जेम्स वेब टेलीस्कोप ने खोजे ‘सोच बदल देने’ वाले दो ग्रह
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जेम्स वेब टेलीस्कोप ने दो नए ग्रह खोजे हैं जो अपने बनने के शुरुआती दौर में हैं. ये जिस तरह बन रहे हैं, उससे विज्ञान की ग्रहों के निर्माण की समझ को चुनौती मिली है.नासा-ईएसए-सीएसए के साझा जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने हाल ही में एक युवा, सूर्य जैसे तारे के चारों ओर दो विशाल गैसीय ग्रहों की तस्वीरें लीं. ये ग्रह अपनी शुरुआती अवस्था में हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक यह एक अनोखी खोज है क्योंकि दोनों ग्रहों ने अलग-अलग विकास चरणों की झलक दिखाई है. एक का वायुमंडल धूल भरे बादलों से बना है, जबकि दूसरे को एक डिस्क जैसी संरचना घेरे हुए है.

ये ग्रह हमारी आकाशगंगा मिल्की वे में स्थित उस तारे के आसपास हैं, जिसका नाम वाईएसईएस-1 है, और यह पृथ्वी से लगभग 310 प्रकाश-वर्ष दूर मस्का नक्षत्र की दिशा में स्थित है. प्रकाश-वर्ष एक साल में प्रकाश द्वारा तय की गई दूरी को दिखाता है, जो कि लगभग 9.5 ट्रिलियन किलोमीटर होती है.

वैज्ञानिकों ने 1990 के दशक से अब तक सौर­मंडल से बाहर 5,900 से अधिक ग्रहों की खोज की है. लेकिन जेम्स वेब द्वारा इन दोनों ग्रहों की प्रत्यक्ष रूप में तस्वीरें लेना बस 2 फीसदी ऐसी दुर्लभ खोजों में आता है, जो उनके शुरुआती विकास के दौर को दिखाता है.

विकास की दो अनोखी अवस्थाएं

वाईएसईएस‑1 बी, तारे का नजदीकी ग्रह है. इसका द्रव्यमान हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति से लगभग 14 गुना बड़ा है. यह तारे से इतना दूर है कि एक कक्षा पूरी करने में इसे हजारों साल लग सकते हैं. जेम्स वेब ने इसके चारों ओर एक पतली धूल की डिस्क का पता लगाया है, जो शायद उसके गठन की प्रक्रिया में है, या किसी टकराव की निशानी हो सकती है. इसके वायुमंडल में पानी और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे अणुओं की भी पुष्टि हुई है.

दूसरी ओर, ज्यादा बाहरी ग्रह वाईएसईएस-1सी का द्रव्यमान बृहस्पति से लगभग 6 गुना है और इसकी कक्षा भी बहुत दूरी पर है. इस ग्रह की सबसे खास बात यह है कि इसके वायुमंडल में सिलिकेट यानी सैंड क्लाउड्स हैं यानी रेत जैसे कणों से बने बादल. इसके अलावा मीथेन, पानी, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड भी मौजूद पाए गए हैं. सिलिकेट क्लाउड्स की यह पहली ऐसी खोज है और इससे पता चलता है कि इसमें "बारीक रेत की बरसात" जैसी प्रक्रिया हो सकती है.

क्यों अहम है यह खोज?

बाल्टीमोर स्थित स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट के प्रमुख और इस शोध के लेखक डॉ. कीलेन होख कहते हैं, "इन दोनों ग्रहों की विशेषताएं यानी एक का धूल भरे वायुमंडल से ढका होना और दूसरे पर धूल की डिस्क होना, यह दिखाता है कि ग्रह निर्माण प्रक्रिया कितनी जटिल हो सकती है और हमें अब भी बहुत कुछ अनुमान करना है.”

डॉ. होख ने कहा, "वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, ग्रहों को आम तौर पर एक ही समय में बनना चाहिए, क्योंकि ग्रह-निर्माण प्रक्रिया करीब एक मिलियन वर्षों के भीतर पूरी हो जाती है. लेकिन यहां जो अंतर देखे, वे नजरिया बदल देने वाले हैं.”

उनका यह भी कहना था कि ग्रहों की दूरी प्लेटावारिक डिस्क से इतनी ज्यादा है कि पारंपरिक मॉडल पर सवाल खड़े हो जाते हैं. उन्होंने बताया, "वाईएसईएस‑1 बी के चारों ओर यदि अब भी डिस्क है और वाईएसईएस ‑1 सी में नहीं है, तो इसका मतलब यह है कि सभी विशाल ग्रह एक ही तरीके और रंग में तैयार नहीं होते, भले ही वे एक जैसे माहौल में बने हों.”

2022 में शुरू होने के बाद से ब्रह्मांड के प्रारंभिक इतिहास की खोजों में जेम्स वेब टेलीस्कोप ने कई अहम खोजेंकी हैं, यह खोज एग्जोप्लैनेट यानी सौरमंडल के बाहर के ग्रहों पर काम करने वाले वैज्ञानिकों के लिए विशेष रूप से नई दिशा खोलती है.