लंदन, 22 फरवरी : वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया है कि लोगों में कोरोना होने का जोखिम संबंधी कारक गुणसूत्र नबंर तीन में स्थित जीनों में है और जिन लोगों में यह होता है वे कोरोना से गंभीर रूप से संक्रमित हुए थे जबकि इसकी अनुपस्थिति वाले लोगों में कोरोना का असर कम रहा है. लेकिन इसका एक फायदा यह भी है कि यह लोगों में एड्स संक्रमण होने के खतरे को 27 प्रतिशत कम कर देता है.
जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट और स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने इस शोध को अंजाम दिया है और इसमें इस बात की पुष्टि की गई है कि आधुनिक मानवों में कोविड से गंभीर रूप से पीड़ित होने का जोखिम कारक निएंडरथल मानवों से आया है. यह जोखिम कारक प्राचीन समय के मानवों के डीएनए में भी पाया गया है और इसकी आवृति हिम काल के बाद सबसे अधिक बढ़ी है. यह भी पढ़ें : दिल्ली के शॉपिंग मॉल संचालको ने रात आठ बजे के बाद भी दुकाने खोलने की अनुमति मांगी
यह जोखिम संबंधी कारक गुणसूत्र तीन में पाया जाता है और इसके आसपास अनेक जीन होती हैं जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में रिसेप्टरों को संकेत देती हैं. जिन लोगों में कोविड संबंधी जोखिम कारक होता है उनमें बहुत कम सीसीआर 5 रिसेप्टर्स होते हैं. एड़स का विषाणु इन रिसेप्टर्स का इस्तेमाल करते हुए रक्त में पाई जाने वाली सफेद रूधिर कणिकाओं को संक्रमित कर देता है. इस बात को इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि जिन लोगों में कोविड संबंधी जोखिम कारक होता है वे कोरोना से अधिक संक्रमित होते हैं. उनमें कम सीआरआर 5 रिसेप्टर्स होते हैं और ऐसे लोगों की एड़्स से पीड़ित होने का खतरा 27 प्रतिशत कम पाया गया है.
यह कोविड जोखिम संबंधी कारक आधुनिक मानवों में निएंडरथल मानवों से आया है जो हिम युग में रहते थे और यह दस हजार साल पहले भी पाया गया था. इस शोध को नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज के जर्नल में प्रकाशित किया गया है. शोध के वैज्ञानिक ह़यूगो जीबर्ग ने बताया कि इससे दो बातें पता चलती हैं कि इस जोखिम कारक के करियर लोगों में कोरोना के गंभीर संक्रमण का खतरा होता है लेकिन उनमें एड्स संक्रमण का जोखिम 27 प्रतिशत कम भी देखा गया है. उन्होंने कहा कि इसके होने से दो बातें हैं एक अच्छी बात यह है कि ऐसे लोगों में एड़स का जोखिम 27 प्रतिशत कम पाया गया है लेकिन बुरी बात यह है कि इससे लोगों में कोविड संक्रमण काफी घातक होता है.