नई दिल्ली: विपक्षी पार्टियां मणिपुर हिंसा का हवाला देते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion) लेकर आई है. कांग्रेस के गौरव गोगोई ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जिसे पचास सांसदों के समर्थन के बाद लोकसभा स्पीकर ने स्वीकार कर लिया. अब गुरुवार को अविश्वास प्रस्ताव को लेकर लोकसभा स्पीकर सभी दलों के प्रमुख नेताओं से चर्चा करेंगे. चर्चा इस बात पर होगी कि अविश्वास प्रस्ताव पर किस दिन चर्चा हो और किस दल को कितना समय दिया जाए. सदन में आज फिर भारी हंगामे के आसार है. मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर की मंजूरी, तारीख और समय तय होना बाकी.
क्या है अविश्वास प्रस्ताव
किसी मुद्दे पर अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है. जैसा इस बार मणिपुर को लेकर है. उस मुद्दे को लेकर लोकसभा का सांसद नोटिस देता है. इस बार कांग्रेस के तरुण गोगोई ने दिया. नोटिस दिया है. फिर उस नोटिस को अगर 50 सांसदों का समर्थन मिलता है तो बहस होती है. गौरव गोगोई ने जो नोटिस दिया उसे पचास सांसदों ने समर्थन दिया अब उस पर बहस होगी और बहस के बाद वोटिंग भी होगी. बहस में विपक्ष की ओर से आरोप लगाए जाएंगे और सरकार की ओर से उन आरोपों का जवाब दिया जाएगा. बहस के बाद वोटिंग होगी.
बहुमत में केंद्र तो क्यों अविश्वास प्रस्ताव लाया है विपक्ष
मोदी सरकार पूर्ण बहुमत में है और सरकार को अविश्वास प्रस्ताव से कोई खतरा नहीं है विपक्ष यह भलीभांति जानता है. अविश्वास प्रस्ताव को लाने के लिए 50 सांसदों के समर्थन की जरूरत होती है लेकिन अविश्वास प्रस्ताव से किसी सरकार को खतरा हो उसके लिए सदन में मौजूद और वोट करने वाले सदस्यों में से 50 फीसदी से ज्यादा का समर्थन होना चाहिए.
मोदी सरकार को इस अविश्वास प्रस्ताव से कोई खतरा नहीं है. मोदी सरकार अपने दम पर बहुमत में है इसलिए सरकार निश्चिंत है. मोदी सरकार के पास 329 सांसदों की संख्या है वहीं विपक्ष के पास सिर्फ 142 सांसदों का संख्या बल है. ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव लाने के पीछे विपक्ष का मकसद सिर्फ पीएम मोदी को मणिपुर के मुद्दे पर सदन में घेरना है.
बीते नौ वर्षों में यह दूसरा अवसर होगा जब मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी. इससे पहले, जुलाई, 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था. इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने मत दिया था. इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है.