रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ रहे हैं. क्या है इस यात्रा का मुख्य एजेंडा?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

राष्ट्रपति पुतिन भारत आ रहे हैं. मॉस्को और नई दिल्ली के रिश्ते, खासकर भारत के रूस से तेल खरीदने पर ट्रंप की टेढ़ी नजर है. क्या ट्रंप की चेतावनियों के आगे पुतिन, भारत को कारगर कवच और राहत दे पाएंगे?रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर 4 और 5 दिसंबर को भारत में होंगे. वह भारत और रूस के बीच हो रहे 23वें सालाना सम्मेलन में रूसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे.

उनकी इस यात्रा के दौरान भारत और रूस के बीच रक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में समझौते होने की उम्मीद है. रूसी राष्ट्रपति के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने बताया कि भारत से आयात बढ़ाने की संभावनाओं के साथ-साथ पुतिन, एस-400 मिसाइल सिस्टम और एसयू-57 लड़ाकू विमानों के निर्यात को भी प्रमुखता देंगे.

अमेरिकी टैरिफ के कारण हुए कारोबारी नुकसान की भरपाई का रास्ता खोजना फिलहाल भारत के लिए एक बड़ी प्राथमिकता है. इसमें रूस बड़ी भूमिका निभा सकता है.

हालांकि, तमाम गर्मजोशियों के बावजूद ट्रंप फैक्टर एक चिंता का विषय बना हुआ है. खबरों के मुताबिक, भारतीय अधिकारियों को चिंता है कि रूस के साथ कोई भी नया ऊर्जा या रक्षा करार ट्रंप को और ज्यादा नाराज करने की वजह बन सकता है. भारत को उम्मीद है कि साल के अंत तक अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौता हो जाएगा.

आयात बढ़ाकर भारत को राहत देने की कोशिश?

रूस अभी भारत के साथ करीब 70 अरब डॉलर का व्यापार करता है. भारत के आयात की तुलना में यह बेहद असंतुलित है. दोनों देश द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक ले जाना चाहते हैं. भारत चाहता है कि दवा, कृषि और कपड़े के क्षेत्र में वह रूस को ज्यादा माल निर्यात करे. रूस ने भी स्पष्ट संकेत दिया है कि वह भारत से आयात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

क्या भारत अब रूसी तेल की खरीदारी बंद करने वाला है?

मसलन, रूस का सबसे विशाल बैंक 'एस्बरबैंक' भारत से औद्योगिक आयात और कामगारों का माइग्रेशन बढ़ाने पर काम कर रहा है. ये कोशिशें अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच भारत को राहत देने पर लक्षित हैं.

जैसा कि बैंक के डेप्युटी सीईओ अलेक्जांदर वेदयाखिन ने रॉयटर्स से कहा, "अपने ग्राहकों की मदद के लिए हम अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं. तो इसका मतलब ना केवल भारत को निर्यात करना है, बल्कि भारत से आयात करना भी है."

अगर भारत और चीन रूसी तेल खरीदना बंद कर दें तो क्या होगा?

वेदयाखिन ने बताया कि एस्बरबैंक 6,000 से ज्यादा ऐसे भारतीय फर्मों के साथ काम कर रहा है, जिनके पास रूस के साथ व्यापार का कोई अनुभव नहीं है. उन्होंने यह भी बताया कि एस्बरबैंक अपने रूसी ग्राहकों को यह बता रहा है कि मशीन निर्माण, दवा और आईटी सेक्टरों में भारत की स्थिति मजबूत है. उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि रूस ऊर्जा निर्यात से जो भारतीय मुद्रा कमाता है, उसी में भारतीय उत्पादों की खरीद का भुगतान किया जा सकता है.

भारत-रूस के रिश्तों पर ट्रंप का साया?

पुतिन पिछली बार साल 2021 में भारत आए थे. नरेंद्र मोदी भी पिछले साल रूस गए. इस साल सितंबर में चीन में हुए 'शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन' के सम्मेलन में भी पुतिन और मोदी की मुलाकात हुई थी.

दोनों देशों में पुरानी दोस्ती है. साल 1947 में आजाद देश बनने के बाद यूं तो भारत ने 'गुटनिरपेक्षता' की घोषित नीति अपनाई, लेकिन जल्द ही कई मामलों में सोवियत संघ की ओर उसका झुकाव बढ़ने लगा.

ये नजदीकियां एक नए राष्ट्र के तौर पर भारत की आर्थिक और सामरिक जरूरतों से भी उपजीं. एक ओर पाकिस्तान, दूसरी ओर चीन की दोहरी चुनौती और एक के बाद एक लड़े गए कई युद्धों के दौर में बहुत मौके आए, जब भारत को सोवियत संघ से अहम मदद मिली.

भारत को हथियारों की जरूरत थी, तो सोवियत संघ उसका सबसे बड़ा सप्लायर बना. 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और बांग्लादेश के गठन के समय जटिल भूराजनीतिक स्थितियों में जब अमेरिका और चीन, इस्लामाबाद के साथ थे, तब सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया था.

फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भी भारत ने पश्चिमी देशों और रूस के बीच संतुलन बनाकर रखा. उसने रूस के साथ अपने करीबी रिश्तों का मुखरता से बचाव किया और संप्रभु राष्ट्र के तौर पर अपने हितों के अनुरूप स्वतंत्र विदेश नीति को जायज ठहराया.

कैसे काम करता है सस्ते रूसी तेल का गणित?

मगर अब, दोनों देशों के बीच कायम दशकों पुराने व्यापारिक-सामरिक सहयोग में डॉनल्ड ट्रंप एक बड़ा व्यवधान बन गए हैं. वॉशिंगटन और नई दिल्ली के बीच पनपे हालिया तनाव की पृष्ठभूमि में पुतिन का भारत भ्रमण कूटनीतिक रूप से और भी अहम माना जा रहा है.

पहले कार्यकाल के दौरान, मोदी सरकार के साथ ट्रंप के रिश्ते कमोबेश बढ़िया रहे. मगर, दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही ट्रंप धागा खींचने लगे. व्यापारिक असंतुलन से शुरू हुआ असंतोष गंभीर तनाव में बदल गया. ट्रंप की चेतावनियों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया.

भारत बनाम अमेरिका: कारोबारी विवाद किसे पड़ेगा ज्यादा भारी?

भारत का तर्क है कि अपनी बड़ी आबादी के मद्देनजर बढ़ते ऊर्जा खर्च को पूरा करने के लिए यह आयात जरूरी है. वहीं, अमेरिका का आरोप है कि तेल की खरीद रूस को फंड मुहैया करा रही है, जिसकी मदद से वह यूक्रेन में युद्ध लड़ रहा है. रूसी तेल की खरीद के कारण ही ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जिससे कुल ड्यूटी बढ़कर 50 फीसदी हो गई.

अब रूस की बड़ी तेल कंपनियों पर लगे अमेरिकी टैरिफ के कारण भारत की मुश्किलें बढ़ी हैं. समाचार एजेंसी एपी ने भारतीय अधिकारियों के हवाले से बताया है कि भारत प्रतिबंधित उत्पादकों से तेल खरीदने से बचेगा. जो कंपनियां अभी सेंक्शन के दायरे से बाहर हैं, उनसे तेल खरीदने का विकल्प खुला रखा गया है.

रॉयटर्स के मुताबिक, ज्यादातर भारतीय रिफाइनर रूसी कंपनियों से तेल की खरीद बंद कर कर रहे हैं. अब उन कंपनियों से तेल खरीदने पर ध्यान दिया जा रहा है, जिनपर सेंक्शन नहीं लगा है. रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इंडियन ऑइल ने दिसंबर और जनवरी के लिए ऐसी ही कुछ रूसी कंपनियों को ऑर्डर दिया है. वहीं, भारत पेट्रोलियम भी ऑर्डर को आखिरी रूप देने के करीब है.

रूस पर लगाए गए नए प्रतिबंधों से ईयू-भारत संबंधों पर कितना असर होगा?

रूसी तेल की खरीदारी में आई कमी पर मॉस्को ने उम्मीद जताई कि यह अस्थायी हो सकता है. रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने नई दिल्ली में भारतीय पत्रकारों से बातचीत में यह बात कही. हालांकि, यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या निकट भविष्य में भारत रूसी तेल की खरीद पूरी तरह बंद कर देगा, या उसे बंद करना पड़ेगा?

पुतिन की यात्रा के मद्देनजर भी यह सवाल अहम है. हालांकि, कई विशेषज्ञ इस संभावना को खारिज करते हैं. हर्ष पंत, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन नाम के थिंक टैंक में विदेश नीति मामलों के उपाध्यक्ष हैं. उन्होंने एपी से बताया, "निश्चित तौर पर भारत जोर देगा कि रूस से पूरी तरह ऊर्जा आयात खत्म करने का उसका कोई इरादा नहीं है."

तेल की खरीद से इतर भी रूस, ऊर्जा क्षेत्र में भारत का अहम सहयोगी है. इसका एक बड़ा अध्याय है, तमिलनाडु के कुडनकुलम में रूसी सहयोग से बना परमाणु ऊर्जा संयंत्र. दोनों देश परमाणु ऊर्जा में आपसी सहयोग और बढ़ाना चाहते हैं.

रक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी फोकस

सामरिक क्षेत्र में पहले सोवियत संघ, फिर रूस, भारत का पुराना और भरोसेमंद सप्लायर है. भारत दशकों से रूसी हथियारों का बड़ा ग्राहक है. बीते सालों में भारत अपने सैन्य उपकरणों और हथियारों की खरीद में विविधता लाया है, लेकिन अब भी रूस उसका सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता है.

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम मोदी को किया फोन, जानिए क्या बात हुई

विशेषज्ञों के मुताबिक, पुतिन की ताजा यात्रा में भारत जमीन से हवा में वार करने वाले एस-400 मिसाइल स्क्वॉर्डन की तेज आपूर्ति पर जोर देगा. इस संबंध में दोनों देशों के बीच साल 2018 में करार हुआ था. भारत को तीन एस-400 की खेप मिल चुकी है, लेकिन दो की सप्लाई बाकी है. यूक्रेन में जंग छिड़ने के बाद आपूर्ति शृंखला में आई दिक्कतों के कारण डिलिवरी में देर हो रही है.

इसके अतिरिक्त, एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों को अपग्रेड किए जाने और मिलिट्री हार्डवेयर की आपूर्ति को तेज करने पर भी चर्चा होने का अनुमान है. रूस, भारत को एसयू-57 फाइटर जेट बेचना चाहता है, लेकिन भारत ने दूसरे विकल्प भी खुले रखे हैं.

यूक्रेन युद्ध खत्म करने में परोक्ष भूमिका निभा सकता है भारत?

पुतिन की यात्रा यूक्रेन के लिए प्रस्तावित शांति योजना के मद्देनजर भी अहम है. अमेरिका, यूक्रेन युद्ध खत्म करने पर जोर दे रहा है. अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही यूक्रेन को लेकर ट्रंप का रवैया आक्रामक रहा.

अलास्का में पुतिन के साथ हुई चर्चित मुलाकात के कुछ दिनों बाद तक भी ट्रंप की शांति योजना पर काफी चिंताएं थीं, इसे रूस की तरफ ज्यादा झुका हुआ माना जा रहा था. बीते दिनों अमेरिकी और यूक्रेनी अधिकारियों की जेनेवा में हुई बैठक के दौरान प्रस्ताव की समीक्षा की गई.

प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन में शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन किया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद उन्होंने यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस और पुतिन की सीधी निंदा नहीं की है.

भारत पर लगे ट्रंप के टैरिफ की चपेट में कश्मीरी कारीगर

श्रीराम सुंदर चौलिया, जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में विदेश मामलों के विशेषज्ञ हैं. यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख का विश्लेषण करते हुए उन्होंने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि नई दिल्ली, मॉस्को और कीव के बीच मध्यस्थता की प्रकट भूमिका लेने से बचता आया है, क्योंकि यह रूस और अमेरिका दोनों के साथ उसके संबंध को जटिल बना सकता है.

श्रीराम सुंदर के मुताबिक, "मगर मोदी द्वारा परदे के पीछे कूटनीति करना संभव है. कुछ हद तक यह हुआ भी है." उन्होंने आगे जोड़ा कि मोदी, पुतिन को इस दिशा में प्रोत्साहित कर सकते हैं कि वह युद्ध खत्म करने की दिशा में यूक्रेन और यूरोपीय देशों की कुछ चिंताओं को जगह देने पर राजी हों.