
नाचते कछुओं ने पहली बार यह साबित किया है कि वन्यजीव धरती के चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल कर अपनी पसंदीदा जगहों के लिए निजी नक्शा तैयार करते हैं.कुछ जीव पृथ्वी पर लंबी दूरी तय करते हैं. इनमें चिड़िया, सालमन मछली, समुद्री झींगे या केकड़े और समुद्री कछुए शामिल हैं. ये वन्यजीव अपना रास्ता धरती के उत्तरी ध्रुव से लेकर दक्षिणी ध्रुव तक फैले चुंबकीय क्षेत्र की रेखा का इस्तेमाल करके बनाते हैं.
चुंबकीय क्षेत्र पर आधारित नक्शा
वैज्ञानिक यह पहले से जानते थे कि ये जीव चुंबकीय क्षेत्र की जानकारी का इस्तेमाल यह पुष्ट करने में करते हैं कि वह कहां हैं. अब वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि वे अपने घोसलों या फिर खाने की जगहों के लिए चुंबकीय क्षेत्र पर आधारित नक्शों का इस्तेमाल करते हैं.
कछुआ और दूसरे जीव भी बोल कर बात करते हैं
नॉर्थ कैरोलाइना यूनिवर्सिटी की कायला गोफोर्थ का कहना है कि इसके लिए प्रवासी पक्षियों को अपनी मंजिल के चुंबकीय समन्वय की जरूरत होती है. नेचर जर्नल में छपी रिसर्च रिपोर्ट उन्हीं के नेतृत्व में हुई रिसर्च से तैयार हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस रिसर्च ने पहली बार इस बात के सीधे सबूत मुहैया कराए हैं कि कोई जीव किसी भौगोलिक क्षेत्र के प्राकृतिक चुंबकीय पहचान को जान कर याद रख सकता है. हालांकि वह यह कैसे कर पाते हैं, इसके बारे में अभी पता नहीं चल सका है. रिसर्चरों ने यह भी देखा कि कछुओं में नक्शा बनाने की प्रतिभा उनके शरीर में मौजूद अंदरूनी कंपास से अलग होती है. इसका मतलब शायद यह है कि दोनों चीजें अलग अलग तरीके से काम करती हैं.
वैज्ञानिकों ने बनाया मक्खी के दिमाग का बारीक नक्शा
प्रयोग के लिए वैज्ञानिकों ने एक बड़े कछुए को पानी के टैंक में डाल दिया जिसके चारों ओर चुंबकीय कॉइल लगी हुई थी और इस तरह से उन्होंने अटलांटिक महासागर के चुंबकीय क्षेत्र की प्रतिकृति तैयार कर दी.
टर्टल डांस से मिली जानकारी
हर एक या दो महीने पर वैज्ञानिकों ने टैंक के उत्तरी अमेरिकी तट के बीच मौजूद चुंबकीय क्षेत्र को बदल दिया. कछुओं को सिर्फ तभी खाना मिलता था जब वे उस इलाके के चुंबकीय क्षेत्र को जान जाते थे. जब जानवरों को खाने की भनक लगती थी वे अपने पंखों को फैलाते सिकोड़ते और चारों तरफ अपने पैर थपथपाते. इसके साथ ही वे मुंह खोल कर पानी में गोल घूमने लगते. रिसर्चरों ने उनके इस व्यवहार की रिकॉर्डिंग कर ली और इसे "टर्टल डांस" नाम दिया.
कछुए बड़े उत्साह से टैंक में नाच रहे थे क्योंकि वे जानते थे इससे उन्हें खाना मिलेगा. रिसर्चरों का कहना है कछुए खास भौगोलिक क्षेत्र के चुंबकीय क्षेत्रों को जान सकते हैं, इसका यह "पक्का सबूत" है. यहां तक कि चार महीने बाद भी जब ये परीक्षण दोहराए गए तो कछुओं को पता था कि उन्हें कहां नाचना चाहिए.
अब जानवरों तक यह जानकारी कैसे पहुंचती है इसके बारे में कोई कुछ कहने की स्थिति में नहीं है. एक सिद्धांत यह है कि कुछ जीव चुंबकीय क्षेत्र के असर को प्रकाश संवेदी अणुओं के रासायनिक प्रतिक्रियाओं से जान जाते हैं. हालांकि जब रिसर्चरों ने इस प्रक्रिया के साथ रेडियोफ्रीक्वेंसी क्षेत्रों का इस्तेमाल कर छेड़छाड़ करने की कोशिश की तो कछुए बिना किसी बाधा के नाचते ही रहे.
एक अलग प्रयोग में कछुओं के अंदरूनी कंपास का परीक्षण ज्यादा सफल रहा. पश्चिम अफ्रीकी द्वीपसमूह केप वेर्दे जैसी चुंबकीय परिस्थितियों को एक टैंक में पैदा किया गया तो ऐसा लगता है कि रेडियोफ्रीक्वेंसी उत्सर्जनों ने कछुओं के कंपास को नुकसान पहुंचाया और वे अपने मार्ग से भटक गए.
एनआर/वीके (एएफपी)