Durga Puja 2022: देवी दुर्गा के साथ महिषासुर की पूजा करने का क्या रहस्य है? जानें क्या कहता है, देवी भागवत पुराण?
मां दुर्गा (Photo: PTI)

पश्चिम बंगाल समेत संपूर्ण भारत में मनाई जाने वाली 5 वर्षीय आध्यात्मिक पर्व दुर्गा पूजा की महिमा अपरंपार है. अश्विन मास की षष्ठी से नवमी तक चलनेवाली माँ दुर्गा की पूजा सच्ची आस्था एवं हर्षोल्लास के साथ की जाती है. देवी भागवत पुराण के अनुसार दैत्यराज महिषासुर का वध कर माँ दुर्गा ने देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी. दुर्गा पंडाल में आपने भी देखा होगा कि माँ दुर्गा महिषासुर का वध कर रही हैं, और पंडाल के पुरोहित दुर्गा जी के साथ महिषासुर की भी पूजा-आरती करते हैं. यहां प्रश्न उठता है कि जिस महिषासुर से देवता और मानव पीड़ित थे, जिनका मर्दन करने हेतु दुर्गा जी का उद्भव हुआ था, उसी की पूजा के पीछे क्या रहस्य है. आइये जानें इस संदर्भ में देवी पुराण में क्या उल्लेख है.

देवी पुराण में एक तरफ जहां शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा को अजेय बताया गया है, वहीं उनकी ममतामयी करुणा का भी उल्लेख है, क्योंकि वे भी स्त्री हैं. उनमें भी करुणा हैं, यही वजह है कि वे दानव ही नहीं दैत्यों पर भी उतनी ही ममत्व से करुणा रस बरसाती हैं. भागवत पुराण में कुछ ऐसी ही कथा है.    यह भी पढ़ें : International Day of Peace 2022: कब और क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस? जानें इसका इतिहास, महत्व और मनाने का तरीका!

देवी भागवत पुराण में है इसका रहस्य!

देवी भागवत पुराण के अनुसार रंभ नामक असुर ने पुत्र प्राप्ति के लिए अग्नि देव की कड़ी तपस्या की थी. अग्निदेव की कृपा से प्राप्त पुत्र का नाम महिषी रखा गया. महिषी ने ब्रह्मा जी की कड़ी तपस्या करके यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका वध ना देवता कर सकते हैं और ना दानव. उसे केवल एक स्त्री ही मार सकती है. महिषासुर को अपनी शक्ति पर इतना दंभ हो गया था कि जिसे देवता नहीं मार सकते, उसे कोई मासूम स्त्री क्या मार सकेगी. उसने स्वर्ग लोक में आतंक फैलाकर देवताओं को वहां से भगा दिया.

अंततः त्रिदेव समेत सभी देवताओं के तेज से माँ दुर्गा का उद्भव हुआ. सभी देवताओं ने दुर्गाजी को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र दिये. देवी दुर्गा ने सिंह पर सवार हुंकारते हुए महिषासुर को ललकारा. एक सामान्य स्त्री को युद्ध भूमि में देख महिषासुर ने अट्टाहास करते हुए उन पर आक्रमण कर दिया. उसने देवी दुर्गा पर तमाम शक्तियों का इस्तेमाल किया. मगर दुर्गाजी ने अपनी तेज से सारी शक्तियों को नष्ट कर दिया. मान्यता है कि यह युद्ध नौ दिनों तक चला. नवें दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर को शक्ति विहीन कर उस पर त्रिशूल से आक्रमण किया. साक्षात मौत को सामने देख महिषासुर समझ गया कि ब्रह्माजी के वरदान स्वरूप जिस स्त्री के हाथों उसकी मौत होनी है, वही स्त्री सामने हैं. और यह सामान्य स्त्री नहीं है. उसने हाथ जोड़कर प्रार्थना किया, -हे माँ मैं आपकी शरणागत हूं, मेरा उद्धार करें. महिषासुर के विनय पर देवी माँ के मन में करुणा जागी, उन्होंने उसका उद्धार किया और कहा कि तुम्हें मेरा सायुज्य प्राप्त होगा. मनुष्य जब मेरी पूजा करेंगे, तब तुम्हारी भी पूजा होगी. देवी दुर्गा ने त्रिशूल से उसका वध कर दिया. इसके बाद से ही देवी दुर्गा की पूजा करते समय महिषासुर की भी पूजा होती है.