नयी दिल्ली, नौ दिसंबर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के अनुसंधानकर्ताओं ने मीथेनोट्रोफिक बैक्टीरिया का उपयोग करके मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को स्वच्छ जैव ईंधन में परिवर्तित करने के लिए एक उन्नत जैविक विधि विकसित की है। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि यह नवीन दृष्टिकोण टिकाऊ ऊर्जा समाधान और जलवायु परिवर्तन को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।
एल्सेवियर की प्रमुख पत्रिका ‘फ्यूल’ में प्रकाशित यह अनुसंधान दो महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों - ग्रीनहाउस गैसों के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभाव और जीवाश्म ईंधन भंडारों की कमी कर समाधान पेश करता है।
आईआईटी गुवाहाटी के बायोसाइंसेज एवं बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर देबाशीष दास ने बताया कि ग्रीनहाउस गैस मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 27 से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है और ग्लोबल वार्मिंग में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
उन्होंने कहा, ‘‘मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को तरल ईंधन में परिवर्तित करने से उत्सर्जन में कमी आ सकती है और नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध हो सकती है, लेकिन मौजूदा रासायनिक विधियां महंगी हैं और विषाक्त उप-उत्पाद उत्पन्न करती हैं, जिससे उनकी मापनीयता सीमित हो जाती है।’’
दास ने कहा कि उनकी टीम ने एक पूर्ण जैविक प्रक्रिया विकसित की है, जो हल्की परिचालन स्थितियों के तहत मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड को बायो-मेथनॉल में परिवर्तित करने के लिए एक प्रकार के मीथेनोट्रोफिक बैक्टीरिया का उपयोग करती है।
प्रोफेसर ने कहा, ‘‘पारंपरिक रासायनिक विधियों के विपरीत यह प्रक्रिया महंगे उत्प्रेरकों की आवश्यकता को समाप्त कर देती है, विषाक्त उप-उत्पादों से बचाती है तथा अधिक ऊर्जा-कुशल तरीके से कार्य करती है।’’
अनुसंधानकर्ताओं ने दावा किया कि इस विधि से कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन सल्फाइड और धुएं के उत्सर्जन में 87 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है।
दास के अनुसार, यह अनुसंधान एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह दर्शाता है कि मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड पर निर्भर बैक्टीरिया से प्राप्त बायो-मेथनॉल, जीवाश्म ईंधन का एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है।
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