Rani Lakshmibai Punyatithi 2025: ब्रिटिश हुकूमत क्यों खौफ खाती थी रानी लक्ष्मीबाई से? जाने वीरांगना के शौर्य, साहस और रणकौशल की गाथा!
रानी लक्ष्मी बाई पुण्यतिथि 2025 (Photo Credits: File Image)

Rani Lakshmibai Punyatithi 2025: पेशवा बाजीराव द्वितीय के एक सामान्य दरबारी मोरोपंत तांबे की बेटी मनु बचपन से साहसी और निडर थीं. उनके इसी शौर्य और बहादुरी के चलते वे मराठी शासित झांसी की रानी (Jhansi Ki Rani) बनीं. वे महान देशभक्त ही नहीं थीं, बल्कि अत्यंत कुशल और दूरदर्शी सेनानायिका भी थीं. 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी युद्धनीति और रणनीतियां आज भी सैन्य इतिहास में प्रेरणा का स्रोत हैं. महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की 167 वीं पुण्यतिथि पर आइये जानें उनके शौर्य, पराक्रम और युद्ध नीति के बारे में विस्तार से...यह भी पढ़ें: Guru Hargobind Singh Jayanti 2025: गुरु हरगोबिंद सिंह को सिख सैन्य प्रशिक्षण परंपरा क्यों शुरू करनी पड़ी? जानें उनके जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग!

युद्ध का पूर्वाभ्यास और संगठन कौशल

सेना का प्रशिक्षण: रानी लक्ष्मीबाई ने महिला और पुरुष दोनों को युद्ध कौशल में प्रशिक्षित किया. उन्होंने ‘दुर्गा दल’ नामक महिला सेना का गठन किया.

आधुनिक हथियारों का उपयोग: उस समय की उपलब्ध तकनीक के अनुसार रानी ने अपनी सेना को बंदूकें, तोपें और तलवारों से सुसज्जित किया था.

किले की सुरक्षा: झांसी के किले की रक्षा के लिए उन्होंने किले की बनावट का भरपूर उपयोग किया, जिसमें ऊंचे प्राचीर, तोपों की व्यवस्था और द्वारों की रक्षा की खास योजना शामिल थी.

गुरिल्ला युद्ध नीति का प्रयोग

ब्रिटिश हुकूमत की शक्तिशाली सेना के साथ जब सीधा युद्ध असंभव हो गया, तब रानी ने शिवाजी महाराज की युद्ध नीति से प्रेरित होकर गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई, जिससे वे अपने सैनिकों के साथ दुश्मन पर अचानक हमला करती थीं और तुरंत स्थान बदल लेती थीं. यह नीति विशेषकर अंग्रेजों के लिए चुनौतीपूर्ण थी, क्योंकि वे खुले मैदान की लड़ाई में पारंगत थे, जबकि रानी हमेशा स्थानीय भौगोलिक स्थिति का पूरा लाभ उठाती थीं.

तेज निर्णय क्षमता और गति

रानी लक्ष्मीबाई की निर्णय क्षमता बहुत तेज थी. झांसी पर पहला हमला होते ही उन्होंने बिना समय गंवाए युद्ध की तैयारी शुरू कर दी. वे घुड़सवारी में माहिर थीं और तेज गति से स्थान बदलकर दुश्मन को भ्रमित कर देती थीं. कालपी से ग्वालियर की ओर उनका जाना उनकी इसी तत्काल निर्णय लेने की मिसाल है.

संधि और सहयोग की कूटनीति

रानी ने अन्य क्रांतिकारियों जैसे तात्या टोपे और नाना साहेब से सहयोग स्थापित किया. उन्होंने संयुक्त मोर्चा बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को और व्यापक और आक्रामक रूप देने का प्रयास किया.

आत्मबल और प्रेरणा का स्रोत

रानी लक्ष्मीबाई की सबसे बड़ी शक्ति उनका आत्मबल और प्रेरणा देने की शक्ति थी. वे स्वयं सैनिकों के साथ दुश्मनों से लड़ती थीं, जिसकी वजह से उनकी सेना का मनोबल हमेशा ऊंचा रहता था.

दुश्मन सेना में खौफ पैदा करना

रानी तलवार चलाने में अत्यधिक निपुण थीं उनकी युद्धनीति का प्रमुख ध्येय था, अपनी आक्रामकता से दुश्मन में खौफ पैदा करना. इसलिए युद्ध के मैदान में दुश्मन का बड़े से बड़ा सेनापति उनका सामने से सामना करने से डरता था. यही वजह थी कि 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय वह दुश्मन सेना पर बिजली बनकर टूट पड़ी थीं, तभी पीछे से घात लगाकर किसी उनके सिर पर तलवार से वार कर दिया. और रानी वीरगति को प्राप्त हुईं.