जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ से एक ऐसी खबर आई है, जिसे सुनकर हर कोई हैरान है और इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहा. यहां बादल फटने से आई भयानक बाढ़ के मलबे में एक शख्स करीब 30 घंटे तक दबा रहा, और फिर भी उसे जिंदा निकाल लिया गया. इस शख्स का नाम है सुभाष चंद्र.
कौन हैं सुभाष चंद्र?
सुभाष चंद्र उधमपुर के रहने वाले हैं और सालों से मचैल माता की यात्रा पर आने वाले भक्तों के लिए निस्वार्थ भाव से लंगर (मुफ्त भोजन) चलाते हैं. हर साल हजारों थके-हारे श्रद्धालु उनके लंगर में आकर खाना खाते और अपनी थकान मिटाते थे. इस साल भी उनका लंगर चल रहा था, लेकिन एक आपदा ने सब कुछ बदल दिया.
क्या हुआ था उस दिन?
14 अगस्त को किश्तवाड़ के चिशोती गांव में अचानक बादल फट गया. इसके बाद पानी और मलबे का एक भयानक सैलाब आया, जिसने अपने रास्ते में आई हर चीज को तहस-नहस कर दिया. सुभाष का लंगर भी इस सैलाब की चपेट में आ गया. उस वक्त वहां करीब 200-300 लोग मौजूद थे. देखते ही देखते पूरा लंगर मलबे में तब्दील हो गया और सुभाष समेत कई लोग उसमें दब गए.
Kishtwar after the cloudburst disaster. 💔 pic.twitter.com/JQG7B05Ome
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) August 17, 2025
30 घंटे बाद मलबे से निकली जिंदगी
हादसे के बाद सेना, पुलिस, NDRF और स्थानीय लोगों ने मिलकर बचाव का काम शुरू किया. करीब 30 घंटे बीत चुके थे और किसी के जिंदा बचने की उम्मीद लगभग खत्म हो गई थी. लेकिन जब बचाव दल लंगर वाली जगह पर मलबा हटा रहे थे, तो वे यह देखकर चौंक गए कि मलबे के नीचे सुभाष चंद्र जिंदा थे. उनके पास से चार और शव भी निकाले गए.
लोगों ने कहा- "ये तो माता का आशीर्वाद है"
किश्तवाड़ में लोग अक्सर कहते हैं कि "जिसकी रक्षा मचैल माता करती हैं, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता". सुभाष के जिंदा बचने के बाद यह कहावत सच होती दिखी. स्थानीय लोगों से लेकर केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह तक ने इसे एक चमत्कार बताया है. लोगों का मानना है कि सुभाष सालों से जो भक्तों की सेवा कर रहे थे, यह उसी का फल है कि इतनी बड़ी आपदा में भी उनकी जान बच गई.
कैसी है सुभाष की हालत?
मलबे से निकालने के बाद सुभाष को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि उन्हें कोई गंभीर चोट नहीं आई है, जिसके बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
यह हादसा बहुत भयानक था, जिसमें 60 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए. इस तबाही के बीच सुभाष चंद्र का 30 घंटे बाद मलबे से जिंदा निकलना, उम्मीद और आस्था की एक बड़ी मिसाल बन गया है.













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