Residual Cancer: रेडियोथेरेपी के बाद भी रह सकता है रेजिडुअल कैंसर, वैज्ञानिकों ने दी सिर्फ स्कैन के नतीजों पर निर्भर नहीं रहने की सलाह

न्यूयॉर्क, 23 मार्च : वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि रेडियोथेरेपी के बाद भी शरीर में सूक्ष्म कैंसर कोशिकाएं बच सकती हैं. रेडियोथेरेपी के बाद भी बचे रह गए माइक्रोस्कोपिक कैंसर के दीर्घकालिक परिणाम भी घातक हो सकते हैं. इस बारे में शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है. जब आमतौर पर स्कैन से पता चलता है कि ट्यूमर खत्म हो गया है लेकिन फिर भी उसके अवशेष बचे रह सकते हैं. यह समस्या मरीजों के लंबे समय तक स्वस्थ रहने की संभावना को भी कम कर सकती है.

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो मेडिकल सेंटर के डॉ. मुजामिल अरशद और उनके सहयोगियों ने ऑन्कोटारगेट जर्नल में प्रकाशित एक नए लेख में कैंसर के इलाज में कैंसर के अवशेष की चिंता के बारे में उजागर किया है. उन्होंने सुझाव दिया कि कैंसर उपचार की सफलता को मापने के तरीके पर दोबारा विचार करने की जरूरत है, खासकर इलाज के बाद कैंसर की निगरानी कैसे की जाए. यह भी पढ़ें : Chandigarh Grenade Attack: एनआईए ने रिंदा, हैप्पी समेत चार बब्बर खालसा आतंकवादियों के खिलाफ दायर किया आरोपपत्र

रेडियोथेरेपी की एक विशेष तकनीक स्टिरियोटैक्टिक एब्लेटिव रेडियोथेरेपी (एसएबीआर) का उपयोग फेफड़ों, लिवर, प्रोस्टेट और अन्य अंगों के कैंसर के इलाज में किया जाता है. यह बहुत सटीक रूप से उच्च मात्रा में रेडिएशन पहुंचाती है और स्कैन में अच्छे नतीजे दिखाती है. लेकिन शोधकर्ताओं ने बताया कि सिर्फ स्कैन पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है.

कई मामलों में महीनों या वर्षों बाद की गई बायोप्सी (ऊतक परीक्षण) में कैंसर कोशिकाएं पाई जाती हैं, जिन्हें स्कैनिंग तकनीक पकड़ नहीं पाती. लेखकों के अनुसार, जांच में यह पाया गया कि फेफड़ों के कैंसर के 40 प्रतिशत, गुर्दे के कैंसर के 57 से 69 प्रतिशत, प्रोस्टेट कैंसर के 7.7 से 47.6 प्रतिशत और लीवर के कैंसर के 0 से 86.7 प्रतिशत मामलों में कैंसर के कुछ अंश रह जाते हैं. यहां स्कैन और टिश्यू जांच के नतीजों में अंतर होने से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं.

अगर शरीर में कुछ भी कैंसर कोशिकाएं बची रह जाती हैं, तो भविष्य में कैंसर लौटने की संभावना बढ़ जाती है. यह समस्या सिर्फ एक जगह तक सीमित नहीं रहती, बल्कि शरीर के अन्य भागों में भी कैंसर फैल सकता है. खासकर मलाशय (रेक्टल), गर्भाशय ग्रीवा (सर्वाइकल), प्रोस्टेट और लिवर कैंसर में यह खतरा अधिक देखा गया है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर स्कैन में ट्यूमर पूरी तरह गायब दिखता है, तो भी इसका मतलब यह नहीं कि कैंसर पूरी तरह खत्म हो गया है. कैंसर विशेषज्ञों को सिर्फ स्कैन के नतीजों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि अतिरिक्त जांच और निगरानी की जरूरत है. ऐसा करने से इलाज के दीर्घकालिक परिणाम बेहतर हो सकते हैं और मरीजों को अधिक सुरक्षित रखा जा सकता है.