Hindi Diwas 2019: माननीय प्रधानाचार्य, अध्यापकगण एवं प्रिय मित्रों... सर्वप्रथम हिंदी दिवस (Hindi Diwas) पर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं.. हमारे लिए यह बड़े गर्व की बात है कि आज इतने सम्मानितजनों के बीच इस महान मंच से हमें हमारी प्यारी राजभाषा हिंदी (Hindi) के संदर्भ एवं सम्मान में कुछ बोलने का अवसर मिल रहा है..
भारत (India) की दुनिया में पहचान जितनी अपनी सांस्कृतिक विविधताओं, चहुं दिशाओं में होते विकास के लिए है, उतना ही भारत को पूरी दुनिया में ‘हिंदी’ के लिए भी पहचाना जाता है. देश हो या परदेश किसी भी हिंदुस्तानी के लिए 14 सितंबर का दिन किसी पर्व से कम नहीं होता. 14 सितंबर को पूरी दुनिया में ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है. इसी दिन यानी 14 सितंबर 1949 के दिन हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था. मेरे पास आज जो ताजे आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार आज देश में लगभग 78 प्रतिशत हिंदी भाषा बोलने, लिखने और समझने वाले लोग हैं. हमारे प्रिय नेता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू जी की पहल पर 14 सितंबर 1953 से संपूर्ण देश में ‘हिंदी दिवस’ मनाने की शुरूआत हुई. हमें इस दिन को बहुत उत्साह और गर्व के साथ मनाना चाहिए. इस उपलक्ष्य में देश भर के स्कूल-कॉलेज से लेकर कवि गोष्ठियों, दफ्तरों, कई मल्टीनेशनल कंपनियों में हिंदी भाषा से संबद्ध तमाम तरह के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.
सर्वप्रथम हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या बहुभाषा-भाषाई वाले देश में हिंदी को राजभाषा का स्थान दिला पाना इतना आसान था? क्या किसी तरह का विरोध नहीं हुआ? शायद नहीं. पहले मुगलों, फिर ब्रिटिश हुकूमतों के शासनकाल के सैकड़ों सालों की दासतां के बीच हिंदी भाषा की खुलकर अवहेलना हुई, इसे विकृत करने की कोई कोशिश छोड़ी नहीं गयी. लेकिन तमाम विरोधों के बावजूद हिंदी की मधुरता एवं सर्वप्रियता पर कोई भी नियंत्रण नहीं लगा सका. यही वजह थी कि अंग्रेजी दास्तां से मुक्ति के पश्चात जब आजाद भारत के संविधान निर्माताओं के सामने देश की संपर्क भाषा का प्रश्न उठा तो उन्हें हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा लगी जो देश को एक सूत्र में जोड़ने में सक्षम थी. महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु, सरदार पटेल, डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर आदि का मानना था कि अकेली हिंदी में ही इतनी ताकत है, जिसके माध्यम से कश्मीर से कन्याकुमारी तक संवाद स्थापित किया जा सकता था. इसीलिए देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी जिसका लेखन एवं पठन हिंदी सदृश्य किया जाता है को देश की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया. यद्यपि दक्षिणी एवं पूर्वोत्तर भारत के लोगों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के तौर पर स्वीकारने साफ इंकार करते हुए अंग्रेजी को भी हिंदी के समानांतर राजभाषा बनाने की शर्त पूरी करवाई. यह भी पढ़ें: विश्व हिंदी दिवस: जानें 10 जनवरी को क्यों मनाया जाता है विश्व हिंदी दिवस?
लेकिन क्या इससे हिंदी भाषा की मिठास, ग्राह्य शक्ति कम हुई? पिछले कुछ सालों में हिदी भाषा विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में विकसित हुई है. अब हिंदी के प्रति प्रेम का इससे बड़ा प्रमाण भला क्या हो सकता है? यकीनन हिंदी बहुत प्यारी भाषा है. हम इसका उपयोग किसी न किसी रूप में रोज ही करते हैं. स्कूलों में, कॉलेजों में, उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में, दफ्तरों में, खेल के मैदान में, अस्पतालों में, टीवी एवं फिल्मों में, प्रेस कॉन्फ्रेंस में, रेस्तरां में, मॉल अथवा शॉपिंग कॉम्पलेक्स में किसी वस्तु की खरीदारी में, वॉट्सऐप पर, फेसबुक पर हिंदी में ही बहुतायत उपयोग करते रहते हैं.
हम यह बात बड़े दावे, गर्व एवं अधिकार के साथ कह सकते हैं कि भारत की मुख्य भाषा हिंदी ही है, बिना हिंदी के हम अपनी दिनचर्या को पूरी नहीं कर सकते. यह दुर्भाग्य की ही बात है कि हिंदुस्तान से अंग्रेजों को खदेड़कर बाहर निकालनेवाले ही कतिपय लोगों के कारण हिंदी को जो सम्मान मिलना चाहिए, वह अंग्रेजी को मिल रहा है. जबकि अहिंदी भाषी भी जानते हैं कि बिना हिंदी के हम अपने और अपने देश के विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते. हिंदी भाषा की महत्ता को हम हमारे प्रिय कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र की इन पंक्तियों से आसानी से समझ सकते हैं.
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल,
अर्थात... निज यानी अपनी ही भाषा से उन्नति संभव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूल आधार है. निज भाषा के ज्ञान के बिना ह्रदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है.
आइये आज हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि देशहित एवं जनहित के लिए अपनी मूलभाषा हिंदी को उसका सही अधिकार दिलाने तथा हिंदी को और आगे ले जाने की पूरी कोशिश करेंगे.
क्योंकि... हिंदी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तां हमारा...हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं