Bharadi Devi Jatra 2020: महाराष्ट्र के दक्षिण तटीय इलाके को कोंकण कहा जाता है. कोंकण में आंगनवाड़ी जत्रा का ख़ास महत्त्व है. ये केवल महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी काफी लोकप्रिय है. इस साल आंगनवाड़ी भराडी देवी जत्रा आज मनाई जा रही है. . देश भर से श्रद्धालु इस मेले में पहुंचते हैं. आंगनवाड़ी का यह अनूठा मेला कितना भव्य और आस्था से परिपूर्ण है, यह यहां आनेवाला ही जानता है. मान्यता है कि भराडी देवी की पूजा सच्चे मन से की जाये तो भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
आंगनवाड़ी में भारड़ी देवी के प्रति भक्तों में इतनी श्रद्धा-भाव है कि मुंबई और पुणे जैसी जगहों से लाखों भक्त आंगनवाड़ी में भराडी देवी के दर्शन के लिए कोंकण आते हैं. इस जात्रा की महत्ता इससे भी लगाई जा सकती है कि आंगनवाड़ी तीर्थस्थल तक पहुंचने और पुण्य बटोरने के लिए राजनेता से लेकर फिल्म स्टार और दिग्गज खिलाड़ियों तक में होड़ मची रहती है. पिछले साल, मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने आंगनवाड़ी जात्रा का दौरा किया. 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद, उद्धव ठाकरे ने भी 18 सांसदों के साथ, भार्या देवी का दौरा किया था.
आंगनवाड़ी की भराड़ी देवी का महात्म्य:
आंगनवाड़ी मालवण तालुका का एक छोटा सा गांव है. भराड़ी देवी इसी गांव में विराजमान हैं. चूँकि देवी भद्र पर प्रकट हुई थीं, इसलिए देवी का नाम 'भराड़ी देवी' रखा गया है. भारदा का अर्थ है मालरन.
आंगनवाड़ी गांव में आंगन परिवार की यह एकमात्र देवी हैं. आंगनवाड़ी में भराडी देवी का मंदिर यह एक निजी मंदिर है. मान्यता है कि यहां जिस दिन मेला की घोषणा की जाती है, भक्त गाते-बजाते और अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की उम्मीदों के साथ भराडी देवी का दर्शन करने यहां आते हैं. कहा जाता है कि जिस दिन मेला होता है उस दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. हालांकि यहां बारहों माह भक्तों का तांता लगा रहता है. स्थानीयों के अनुसार साल भर में लगभग 15 से 16 लाख श्रद्धालु देवी भराडी का दर्शन करने यहां पहुंचते हैं. इस दिन यहां धार्मिक भजन के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.
कैसे स्थापित हुआ मंदिर:
मालवण ताल्लुका स्थित मसूरी गांव में आंगनवाड़ी नामक बहुत प्रसिद्ध मंदिर है. आंगनवाड़ी मंदिर के संदर्भ में बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं. ऐसी ही एक कहानी के अनुसार एक दिन एक ग्रामीण ने देखा कि जंगल में एक गाय ने जब दूध दिया तो वह दूध एक शिला के रूप में परिवर्तित हो गया. उस ग्रामीँण ने जब गाय के मालिक को यह बात बताई, तो मालिक सच्चाई देखकर हैरान रह गया. उसी दिन उसे सपने में एक संदेश मिला, कि वह इस शिला को सही जगह स्थापित कर इसकी नियमित पूजा-अर्चना करे तो उसके सारे कष्ट दूर हो जायेंगे. यह बात शीघ्र ही गांव, फिर कस्बे तक फैलती चली गयी. लोग उस जगह उस शिला का दर्शन और पूजन करने आने लगे. चूंकि उस क्षेत्र में चट्टानी मिट्टी को भरड़ कहते हैं, इसलिए देवी को भराडी के नाम से जाना जाने लगा. यहां प्रत्येक वर्ष फरवरी माह में मेले के लिए तिथियां तय की जाती हैं. यहां मेले के लिये कोई एक तारीख फिक्स नहीं रहती. यहां मंदिर के पुजारियों और प्रबंधकों के बीच आपसी सहमति से मेले की तारीख तय होती है. हालांकि आंगनवाड़ी मसूरी गांव का ही एक हिस्सा है, लेकिन दो स्थानों के देवस्थान समितियों के बीच विवाद के कारण आंगनवाड़ी को मैसूर से अलग कर दिया गया. इसके बावजूद दोनों ही समिति के लोग देवी के प्रति अनन्य आस्था रखते हैं.
आंगनवाड़ी मंदिर का नवीनीकरण 2 वर्ष पहले ही किया गया था. यह मंदिर वास्तुकला की नगा शैली में पत्थरों से निर्मित है. गर्भगृह के बाहर एक विशाल परिसर है. गर्भगृह का भीतरी हिस्सा बाहर की तुलना में थोड़ा छोटा है. गर्भगृह एक सुंदर मीनार सदृश्य नजर आता है. मंदिर के शिखर पर एक स्वर्ण कलश स्थापित है.
भारदी देवी यात्रा तक कैसे पहुंचे?
आप ट्रेन या बस द्वारा आंगनवाड़ी जात्रा तक पहुँच सकते हैं. डेढ़ दिन की यात्रा प्रातःकाल से शुरू होती है. आप मुंबई अथवा पुणे से बस या ट्रेन द्वारा यहां पहुंच सकते हैं.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.