माष्टमी पर विधि-विधान से व्रत-पूजा एवं कृष्ण चालीसा पढ़ने से सभी कष्ट दूर होते हैं!

  पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भाद्रप्रद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. इसलिए शेष माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी पर मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल की पूजा-अनुष्ठान एवं व्रत आदि करने से जीवन में सुख एवं शांति आती है, जिन लोगों को संतान प्राप्ति में किसी तरह का व्यवधान आता है, उनके द्वारा भगवान कृष्ण का व्रत एवं जन्मोत्सव मनाने से उन्हें संतान लाभ प्राप्त होता है. इस वर्ष चैत्र मास की जन्माष्टमी 22 मार्च 2025 को मनाई आयेगी. आइये जानते हैं चैत्र मास की जन्माष्टमी के व्रत एवं पूजा विधि आदि के बारे में.

चैत्र कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व एवं पूजा विधि

  चैत्र कृष्ण पक्ष जन्माष्टमी भगवान कृष्ण को समर्पित है. इस दिन व्रत एवं पूजा करने से भगवान कृष्ण की कृपा पिछले और वर्तमान जन्मों के पाप दूर होते हैं, मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है, जीवन में सुख-शांति, यश, धन और संतान की प्राप्ति होती है. यह पर्व धर्म, सत्य और न्याय की विजय का प्रतीक माना जाता है. यह भी पढ़ें : Papmochini Ekadashi 2025: पापमोचिनी एकादशी को दिव्य एकादशी क्यों कहते हैं? जानें इस एकादशी के नियम, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं व्रत-कथा!

  हिंदू नववर्ष के पहले मासिक (चैत्र) कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल को पंचामृत से स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित करें. श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें.

अब भगवान बाल कृष्ण को माखन, मिश्रीफल दही समेत आदि चीजों का भोग लगाएं, और भोग मंत्र का जाप करें.

त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये। गृहाणे सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर.’

इसके पश्चात कृष्ण चालीसा का पाठ करें. मान्यता है कि कृष्ण चालीसा पढ़ने से सारे कष्ट दूर होते हैं और घर में खुशहाली आती है. कृष्ण चालीसा के बाद भगवान कृष्ण की आरती उतारें, गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें.

कृष्ण चालीसा का पाठ

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥

जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

जय नट-नागर नाग नथैया। कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी। होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोलचिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

रंजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे। कटि किंकणी काछन काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छवि लखिसुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलकअलक घुंघराले। आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

करि पय पानपुतनहि तारयो। अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला। भै शीतललखितहिं नन्दलाला॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई। मसूर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो। गोवर्धन नखधारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो। कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

केतिक महा असुर संहारयो।

कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥ मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

उग्रसेन कहं राज दिलाई॥ महि से मृतक छहों सुत लायो।

मातु देवकी शोक मिटायो॥ भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

लाये षट दश सहसकुमारी॥ दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।

जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥ असुर बकासुर आदिक मारयो।

भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥ दीन सुदामा के दुःख टारयो।

तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥ प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

दुर्योधन के मेवा त्यागे॥ लखि प्रेम की महिमा भारी।

ऐसे श्याम दीन हितकारी॥ भारत के पारथ रथ हांके।

लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥ निज गीता के ज्ञान सुनाये।

भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥ मीरा थी ऐसी मतवाली।

विष पी गई बजाकर ताली॥ राना भेजा सांप पिटारी।

शालिग्राम बने बनवारी॥ निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

उर ते संशय सकल मिटायो॥ तब शत निन्दा करी तत्काला।

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥ जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

दीनानाथ लाज अब जाई॥तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।

बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥ अस नाथ के नाथ कन्हैया।

डूबत भंवर बचावत नैया॥ सुन्दरदास आस उर धारी।

दयादृष्टि कीजै बनवारी॥ नाथ सकल मम कुमति निवारो।

क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥ खोलो पट अब दर्शन दीजै।

बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फललहै पदारथ चारि॥