Mahatma Gandhi Death Anniversary 2022: महात्मा गांधीजी के 'ब्रह्मास्त्र' रहे उनके ये  आंदोलन!
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनमोल विचार (Photo Credits: File Image)

ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने उनके खिलाफ तमाम आंदोलन छेड़े. हर आंदोलनों का अंग्रेजों पर तीव्र असर पड़ा. जानकार तो यहां तक कहते हैं, कि किसी और के द्वारा कोई आंदोलन शुरू होता था तो अंग्रेज सरकार समझते कि हो ना हो, ये गांधी की एक नई चाल होगी. कहने का आशय यह कि आंदोलन और गांधीजी एक दूसरे के पर्याय बन गए थे. हाँ यह सच है कि ये आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ विभिन्न मुद्दों पर गाँधी जी के अचूक हथियार भी साबित हुए, जो आज इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं. आइये बात करते हैं, गांधी जी के ब्रहांसतृ रूपी इन आंदोलनों की.

चम्पारण सत्याग्रह

आजादी से पूर्व (1917) बिहार राज्य में ब्रिटिश द्वारा अधिकृत ज़मींदारों ने स्थानीय किसानों को खाद्य फसलों के उगाने पर प्रतिबंध लगा रखा था. वे किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे, और फसलें उगने के बाद सस्ते दरों पर खरीद लेते थे. इस वजह से किसान लगातार कर्ज में डूबते जा रहे थे. किसानों की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत से गांधी जी द्रवित हो उठे. अंतत: उन्होंने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया. जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया. यह भी पढ़ें : Mahatma Gandhi Punyatithi 2022 Quotes: महात्मा गांधी की 74वीं पुण्यतिथि, बापू के इन महान विचारों को शेयर करके उन्हें अर्पित करें श्रद्धांजलि

खेड़ा सत्याग्रह

साल 1918 खेड़ा (गुजरात) में पहले बाढ़ और उसके बाद भयंकर सूखा पड़ा. इससे किसानों की स्थिति बेहद ख़राब हो गयी थी. किसान चाहते थे कि सरकार एक साल के लिए उनका टैक्स माफ़ कर दे, लेकिन अंग्रेजों ने इसके विपरीत कदम उठाते हुए टैक्सी की मियाद पूरी होने के बाद किसानों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. बहुत सारे किसानों को जेल भेज दिया. किसानों की बदतर होती स्थिति को देखकर खेड़ा सत्याग्रह शुरू किया. अंततः ब्रिटिश हुकूमत को कर माफ़ी देने के साथ-साथ जेल में बंद किसानों को जेल से रिहा भी करना पड़ा.

मिल मजदूर आंदोलन

साल 1918 में अहमदाबाद में अंग्रेज सरकार की शह पर फैक्टरी के मालिकों ने मजदूरों को प्रत्येक वर्ष दिया जाने वाला 20 प्रतिशत बोनस खत्म कर दिया. जबकि बढ़ती महंगाई के कारण मजदूर बोनस की राशि 20 प्रतिशत से 35 प्रतिशत करने की मांग कर रहे थे. लेकिन फैक्टरी मालिकों द्वारा बोनस खत्म करने से मजदूर परेशान हो गये. यह बात जब गांधीजी को पता चली तो उन्होंने फैक्टरी मजदूरों के पक्ष में आंदोलन शुरू कर दिया. अंत में बचने का कोई रास्ता नहीं मिलने के बाद 35 प्रतिशत बोनस की मांग को ट्रिब्यूनल के द्वारा स्वीकार कर लिया गया.

खिलाफत आन्दोलन

खिलाफत आन्दोलन की मुख्य वजह थी कि साल 1920 में अंग्रेजों ने अपना दबाव बढ़ाने की नीति को अपनाते हुए तुर्की के खलीफा के कई अधिकार छीन लिये थे. इससे मुस्लिम समुदाय आक्रोशित हो उठा. तब ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा खिलाफत आंदोलन छेड़ते हुए गांधी जी को आंदोलन का मुख्य प्रवक्ता चुना. यह एक विश्वव्यापी आन्दोलन था. गांधी जी ने अंग्रेजों द्वारा दिए सम्मान और मैडल को वापस कर दिया. गांधी जी के इस त्याग ने उन्हें विश्व व्यापी लोकप्रियता दिलाई.

असहयोग आंदोलन

महात्मा गांधी जानते थे कि अंग्रेज भारतीयों के सहयोग के कारण सत्ता पर काबिज हैं. अगर समस्त भारतीय अंग्रेजों को कदम-कदम पर असहयोग करना शुरू कर दे तो अंग्रेजों एक दिन भी यहाँ टिक नहीं सकेंगे. गाँधी जी ने 1920 से लेकर 1922 तक असहयोग आंदोलन का संचालन किया. इसका दूरगामी परिणाम हुआ.

नमक आंदोलन

वर्ष 1930 में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा (नमक आंदोलन) की शुरुआत की. इसकी खासियत थी, बगैर हिंसा किये सरकारी कानूनों को तोड़ना. इसकी शुरुआत गाँधीजी ने नमक कानून का उल्लंघन करके किया. इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य जनता का ध्यान देश को आजाद करने के लिए था.

भारत छोड़ो आंदोलन!

साल 1942 में भारत को आजादी दिलाने के लिए गाँधीजी ने 'डू आर डाई' का रास्ता अपनाते हुए 'भारत छोड़ो’ शुरू किया. उनके तमाम आंदोलनों में सबसे तीव्र एवं प्रभावशाली आंदोलन यही माना जाता हैका बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसने अंग्रेजों को जता दिया, कि उनके बोरिया-बिस्तर समेटने का समय आ गया. इसके बाद भारत की जनता अंग्रेजों के प्रति आक्रोशित हो सड़कों पर आ गयी. और ब्रिटिश हुकूमत के सामने भारत को आजाद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.