Who Killed Gandhi? आजाद भारत में फांसी चढ़ने वाले पहले आरोपी थे नाथूराम गोडसे और आप्टे! जानें गांधीजी की हत्या की व्यथा!
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स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख कर्णधारों में एक नाम महात्मा गांधी का भी है. महात्मा गांधी ने अपनी नीति ‘सत्य और अहिंसा’ से समझौता किये बिना अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया. आजादी के प्रमुख मसीहा होने और तत्कालीन राजनीति में गहरी पैठ होने के बावजूद उन्होंने खुद कोई पद नहीं स्वीकारा. इन्हीं वजहों से उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ अथवा ‘बापू’ का नाम मिला. इससे पूर्व की गांधीजी देश के विकास पर कुछ करते, 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी. गांधीजी की हत्या कब, कैसे और किन परिस्थितियों में हुई, इस संदर्भ में बात करेंगे, कुछ पुस्तकों में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर..

20 जनवरी को भी हुई थी गांधीजी की हत्या की कोशिश?

कहा जाता है कि 20 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस में गांधीजी पर जानलेवा हमला हुआ था. इस संदर्भ में 21 जनवरी को प्रकाशित अखबारों में इस संदर्भ में लिखा गया था कि मदन लाल पाहवा नामक व्यक्ति ने गांधीजी को शारीरिक क्षति पहुंचाने के लिए विस्फोट किया था. कहते हैं कि गांधीजी ने शाम की प्रार्थना सभा में अपील किया था कि जिसने भी उन पर जानलेवा हमला करने की कोशिश की, उसे छमा कर दिया जाए. यही नहीं गाँधीजी ने अपनी प्रार्थना सभा में पुलिस को नहीं बुलाने का आदेश दिया था.

क्या और कैसे हुआ 30 जनवरी 1948 को

नाश्ता एवं प्रार्थनाः 30 जनवरी 1948 की सुबह साढ़े तीन बजे उठकर गांधीजी ने हमेशा की नित्य-क्रिया से निवृत्त होकर प्रार्थना में भाग लिया और शहद नींबू से तैयार पेय पीया, और पुनः सोने चले गये. कुछ देर नींद लेने के बाद वह उठे और अपने शरीर की मालिश करवाई. नाश्ते में दूध, मूली, टमाटर का सलाद एवं संतरे का जूस पीया.

बुर्का पहनकर हत्या करने से क्यों इंकार किया नाथूराम ने

किसी ने नाथूराम को सुझाव दिया कि वह अगर बुर्का पहनकर गांधीजी की सभा में जाएंगे, तो वे आसानी से सभा स्थल तक पहुंच जाएंगे, और अपने मिशन में भी कामयाब होंगे. बाजार से एक बुर्का लाया गया, मगर बुर्का पहनने के बाद नाथूराम को लगा कि बुर्के के अंदर से वह आसानी से पिस्तौल नहीं निकाल सकेंगे, पकड़े जाने पर बदनामी होगी सो अलग. तब नारायण आप्टे के सुझाव पर नाथूराम ने फौजियों वाला ड्रेस पहना. अपनी बैरेटा पिस्तौल में 7 गोलियां भरी. इसके बाद सभी बिड़ला मंदिर गये. वहां से उन्हें बिड़ला हाउस जाना था. वस्तुतः आप्टे और करकरे काम को अंजाम देने से पूर्व भगवान का दर्शन और प्रार्थना करना चाहते थे, मगर गोडसे की इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. बिड़ला हाउस के भीतर पहुंचने से उन्हें किसी ने रोका-टोका नहीं.

-पुस्तक 'फ्रीडम ऐट मिडनाइट' (लेखक डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस) से उद्धृत

‘द मैन हू किल्ड गांधीजी’ (लेखक मनोहर मालगांवकर) के अनुसार, इस मिशन के दौरान करकरे कुछ कहते तो उनकी आवाज कांपने लगती थी, तब. आप्टे उन्हें शांत रहने का इशारा करते थे.