Persons with Disabilities Rights Act: दिव्यांगजन अधिकार कानून में प्रशंसनीय नीति दूर का सपना नहीं होना चाहिए: केरल उच्च न्यायालय
Kerala High Court (Photo Credit: Wikimedia Commons)

कोच्चि, 10 फरवरी: केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि दिव्यांगजन अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम में निहित प्रशंसनीय नीति को लागू किया जाना चाहिए और यह दूर का सपना नहीं बनना चाहिए. अदालत ने जनवरी में कोझिकोड जिले में 77 वर्षीय एक दिव्यांग व्यक्ति द्वारा पिछले कुछ महीनों से कथित तौर पर विकलांगता पेंशन न मिलने के कारण आत्महत्या की खबरों के आधार पर मामले का स्वत: संज्ञान लिया था. इसी मामले में सुनवाई करते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की.

अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार के वकीलों को इस मामले पर निर्देश लेने के लिए समय दिया है. याचिका को 23 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम एक बड़े बदलाव की कल्पना करता है और उक्त कानून के तहत प्रदान किए गए लाभों को साकार करने की कल्पना करता है. उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘इसमें चीजें बेहतर की गई हैं और कई लोगों की जिम्मेदारियों को शामिल किया गया है.

ऐसी स्थिति में, अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधानों की संरचना पर गौर करना और यह देखना अनिवार्य हो जाता है कि उन्हें लागू किया गया है.’’ उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘कानून के ढांचे के भीतर निहित प्रशंसनीय नीति को लागू किया जाना चाहिए और यह दूर का सपना नहीं बनना चाहिए. कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है.’’ अधिनियम की धारा 24 सामाजिक सुरक्षा से संबंधित है. यह धारा कहती है कि संबंधित सरकार, अपनी आर्थिक क्षमता और दायरे के भीतर दिव्यांगजन के स्वतंत्र रूप से या समुदाय में रहने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक योजनाएं और कार्यक्रम तैयार करेगी.

पिछले कुछ महीनों से सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत कथित तौर पर पेंशन नहीं मिलने के कारण दिव्यांग व्यक्ति जोसेफ उर्फ पप्पाचन (77) द्वारा आत्महत्या की खबरें आने के बाद अदालत ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था. जोसेफ ने शुरू में पेंशन न मिलने की शिकायत करते हुए चक्किटपारा ग्राम पंचायत के सचिव और संबंधित थाने से भी संपर्क किया था और पेंशन न मिलने पर आत्महत्या करने की चेतावनी दी थी. जोसेफ की 47 वर्ष बेटी भी दिव्यांग हैं जो एक अनाथालय में रहती हैं.

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