बिहार: बढ़ती नजर आ रही है नीतीश और बीजेपी के बीच दूरियां, लगातार बयानबाजी से गठबंधन के भविष्य पर उठ रहे हैं सवालिया निशान
नीतीश कुमार, गिरिराज सिंह और अमित शाह (Photo Credits: PTI)

बिहार विधानसभा का चुनाव (Bihar Assembly Elections) अगले साल होना है लेकिन सूबे की सियासत में अभी से ही हलचल देखने को मिल रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2019) में महागठबंधन को मिली करारी हार के बाद उसमें शामिल पार्टियों के बीच बिखराव और बयानबाजी तो स्वाभाविक है लेकिन 40 में से 39 सीटें जीतने वाले एनडीए (NDA) में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा. बिहार एनडीए में भी शामिल जेडीयू (JDU) और बीजेपी के नेता लगातार एक-दूसरे पर बयानबाजी कर रहे हैं. हाल के दिनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो जेडीयू और बीजेपी (BJP) के बीच कई मुद्दों को लेकर दूरियां बढ़ती नजर आ रही है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर बहस छिड़ने के बाद बीजेपी और जेडीयू के बीच जुबानी जंग तेज हुई. दरअसल, कुछ दिनों पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के विधान पार्षद संजय पासवान ने यह कहकर बिहार की सियासत में हलचल पैदा कर दी थी कि तीन कार्यकाल तक हम (भगवा दल) नीतीश कुमार के लिए खड़े रहे. अब समय आ गया है कि वह बदले में बीजेपी को एक मौका दें. संजय पासवान के इस बयान का समर्थन केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय से बीजेपी के सांसद गिरिराज सिंह समेत अन्य नेताओं ने किया था. यह भी पढ़ें- पटना में इस साल नहीं होगी रामलीला, नाराज गिरिराज सिंह ने अपनी ही सरकार को सुनाई खरी-खरी.

दूसरी तरफ, असम की तर्ज पर बिहार में भी एनआरसी लागू करने के मुद्दे ने भी बीजेपी-जेडीयू के रिश्ते तल्ख कर दिए. गिरिराज सिंह समेत बिहार बीजेपी के कई नेताओं ने बिहार में एनआरसी लागू किए जाने की बात कही तो वहीं, जेडीयू ने साफ तौर पर इससे इनकार कर दिया. इसके अलावा हाल ही में पटना जिला प्रशासन ने इस साल दशहरा के अवसर पर राजधानी में रामलीला के आयोजन पर रोक लगा दी. प्रशासन ने इसके लिए सुरक्षा कारणों का हवाला दिया. हालांकि, गिरिराज सिंह ने इस मामले पर भी बयानबाजी कर के बिहार सरकार पर तंज कसा.

उधर बुधवार को बिहार कैबिनेट की बैठक हुई थी. बैठक में पटना के बेली रोड का नाम बदलकर नेहरू पथ करने का फैसला लिया गया. हालांकि पहले ही इसका नाम जवाहर लाल नेहरू मार्ग किया गया था, लेकिन आम लोगों के जुबान पर नहीं चढ़ने की वजह से इसका नाम दोबारा बदला गया है. माना जाता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हर फैसले में राजनीतिक संदेश होता है. ऐसे में कहा जा रहा है कि इसके जरिए नीतीश कुमार ने बीजेपी को 'कुछ' संदेश देना चाहा जिसे नेहरू से किसी तरह का कोई लगाव नहीं है. यह भी पढ़ें- चुनाव आयोग ने यूपी-बिहार की 2 राज्यसभा सीटों के लिए उपचुनाव की तारीख का किया ऐलान, 16 अक्टूबर को होगा मतदान.

उल्लेखनीय है कि बिहार में अगले महीने दो उपचुनाव होने हैं. बिहार की एक राज्यसभा सीट के लिए 16 अक्टूबर को उपचुनाव होना है. दरअसल, दरअसल, राम जेठमलानी बिहार से राज्यसभा सदस्य थे और उनकी मौत के बाद खाली हुई सीट के लिए राज्यसभा उपचुनाव होना है. बता दें कि राम जेठमलानी जब राज्यसभा के लिए चुने गए थे तब बिहार में जेडीयू-आरजेडी गठबंधन था और जेठमलानी आरजेडी उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए थे. मौजूदा परिस्थिति में आरजेडी की हैसियत इस राज्यसभा सीट को जीतने की नहीं रही. ऐसे में इस सीट को एनडीए के खाते में ही जाना तय माना जा रहा है. हालांकि जेडीयू ने इस सीट पर पहला हक जता कर बीजेपी के स्थानीय नेताओं को नाराज कर दिया है.

वहीं, 21 अक्टूबर को बिहार की पांच विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है. उपचुनाव में एनडीए के उम्मीदवारों के नाम का ऐलान आज (शुक्रवार) संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में होना था. लेकिन ऐन वक्त पर संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द हो गई. इन तमाम मुद्दों को लेकर बीजेपी-जेडीयू के बीच रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती जा रही है और ऐसे में इन दोनों पार्टियों के गठबंधन के भविष्य पर खतरा मंडराने की संभावना है.