Bihar Voter List: क्या वाकई 20% वोटरों के नाम लिस्ट से कटने वाले हैं? बिहार में चुनाव से पहले भारी बवाल, विपक्ष ने EC पर लगाए गंभीर आरोप

Bihar Election 2025: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और इससे पहले ही वोटर लिस्ट रिविजन को लेकर जबरदस्त विवाद शुरू हो गया है. चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया पर विपक्षी दलों ने सवालों की बौछार कर दी है. तेजस्वी यादव ही नहीं, बिहार कांग्रेस, राजद और इंडिया गठबंधन के तमाम दलों ने इस प्रक्रिया को पक्षपातपूर्ण बताया है. बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम का आरोप है कि "चुनाव आयोग मानो यह तय करके बैठा है कि राज्य के 20% वोटरों का नाम लिस्ट से काट देना है."

इन 20% वोटरों में गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक तबके के लोग ज्यादा हैं, जो आम तौर पर विपक्ष का समर्थन करते हैं.

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 मतदाताओं को डराने की कोशिश: विपक्ष

विपक्ष का कहना है कि आयोग की यह प्रक्रिया एनआरसी को बैकडोर से लागू करने जैसी है. ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने भी साफ तौर पर कहा कि चुनाव आयोग बीजेपी के इशारे पर काम कर रहा है. विपक्ष के मुताबिक, ये सब मतदाताओं को डराने और उन्हें वोटिंग प्रक्रिया से बाहर करने की साजिश है. जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि ये प्रक्रिया वोटर लिस्ट को शुद्ध और पारदर्शी बनाने के लिए है.

चुनाव आयोग ने SIR की प्रक्रिया के लिए 24 जून को नोटिफिकेशन जारी किया, लेकिन उसके बाद तीन बार अलग-अलग नोटिफिकेशन निकालकर दस्तावेज़ों के नियमों में बदलाव किए. बड़ी बात ये है कि आधार कार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड जैसे आम दस्तावेज इस प्रक्रिया में मान्य नहीं माने गए हैं.

पलायन बना अधूरे दस्तावेज का कारण

बिहार में बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं जो बाहर काम करते हैं. उनके पास दस्तावेज अधूरे हैं और पलायन के कारण वे स्थायी पते पर नहीं रह रहे. ऐसे में इस तरह की जटिल प्रक्रिया उनके वोटिंग राइट को प्रभावित कर सकती है.

अब सवाल ये है कि बिहार जैसे गरीब राज्य में, जहां पलायन और कागजी दस्तावेजों की भारी कमी है, वहां आम जनता इतने कम समय में कैसे जरूरी कागज जुटाएगी? जो भी हो, बिहार में यह मामला अब केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन चुका है.