
Guru Hargobind Singh Jayanti 2025: गुरु हरगोबिंद सिंह (Guru Hargobind Singh) सिख धर्म के छठे गुरु एवं गुरू अर्जन देव के सुपुत्र थे. हरगोबिंद जब मात्र 11 वर्ष के थे, मुगल सम्राट जहांगीर ने साल 1606 में उनके पिता की नृशंस हत्या करवा दी थी. जिसका उन पर गहरा असर पड़ा. मुगलों की बढ़ती आक्रामकता पर नियंत्रण रखने हेतु उन्होंने सिख धर्म का पहली बार सैन्यीकरण किया. सिख समुदाय को असाधारण शक्तिशाली और दृढ़ संकल्प के लिए प्रेरित किया. उन्हें सैन्य प्रशिक्षण के साथ मार्शन आर्ट में भी पारंगत कराया. उन्होंने ही हरमंदिर साहिब अमृतसर मंदिर के पास अकाल तख्त मंदिर का निर्माण करवाया था. गुरु हरगोबिंद देव की जयंती (Guru Hargobind Singh Jayanti) (12 जून 2025) के अवसर पर आइये जानते हैं गुरु हरगोबिंद देव के बारे में कुछ अनछुए मगर रोचक प्रसंग.
कौन हैं गुरु हरगोबिंद सिंह
गुरु हरगोबिंद सिंह का जन्म 12 जून 1595 को अमृतसर स्थित वडाली गांव में हुआ था. सिख धर्म के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह गुरु अर्जन देव के पुत्र थे. पिता की मृत्यु के पश्चात मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में उन्होंने पिता का स्थान लिया था. उनकी मां का नाम गंगा था, उन्हें सिख धर्म के सैन्यीकरण की शुरुआत करने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. उन्होंने मुगल सम्राट जहांगीर की सेना से अपने समुदाय की रक्षा के लिए सैन्यीकरण को बढ़ावा दिया, उन्होंने अकाल सेना के नाम से एक स्थाई सेना की स्थापना की थी.
क्या था हरगोबिंद देव का सैन्यीकरण?
मुगल आक्रांताओं के षड्यंत्रों को ध्यान में रखते हुए पिता की सलाह पर हरगोबिंद ने अपनी सुरक्षा के लिए सशस्त्र सुरक्षा गार्ड रखे थे. हालांकि उन्होंने मार्शल आर्ट में भी महारत हासिल की थी. वह हमेशा दो तलवार रखते थे. एक लौकिक (मीरी) और दूसरी आध्यात्मिक (पीरी) शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाली थी. वह अपनी आम जनता से लेकर सभी सैनिकों को शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं युद्ध के लिए सदैव तत्पर रहने के लिए प्रोत्साहित करते थे. हरगोबिंद देव की सेना में 700 घोड़े, तीन सौ घुड़सवार और 60 सैनिक शामिल थे.
पिता की मौत का बदला
शाहजहां ने 1627 में सत्ता संभाली. उसके असहिष्णु शासन काल में सिखों और मुगलों के बीच बद से बदतर स्थिति हो गई. गुरु हरगोबिंद देव और शाहजहां के बीच अमृतसर, करतारपुर जैसे कई स्थानों पर लड़ाइयां लड़ीं. साल 1634 में अमृतसर की लड़ाई में गुरु हरगोबिंद देव ने अपनी सिख सेना के साथ मुगल सेना को पराजित किया. मुगलों की भारी-भरकम सेना से सीधे युद्ध को नजरअंदाज करते हुए गुरू हरगोबिंद अपनी सेना को लेकर शिवालिक पहाड़ियों पर चले गये. उन्होंने कीरतपुर में बेस बनाया. 1635 में हुए करतारपुर युद्ध के दौरान गुरु हरगोबिंद ने गुरु अर्जन के हत्यारे चंदू शाह की हत्या कर पिता की मौत का बदला लिया.
गुरु हरगोबिंद द्वारा लड़ी मुख्य लड़ाइयां की सूची
गुरु हरगोबिंद के जीवन का अधिकांश हिस्सा मुगलों से युद्ध करते बीता. जहांगीर से शाहजहां तक उनके द्वारा लड़े युद्ध की मुख्य सूची देखकर आकलन किया जा सकता है, कि किस तरह उनका अधिकांश समय दुश्मनों से युद्ध करते बीता.
संगराना की लड़ाई (1628)
रोहिल्ला का युद्ध (1630)
अमृतसर की लड़ाई (1634)
लाहिरा का युद्ध 1634
करतारपुर की लड़ाई, 1635
फगवाड़ा की लड़ाई 1635
माहम के लिए लड़ाई
पडियाला की लड़ाई
कीरतपुर का युद्ध
गुरु हरगोबिंद की मृत्यु
एक बार गुरु हरगोबिंद सिंह काफी बीमार पड़े गये. तमाम इलाज के बावजूद वे स्वस्थ नहीं हुए और 22 मार्च 1644 में मात्र 49 वर्ष की आयु में गुरु हरगोबिंद का निधन हो गया. हालांकि उनकी मृत्यु की तिथि को लेकर इतिहासकारों में अनिश्चितता है, लेकिन उनकी मृत्यु सिंह समाज की अपूरणीय क्षति थी. उन्होंने अपने पोते गुरु हर राय देव को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए सिख समाज का सातवां गुरु नियुक्त किया.