जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान COVID-19 की ओर लगाया, महामारी से जंग में निभाया अहम रोल
कोरोना वायरस (Photo Credits: PTI)

नई दिल्ली: भारत में इस साल जनवरी के आखिरी सप्ताह में कोविड-19 का पहला मामला सामने आया था और तब से वैज्ञानिक तेजी से फैलने वाली इस बीमारी की उत्पत्ति का पता लगाने, नैदानिक जांच और टीका विकास जैसे अहम अनुसंधान कार्यों में जुटे हैं. कई ने तो कोविड-19 के हिसाब से अपना अनुसंधान बदल दिया तो कई अन्य ने इस महामारी को पराजित करने की ज्वलंत और तात्कालिक जरूरत के चलते नए सिरे से शुरुआत की.  No Corona, Corona No: नए कोविड-19 स्ट्रेन के लिए केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने दिया नया ‘नो कोरोना, कोरोना नो’ नारा

एक साल गुजर जाने के बाद वैज्ञानिकों के प्रयास रंग लाने लगे हैं और भारतीय वैज्ञानिक सीमित वित्तपोषण एवं संसाधनों के बावजूद इस बीमारी के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर हैं. उदाहरण के लिए भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला आने से पहले ही देबाज्योति चक्रवर्ती (Debajyoti Chakravarthi) ने अनुमान व्यक्त किया था कि वैज्ञानिकों का काम निर्धारित है और समय रहते प्रयास शुरू हो गए.

जनवरी में दिल्ली के सीएसआईआर -इंस्टिट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायलॉजी में चक्रवर्ती और उनकी टीम ‘जीन एडिटिंग’ प्रौद्योगिकी सीआरआईएसपीआर के आधार पर ‘सिकल सेल एनीमिया’ की नैदानिक जांच के लिए प्रोटोटाइप पर काम कर रही थी.

चक्रवर्ती ने पीटीआई- से कहा, ‘‘इस महामारी के बारे में सूचना सामने आई और हम सार्स-कोव-2 वायरस की दिशा में मुड़ने लगे तथा जरूरी सूचनाएं जुटाने लगे.’’