चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव के बीच हरियाणा में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. हरियाणा में तीन निर्दलीय विधायकों के बीजेपी से अलग होने के बाद हरियाणा की सरकार अल्पमत में आ गई है. निर्दलीय विधायकों ने मंगलवार को राज्य की नायब सिंह सैनी (Nayab Singh Saini) के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की. तीन विधायकों में सोमबीर सांगवान, रणधीर गोलेन और धर्मपाल गोंदर शामिल हैं. इन विधायकों ने चुनाव के दौरान कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है. हरियाणा में सरकार पर गहराया सियासी संकट, 3 निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी से वापस लिया समर्थन.
निर्दलीय विधायक गोंडर ने कहा, "हम राज्य सरकार से समर्थन वापस ले रहे हैं. हम कांग्रेस को अपना समर्थन दे रहे हैं. हमने किसानों से जुड़े मुद्दों सहित विभिन्न मुद्दों पर यह निर्णय लिया है.'' तीन निर्दलीय विधायकों के अलग होने के बाद अब यही चर्चा है कि क्या हरियाणा सरकार गिर जाएगी?
हरियाणा सरकार का नंबर गेम
वर्तमान में हरियाणा की नायब सैनी सरकार को 48 विधायकों का समर्थन प्राप्त था, जिसमें बीजेपी के 41, हरियाणा लोकहित पार्टी के एक विधायक गोपाल कांडा और छह निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त था. पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और रणजीत चौटाला पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं. इसके बाद यह आंकड़ा बीजेपी के पास 46 का रह गया था.
तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद सरकार के पास इस वक्त 43 विधायकों का समर्थन रह गया है. नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंदर, चरखी दादरी से विधायक सोमवीर सांगवान और पुंडरी से विधायक रणधीर गोलन अपना समर्थन वापिस ले चुके हैं.
फिलहाल हरियाणा विधानसभा में 90 में से 88 सदस्य हैं. करनाल विधानसभी सीट पर उपचुनाव होने हैं, क्योंकि पूर्व सीएम मनोहर लाल ने इस्तीफा देकर यह सीट मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के चुनाव लड़ने के लिए खाली की थी. अगर नायब सैनी चुनाव जीत जाते हैं तो यह आंकड़ा 44 हो जाएगा लेकिन बहुमत की संख्या 45 होगी जो सरकार के पास नही है. यानी सरकार अल्पमत में रहेगी.
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के पास 30 विधायक, जननायक जनता पार्टी के 10 विधायक हैं. बीजेपी के 40 विधायक हैं. जबकि निर्दलीयों की संख्या 7 से 6 हो चुकी है क्योंकि रणजीत चौटाला इस्तीफा दे चुके हैं. एक इंडियन नेशनल लोक दल के विधायक अभय चौटाला है. विपक्ष के पास इस समय 45 विधायक हैं.
कांग्रेस ला सकती है अविश्वास प्रस्ताव?
भविष्य में विधानसभा में विश्वास मत लाया जाता है तब सरकार के लिए मुसीबत की घड़ी खड़ी हो सकती है. लेकिन, कांग्रेस इससे पहले बजट सत्र में अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ लेकर आई थी जो ध्वनि मत से गिर गया था और सरकार जीत गई थी. क्यों कि दो अविश्वास प्रस्ताव के बीच 6 महीने का समय होना जरूरी है. इस आधार पर अब 6 महीने तक सदन में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता, जिससे बीजेपी खुद को राहत महसूस कर सकती है.