नयी दिल्ली, 23 नवंबर: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने वाले फैसले की समीक्षा का अनुरोध करने संबंधी याचिका का खुली अदालत में सुनवाई के लिए बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष उल्लेख किया गया. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी के इन अभ्यावेदनों का संज्ञान लिया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध कर रहे लोगों की समस्याओं के निपटारे के लिए खुली अदालत में सुनवाई की आवश्यकता है.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैंने (पुनरीक्षण) याचिका की अभी समीक्षा नहीं की है। मुझे इसे (उस संविधान पीठ के न्यायाधीशों में) वितरित करने दीजिए.’’ रोहतगी ने कहा, ‘‘(संविधान पीठ के) सभी न्यायाधीशों ने इस बात पर सहमति जताई कि (समलैंगिक व्यक्तियों के साथ) भेदभाव होता है और यदि किसी प्रकार का भेदभाव है, तो उसका समाधान भी होना चाहिए. कई लोगों का जीवन इस पर निर्भर है. हमने खुली अदालत में सुनवाई का अनुरोध किया है.’’
उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के पंजीयन के अनुसार, पुनरीक्षण याचिका 28 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है. शीर्ष अदालत की प्रक्रियाओं के अनुसार, किसी फैसले की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर संबंधित न्यायाधीश अपने कक्षों में विचार करते हैं और इस दौरान वकील कोई मौखिक दलील नहीं देते, लेकिन पुनरीक्षण याचिकाओं संबंधी कुछ मामले अपवाद होते हैं जिनकी सुनवाई खुली अदालत में होती है. इनमें ऐसे मामले भी शामिल होते है, जिसमें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई हो.
याचिकाकर्ताओं में से एक उदित सूद ने शीर्ष अदालत के 17 अक्टूबर के फैसले की समीक्षा का अनुरोध करते हुए नवंबर के पहले सप्ताह में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया है कि फैसले में समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव की बात को स्वीकार किया गया था, लेकिन ‘‘भविष्य के लिए शुभकामनाओं के साथ उनका अनुरोध ठुकरा दिया गया.’’ प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर चार अलग-अलग फैसले सुनाए थे.
सभी पांचों न्यायाधीशों ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सर्वसम्मति से इनकार कर दिया था और कहा था कि इस बारे में कानून बनाने का काम संसद का है. शीर्ष अदालत ने दो के मुकाबले तीन के बहुमत से यह फैसला दिया था कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार नहीं है.
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