देश आज आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bhartendu Harishchandra) की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहा है. हिंदी साहित्य में आधुनिक काल की शुरुआत भारतेंदु हरिश्चंद्र से मानी जाती है. उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामंती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ परंपरा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए. उन्होंने आजीवन हिंदी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में कदम बढ़ाए. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था, 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल' यानी मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है.
भारतेंदु हरिश्चंद्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपना जीवन हिंदी साहित्य के विकास के लिए समर्पित किया और पत्रकारिता, नाटक और कविता के क्षेत्र में प्रमुख योगदान दिया. उन्होंने ब्रिटिश शासनकाल में हिंदी रंगमंच का उपयोग बड़ी चतुराई से किया, उनका नाटक अंधेर नगरी इसका उत्तम उदाहरण है. उन्होंने जनता की राय को आकार देने के लिए भी अपनी लेखनी का इस्तेमाल किया. वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार थे. Savitri Bai Fule Jayanti 2021: देश की पहली महिला टीचर और प्रिंसिपल, शुरु किया पहला महिला स्कूल!
भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर राजनेताओं ने उन्हें याद किया. शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने अपने ट्वीट में लिखा, भारतीय नवजागरण के अग्रदूत, आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की पुण्यतिथि पर शत-शत नमन. भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं कालजयी है. उन्होंने अपनी रचनाओं में उस समय के समाज का दर्पण दिखाया है.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था. उनके पिता गोपालचंद्र भी एक अच्छे कवि थे. उन्हें काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी. उन्होंने अपना जीवन कठिनाई में बिताया और वे समाज के उत्थान के लिए आवाज उठाते रहे. वे 5 वर्ष के थे जब उनकी माता हो गई थी दस वर्ष की अल्पआयु में उनसे पिता का साया भी छिन गया था. इस प्रकार बचपन में ही माता-पिता के सुख से वंचित हो गए.
भारतेंदु हरिश्चंद्र की यह विशेषता रही कि जहां उन्होंने ईश्वर भक्ति आदि प्राचीन विषयों पर कविता लिखी तो साथ ही समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम जैसे विषयों को भी अपनाया. उनकी रचनाओं में अंग्रेजी शासन का विरोध, स्वतंत्रता की लालसा और जातीय भावबोध की झलक मिलती है. उन्होंने समाज में आधुनिक चेतना के प्रसार के निरंतर प्रयास किया.