क्या शुल्क बढ़ाने का डॉनल्ड ट्रंप का दांव सफल होगा?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

डॉनल्ड ट्रंप की शुल्क नीति ने अब तक मेक्सिको, कनाडा, कोलंबिया और पनामा को अमेरिका की शर्तें मानने पर मजबूर कर दिया है. जब अमेरिका की अर्थव्यवस्था और प्रतिष्ठा दांव पर लगी हो, तो दबाव बनाने का यह तरीका कब तक काम करेगा?डॉनल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में वापसी के बमुश्किल दो हफ्ते बीते हैं, लेकिन इन्हीं दो हफ्तों में अमेरिका के चार सहयोगियों ने शुल्क (टैरिफ) बढ़ाने और अन्य दंडात्मक उपायों की धमकी दिए जाने के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति की दबाव डालने वाली व्यापार नीति के सामने घुटने टेक दिए.

मेक्सिको और कनाडा ने इस हफ्ते अमेरिका से लगी अपनी सीमा पर सुरक्षा बढ़ाने का वादा किया है, ताकि अवैध प्रवासन और ड्रग तस्करी को रोका जा सके. इस कदम के बाद, उन्हें ट्रंप की ओर से पिछले हफ्ते घोषित 25 फीसदी शुल्क पर 30 दिन की राहत मिली है.

अमेरिका ने कोलंबिया को धमकी दी थी कि अगर वह अमेरिका से निकाले गए लोगों को वापस नहीं लेगा, तो उस पर शुल्क और अन्य प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे. इसके बाद कोलंबिया ने अपना फैसला बदल दिया और अमेरिका से निकाले गए लोगों को वापस लेने के लिए तैयार हो गया.

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इस बीच, पनामा ने पनामा नहर पर ट्रंप को रियायतें दी हैं. पनामा नहर एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है जो मध्य अमेरिका में अटलांटिक को प्रशांत महासागर से जोड़ता है.

इस हफ्ते के अंत में, ट्रंप ने और आगे बढ़ते हुए, मौजूदा आयात शुल्क के अलावा एल्यूमिनियम और स्टील के आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाने का ऐलान किया. इससे अमेरिका के दूसरे सहयोगी परेशान हो गए हैं.

पहली नजर में देखें, तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी ताकत दिखाई और जिन्हें निशाना बनाया गया वे जल्द ही हार मान गए. हालांकि, इटली के अर्थशास्त्री मार्को बूटी का मानना है कि ट्रंप की शुल्क नीति ‘अनियमित रूप से' लागू की जा रही है और इस वजह से सहयोगियों की ओर से सीमित प्रतिक्रिया ही सामने आई है.

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यूरोपीय आयोग में आर्थिक और वित्तीय मामलों के पूर्व महानिदेशक बूटी ने डीडब्ल्यू को बताया, "अब तक ट्रंप ने जिन देशों (कनाडा और मेक्सिको) को धमकी देकर एकतरफा समझौते हासिल किए हैं, वे काफी हद तक प्रतीकात्मक हैं.”

उन्होंने कहा कि मेक्सिको और कनाडा ने सीमा पर कुछ नए उपायों को लागू करने का वादा किया है, लेकिन इन उपायों से नशे की दवा फेंटानिल की तस्करी की समस्या का समाधान नहीं होगा और ना ही इससे अवैध रूप से अमेरिका में आने वाले लोगों की संख्या कम होगी.

ट्रंप के शुल्क से वैश्विक स्तर पर पैदा हो रही आर्थिक अनिश्चितता

ट्रंप द्वारा कुछ देशों पर लगाए गए शुल्क और प्रस्तावित शुल्क के कारण उन देशों और अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, इसका विस्तार से अध्ययन किया गया है. शुल्क का मतलब होता है कि आयातित सामानों पर ज्यादा टैक्स लगाना. इसलिए, अगर नए शुल्क लगाए जाते हैं, तो अमेरिकी लोगों को सामान खरीदने के लिए ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे.

बूटी ने कहा, "ट्रंप द्वारा शुल्क लगाए जाने की वजह से वैश्विक तौर पर आर्थिक अनिश्चितता पैदा हो रही है. यह अर्थव्यवस्था में वृद्धि और आर्थिक समृद्धि के लिहाज से नुकसानदायक होगा.”

ऐसी आशंका जताई जा रही है कि ट्रंप की शुल्क धमकी से कनाडा और मेक्सिको की अर्थव्यवस्थाएं मंदी का शिकार हो सकती हैं. साथ ही, अमेरिकी मुद्रास्फीति में एक प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो सकती है. इस वजह से, फेडरल रिजर्व को ब्याज दरों को पहले की तरह बनाए रखना या बढ़ाना पड़ेगा.

इन शुल्कों की वजह से कनाडा, अमेरिका और मैक्सिको के बीच सामानों की आपूर्ति में भी बाधा आ सकती है, विशेष रूप से ऑटोमोबाइल क्षेत्र में.

उत्तरी अमेरिका में कार बनाने के लिए कई देशों से सामान आते हैं और एक देश से दूसरे देश में जाते हैं. यह पूरा उद्योग अलग-अलग देशों से जुड़ा हुआ है. अगर इन सामानों पर शुल्क लगाया जाता है, तो कारों की कीमत बहुत बढ़ जाएगी. अगर कारें महंगी हुईं, तो लोग कम कारें खरीदेंगे. इससे कार बनाने वाली कंपनियों को नुकसान होगा. कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इससे लोगों की नौकरियां चली जाएंगी.

कील इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनॉमी (आईएफडब्ल्यू-कील) के शोधकर्ता रॉल्फ लैंगहैमर ने डीडब्ल्यू को बताया, "ट्रंप पुराने जमाने के विचारों वाले व्यक्ति हैं. उन्हें लगता है कि शुल्क लगाने से देश के घरेलू उद्योगों को फायदा होगा. शुल्क से मिलने वाले राजस्व से उन्हें घरेलू स्तर पर टैक्स में कटौती करने में मदद मिलेगी.”

लैंगहैमर ने बताया कि अमेरिकी सरकार को जो राजस्व मिलता है उसमें से सिर्फ 2 फीसदी हिस्सा शुल्क से आता है. जबकि, आयकर और कंपनियों पर लगने वाले टैक्स से लगभग 60 फीसदी राजस्व मिलता है.

अमेरिकी सहयोगियों ने उठाए एहतियाती कदम

ट्रंप की शुल्क से जुड़ी धमकियों ने दुनिया भर में हलचल मचा दी है. यहां तक कि कुछ देशों को अपने निर्यात पर शुल्क लगाने के किसी भी संभावित कदम को रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर आरोप लगाया था कि वह अमेरिकी कंपनियों को अपने देश में सामान बेचने में बहुत मुश्किलें पैदा करता है. इसके बाद, भारत ने मोटरबाइक और सैटेलाइट ग्राउंड इंस्टॉलेशन सहित कई उत्पादों पर अपने शुल्क को 13 फीसदी से घटाकर 11 फीसदी कर दिया है. नई दिल्ली ने इस सप्ताह 30 से अधिक अन्य उत्पादों पर शुल्क कम करने की योजना की घोषणा की है.

दक्षिण कोरिया और जापान ने कहा है कि वे अमेरिका से अधिक ऊर्जा और दूसरे सामान खरीदेंगे. जबकि, थाईलैंड ने घोषणा की है कि वह प्लास्टिक बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इथेन सहित अमेरिकी कृषि उत्पादों के आयात को बढ़ाएगा.

फाइनेंशियल टाइम्स ने इस सप्ताह बताया कि ट्रंप के शुल्क लगाए जाने की धमकी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने के लिए यूरोपीय संघ अपने नए बनाए गए एंटी-कोर्सियन इंस्ट्रूमेंट (एसीआई) का इस्तेमाल करने पर विचार कर रहा है, खास तौर पर अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों के खिलाफ.

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यूरोपीय संघ के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए दिसंबर में एक नया नियम लागू किया गया था, जिसे एसीआई कहा जाता है. इस नियम के तहत, यूरोपीय संघ किसी देश के जरिए हो रहे निवेश को रोक सकता है या उसे अपने देश में व्यापार करने की अनुमति नहीं दे सकता है.

यूरोपीय संघ ने ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान यूरोपीय कारों पर शुल्क लगने से बचाव किया था. उस समय यूरोपीय आयोग के पूर्व प्रमुख ज्यां क्लोद युंकर ने राष्ट्रपति के साथ एक समझौता किया था. इसके तहत, ईयू के देशों ने अमेरिका से काफी मात्रा में लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) और सोयाबीन खरीदे थे, लेकिन इस बार यह विकल्प काम नहीं कर सकता है.

बूटी ने कहा, "मुझे इस बात पर काफी संदेह है कि इस बार समझौता करने से काम चल जाएगा. हम बातचीत करने और शांतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन आपको जवाबी कार्रवाई की एक ऐसी रणनीति भी बनानी होगी जो विश्वसनीय और कठोर हो.”

अमेरिका की प्रतिष्ठा को नुकसान

ट्रंप की काफी ज्यादा दबाव वाली रणनीति थोड़े समय के लिए सौदेबाजी को जारी रखने या व्यापार लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दूसरे देशों को मजबूर कर सकती है, लेकिन लंबे समय में यह रणनीति काम करेगी या नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता.

हाल ही में एक ब्लॉग पोस्ट में, वाशिंगटन के सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के एक अर्थशास्त्री फिलिप लक ने राष्ट्रपति के दबाव की तुलना एंटीबायोटिक दवाओं से की.

लक ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, "वे किसी खास समस्या को खत्म करने में बहुत कारगर होते हैं, लेकिन अगर इनका ज्यादा इस्तेमाल किया जाए, तो असर कम हो सकता है. जिस प्रकार बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं, उसी तरह अगर किसी देश पर बार-बार प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो वह देश अमेरिका के साथ व्यापार कम करके खुद को इन प्रतिबंधों से बचाने की कोशिश करेगा.”

अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों में बढ़ती अनिश्चितता का सामना करते हुए, कई देशों के साथ-साथ यूरोपीय संघ को भी शुल्क के खतरे को कम करने के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी पड़ रही है.

बाइडेन प्रशासन ने यूरोपीय संघ पर दबाव डाला था कि वह चीन पर अपनी निर्भरता कम करे, ताकि इस एशियाई देश के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके. हालांकि, अब अपने सबसे करीबी सहयोगी से संभावित व्यापार युद्ध के चलते, ईयू के नीति निर्माता शायद अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर हो जाएं.

शुल्क राहत के बावजूद, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस हफ्ते शीर्ष कारोबारी नेताओं के साथ एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया. इसका मकसद था कि कनाडा कारोबार के लिए सिर्फ अमेरिका पर निर्भर रहने की जगह अन्य देशों से व्यापार करे. वहीं, मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शाइनबाउम ने ‘प्लान मेक्सिको' लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य भी प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर निर्भरता कम करना है.

ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक ब्रूगेल के रिसर्च फेलो निकोलस पोइटियर्स ने डीडब्ल्यू से कहा, "अब हर कोई पूछ रहा है कि क्या अमेरिका अभी भी एक विश्वसनीय साझेदार है? इन शुल्क से अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुंचा है."