फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि पूजन का विधान है. इस पर्व पर पूरे दिन उपवास रखा जाता है. शिव पुराण में उल्लेखित है कि महाशिवरात्रि पर हर प्रहर में शिवलिंग पर जल और बिल्वपत्र चढ़ाकर पूजा किया जाता है. महाशिवरात्रि की मुख्य पूजा चतुर्दशी के दिन मनायी जाती है. 21 फरवरी को त्रयोदशी के दिन जो लोग शिवजी की पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो वे 22 फरवरी को भी महाशिवरात्रि की तिथि तक पूजा कर सकते हैं.
आइये जानें किस दिन महाशिवरात्रि की पूजा करने से यथेष्ट फल की प्राप्ति होगी और शिवजी की पूजा विधि तथा व्रत कथा क्या है.
किस दिन रखें व्रत और करें पूजा:
ज्योतिषियों के अनुसार इस वर्ष 21 फरवरी की शाम 05.20 मिनट पर त्रयोदशी की तिथि समाप्त होने के साथ ही चतुर्दशी की तिथि शुरू हो जाएगी. यानी 21 फरवरी की शाम 05.20 बजे से शुरु होकर अगले दिन शनिवार 22 फरवरी की सायंकाल 07.02 बजे तक महाशिवरात्रि का योग बना है. शिवजी की पूजा रात्रि 06.41 से देर रात 12.52 बजे तक की जा सकती है. शिव पूजा विधान के अऩुसार इस रात चार प्रहर की पूजा होती है.
पूजा विधि:
महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर मस्तष्क पर चंदन से त्रिपुण्ड तिलक लगाएं और रुद्राक्ष की माला धारण कर शिव जी के व्रत का संकल्प लें. इसके पश्चात पास के किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र, बेर, धतूरा, अक्षत, लाल पुष्प चढ़ाकर जलाभिषेक करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।
इसके बाद दिन भर उपवास रहते हुए केवल फलाहार ग्रहण करें. ध्यान रहे कि उपवास काल में किंचित गुस्सा न करें, किसी के प्रति द्वेष, ईर्ष्या, चिढचिढ़ेपन का प्रदर्शन नहीं करें. असत्य न बोलें, मन में काम भावना नहीं आने दें. मन को जितना एकाग्र एवं शांत रखेंगे शिवजी की पूजा उतनी ही ज्यादा फलीभूत होगी. सायंकाल प्रदोषकाल में शिवजी का विशेष पूजा-अर्चना करें. चारों प्रहर शिव-पूजा करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अभीष्ठ फलों की प्राप्ति होती है.
महाशिवरात्रि व्रत कथा:
किसी भी व्रत की महिमा उससे संबंधित कथा वाचने अथवा श्रवण करने से पूरी होती है. प्राचीनकाल में काशी के एक जंगल में गुरुद्रुह नामक एक भील रहता था. वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपना परिवार पालता था. एक बार शिवरात्रि के दिन वह जंगल में शिकार करने गया. पूरे दिन और देर रात तक अथक कोशिशों के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिला. रात हो गई तो वह एक झील के किनारे स्थित पेड़ पर यह सोच कर चढ़ गया कि शायद कोई जानवर पानी पीने आये तो वह शिकार कर लेगा. संयोग से वह जिस वृक्ष पर चढ़ा वो बिल्ववृक्ष था और उसके नीचे शिवलिंग स्थापित था.
थोड़ी देर बार एक हिरणी पानी पीने आई. शिकारी ने ज्यों ही धनुष पर तीर चढ़ाया, बिल्ववृक्ष के कुछ पत्ते नीचे शिवलिंग पर जा गिरे, और उसके हाथ में रखे पानी के बोतल से पानी भी शिवलिंग पर गिरा. इस तरह अनजाने में रात्रि के पहले प्रहर की शिवजी की पूजा हो गयी. उधर हिरणी जंगल की ओर भाग गयी. थोड़ी देर बाद एक और हिरणी पानी पीने आई, शिकारी ने पुनः धनुष पर तीर चढ़ाया, इससे वृक्ष के हिलने से पुनः कुछ बिल्वपत्र और जल नीचे शिवलिंग पर गिरे. हिरणी पुनः भाग गई, लेकिन शिकारी से पुनः अनजाने में दूसरे प्रहर की पूजा हो गयी. इसके हिरण का परिवार भी पानी पीने आया, फिर वैसा ही सब कुछ हुआ. यह तीसरे प्रहर की पूजा हुई, इस बार भी हिरण का परिवार भागकर अपनी जान बचाने में सफल रहा. इसके बाद हिरण का पूरा कुनबा झुंड बनाकर झील के पास पहुंचा, शिकारी पुनः खुश होकर उन हिरण की झुंड पर तीर चलाना चाहा, इस बार भी खड़खड़ाहट से हिरण झुंड समेत भाग खड़े हुए. लेकिन शिकारी ने अनजाने में ही पूरे दिन भूखे रहकर चौथे प्रहर की भी पूजा कर ली.
इस व्रत के प्रभाव से शिकारी के सारे पाप नष्ट हो गये. जिसके कारण उसके मन में पशुओं के प्रति प्यार उपजा, उसने शिकार नहीं करने का फैसला कर लिया. प्रातःकाल शिकार नहीं कर पाने के कारण उदास चेहरे के साथ वह पेड़ से उतर ही रहा था कि भगवान शिव प्रकट हुए और उस पर प्रसन्न होते हुए उसे वरदान दिया कि त्रेता युग में श्रीराम तुम्हारे घर आएंगे और तुमसे मित्रता करेंगे, तो तुम पर अबोध पशुओं की हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होगी.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.