अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने एक बहुत बड़ा ऐलान किया है. वो साल 2030 तक चांद पर एक परमाणु रिएक्टर, यानी एक छोटा न्यूक्लियर पावर प्लांट, लगाना चाहती है. इस योजना का मकसद चांद पर भविष्य में बनने वाली इंसानी बस्तियों के लिए लगातार बिजली मुहैया कराना है.
आखिर चाँद पर परमाणु रिएक्टर की ज़रूरत क्यों?
आप सोच रहे होंगे कि जब सोलर पैनल हैं, तो परमाणु रिएक्टर की क्या ज़रूरत. दरअसल, चांद पर दिन और रात का चक्र पृथ्वी से बहुत अलग है. चांद पर लगभग 14 दिनों तक लगातार रात रहती है. ऐसे में सोलर पैनल काम करना बंद कर देते हैं. अगर इंसानों को लंबे समय तक चाँद पर रहना है, तो उन्हें 24 घंटे बिजली की ज़रूरत होगी, जो सिर्फ एक परमाणु रिएक्टर ही दे सकता है.
यह रिएक्टर खास तौर पर चांद के दक्षिणी ध्रुव (South Pole) के लिए बहुत ज़रूरी है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां के गड्ढों में, जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती, भारी मात्रा में पानी बर्फ़ के रूप में जमा है. यह पानी न केवल पीने के काम आ सकता है, बल्कि इससे ऑक्सीजन और रॉकेट का ईंधन भी बनाया जा सकता है. इस बर्फ़ को निकालने और प्रोसेस करने वाली मशीनों को चलाने के लिए लगातार बिजली की ज़रूरत होगी.
यह सिर्फ विज्ञान नहीं, एक नई दौड़ है
NASA के अधिकारियों का कहना है कि यह सिर्फ एक वैज्ञानिक मिशन नहीं, बल्कि एक नई "चाँद की दौड़" है. इसका असली मकसद चाँद के सबसे कीमती हिस्से पर अपना दबदबा कायम करना है.
चीन और रूस भी मिलकर 2030 के दशक के मध्य तक चांद पर अपना परमाणु रिएक्टर बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं. अमेरिका को डर है कि जो भी देश पहले वहां पहुंचेगा, वो उस इलाके पर अपना हक़ जमा लेगा और दूसरों को वहां आने से रोक सकता है. NASA के एक बड़े अधिकारी, शॉन डफी ने साफ़ कहा, "यह चाँद की सबसे अच्छी जगह है. हमें वहां सबसे पहले पहुँचना होगा और अमेरिका के लिए उस पर दावा करना होगा."
क्या हैं इस योजना की चुनौतियां?
यह योजना सुनने में जितनी बड़ी है, इसकी राह में मुश्किलें भी उतनी ही बड़ी हैं.
- समय की कमी: NASA ने इस प्रोजेक्ट के लिए बहुत तेज़ी से काम करने का लक्ष्य रखा है. अगले 30 दिनों में एक प्रोग्राम मैनेजर नियुक्त करना है और 60 दिनों में कंपनियों से प्रस्ताव मँगवाने हैं.
- पैसे की समस्या: सबसे बड़ी चुनौती बजट की है. एक तरफ तो इस रिएक्टर प्रोजेक्ट के लिए करोड़ों डॉलर ($350 मिलियन से $500 मिलियन) रखे जा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ NASA के कुल बजट में भारी कटौती की जा रही है. यह दशकों में NASA का सबसे छोटा बजट हो सकता है. इस वजह से कई दूसरे वैज्ञानिक मिशन और कर्मचारियों की नौकरियों पर भी तलवार लटक रही है.
कुल मिलाकर, NASA ने चांद पर अपनी बादशाहत कायम करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई है. लेकिन पैसे की कमी और कम समय जैसी चुनौतियां इस सपने को हकीकत में बदलने की राह में बड़े रोड़े अटका सकती हैं. आने वाले कुछ साल तय करेंगे कि चाँद पर पहले कौन अपना "बिजली घर" बनाता है.













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