Why do Clouds Burst in the Mountains: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली गांव के पास खीरगंगा ट्रैकिंग रूट पर आज (5 अगस्त 2025) अचानक बादल फटने की घटना ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया. कुछ ही मिनटों में मकान, दुकान, लोग और मवेशी पानी की तेज धार में बह गए. ये पहली बार नहीं है जब पहाड़ों में ऐसा कहर टूटा हो. सवाल ये है कि पहाड़ी इलाकों में ही आखिर क्यों इतने ज्यादा बादल फटते हैं? क्यों हर साल मानसून के आते ही ये डर लौट आता है? बादल फटना यानी बेहद कम समय में किसी छोटे इलाके में तेज बारिश होना. मौसम विभाग के मुताबिक अगर 1 घंटे में 100 मिमी से ज़्यादा बारिश होती है, तो उसे ‘क्लाउडबर्स्ट’ माना जाता है.
आम भाषा में कहें तो ऐसा लगता है जैसे आसमान से एक बाल्टी पानी नहीं, बल्कि पूरा समंदर ही नीचे गिर पड़ा हो.
पहाड़ों में बादल फटने की वजह?
अब समझते हैं कि पहाड़ों में बादल क्यों ज्यादा फटते हैं. जब गर्मी बढ़ती है तो हवा में नमी भी बढ़ती है. ये नमी भारी मात्रा में जब पहाड़ों से टकराती है तो ऊपर उठती है. इससे बादल बनते हैं जो धीरे-धीरे घने होते जाते हैं. कभी-कभी ये इतने भारी हो जाते हैं कि अचानक तेज बारिश के रूप में टूट पड़ते हैं. इसे ही ‘ऑरोग्राफिक लिफ्ट’ कहा जाता है.
हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में ये घटनाएं इसलिए बढ़ रही हैं क्योंकि यहां पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, पहाड़ों में हो रहे अवैध निर्माण और पर्यटकों की लगातार भीड़ इसके बड़े कारण हैं. साथ ही, ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन ने इन इलाकों की मौसमी गतिविधियों को और अस्थिर कर दिया है.
बादल फटने की घटना तबाही का संकेत
एक और वजह ये है कि पहाड़ों की घाटियों में जब बादल फंस जाते हैं तो उनके पास बरसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. नमी लाने वाली हवाएं ज्यादातर गंगा के मैदानी इलाकों से आती हैं और उत्तर की ओर जाकर पहाड़ों से टकराती हैं. कई बार उत्तर-पश्चिम से आने वाली हवाएं भी इसमें मददगार बनती हैं.
बादल फटने की घटना सिर्फ बारिश नहीं, बल्कि तबाही का संकेत होती है. तेज बहाव की वजह से बाढ़ आ जाती है, मिट्टी और चट्टानें खिसकने लगती हैं और रास्ते, गांव और बाजार सब तबाह हो जाते हैं.
प्रकृति बार-बार कर रही है सचेत
ऐसे में लोगों को चाहिए कि बारिश के मौसम में नदियों और पहाड़ी नालों के पास रुकने से बचें. इसके अलावा, दीर्घकालिक उपायों में ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाना, निर्माण कार्यों पर नियंत्रण और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखना जरूरी है. वरना आने वाले सालों में ये तबाही और ज्यादा भयानक रूप ले सकती है.













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