आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दुनिया का सबसे अनूठा पर्व है पुरी का भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा. इस महान पर्व को देखने प्रति वर्ष दुनिया भर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), बलराम और सुभद्रा के प्रति प्रेम, भक्ति, करुणा, श्रद्धा, एवं आत्म अहंकार के त्याग का महोत्सव है. मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ का दर्शन मात्र से मनुष्य जीवन सफल हो जाता है. प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की द्वितीया के दिन भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा निकाली जाती है, जो जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर श्री गुंडिचा मंदिर तक जाती है. भगवान जगन्नाथ यात्रा के तर्ज पर ही सम्पूर्ण भारत में विभिन्न स्थानों पर यह आयोजन किया जाता है.
क्यों होती है यह रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा की इच्छा अनुसार अपनी मौसी (गुंडिचा मंदिर) के पास छुट्टियां मनाने जाते हैं. इसलिए इसे ‘गुंडिचा यात्रा’ नाम से भी जाना जाता है. रथ यात्रा से एक दिन पूर्व भगवान जगन्नाथ के विश्राम के लिए गुंडिचा मंदिर की श्रद्धालुओं द्वारा सफाई की जाती है. इसे ‘गुंडिचा माजन’ कहते हैं. मंदिर की सफाई के लिए जल इन्द्रद्युम्न सरोवर से ही लाया जाता है. Jagannath Rath Yatra 2023: पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा की तैयारियां जोरों पर, ओडिशा कॉयर बोर्ड ने रथों को खींचने के लिए सौंपी 26 रस्सियां
जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के रथों में भिन्नता
जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र तीन अलग-अलग रथों में यात्रा करते हैं. इसे रथों का त्यौहार भी कहते हैं. इन रथों के नाम क्रमशः नंदीघोष, तालध्वज और देवदलन है. भगवान जगन्नाथ का रथ नंदी घोष 45.6 फीट ऊंचा और 18 पहियों पर चलता है, और इस रथ पर लाल एवं पीले रंग के कपड़े लगे होते हैं. बलभद्र का रथ तलाध्वजा 45 फीट ऊंचा और 16 पहियों से युक्त होते हैं. इस पर लाल एवं हरे रंग के कपड़े लगे होते हैं. सुभद्रा का रथ देवदलन 44.6 फीट ऊंचा और 14 पहियों पर चलता है, तथा लाल हरे कपड़ों से बना होता है.
राजा लगाता है झाड़ू
भले ही भारत में राजशाही व्यवस्था समाप्त हो चुकी है, लेकिन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पुरी के राजा द्वारा स्वर्ण निर्मित झाड़ू पुरी के रास्ते पर झाड़ू लगाया जाता है. इसके पश्चात भगवान जगन्नाथ औपचारिक यात्रा के लिए मंदिर से बाहर निकलते हैं. राजा द्वारा झाड़ू लगाने वाले दृश्य को देखने के लिए इस स्थान पर लाखों भक्त एकत्र होते हैं.
जब रथ टस से मस नहीं होता
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार भगवान जगन्नाथ की रथ को जब खींचा जाता है, तो वह टस से मस नहीं होता. इसके बाद से रथ को खींचने के लिए और भी सैकड़ों लोग रथ को धक्का देते हैं, इसके बावजूद रथ एक इंच भी नहीं खिसकता. इसके बाद पूजा की सारी प्रक्रियाएं निभाई जाती है. और एक बार फिर रथ खींचने की प्रक्रिया शुरू होती है, लोग यह देखकर हैरान हो जाते हैं कि थोड़े से लोग मिलकर रथ को खींचने में सफल हो जाते हैं, और इस तरह यह रथ यात्रा शुरू होती है.
रथयात्रा में प्रकृति की विवशता
रथ यात्रा के दरम्यान रथ जिस-जिस रास्ते से गुजरता है, भक्तों की भारी भीड़ जमा होती जाती है. लेकिन इस यात्रा में शामिल लोग यह देखकर हैरान होते हैं कि तीनों रथों पर जो ध्वजा और कपड़े प्रयोग किये जाते हैं, वह वायु के प्रवाह के विपरीत दिशा में लहराता है. यानी अगर वायु पूर्व से पश्चिम की ओर बहता है, तो ध्वजा पश्चिम से पूर्व की ओर लहराता है. आज तक इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण भी नहीं मिले हैं. भक्त तो इसे भगवान जगन्नाथ का चमत्कार ही मानते हैं.
गुंडिचा मंदिर क्यों जाते हैं भगवान जगन्नाथ
इतिहासकारों के अनुसार गुंडिचा मंदिर का निर्माण वस्तुतः गुंडिचा नामक रानी ने करवाया था. बाद में उन्हें जगन्नाथ जी की मौसी माना जाने लगा. भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के गुंडिचा मंदिर पहुंचने पर स्थानीय भक्तों द्वारा तीनों का स्वागत किया जाता है. उनकी सेवा की जाती है, उनके लिए कई प्रकार के पकवान चढ़ाए जाते हैं. नौ दिनों के बाद तीनों देवता घर वापस लौटते हैं.