क्या होता है रेसिप्रोकल टैरिफ
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत समेत कई देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की धमकी दी है. लेकिन यह क्या होते हैं और इनका वैश्विक व्यापार पर क्या असर पड़ेगा?अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस साल की शुरुआत में अपने अधिकारियों को आदेश दिया कि वह अमेरिका में आयात होने वाले सामानों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने की योजना बनाएं. यह उनके "आई फॉर एन आई” नीति यानि बराबर का बदला देने की सोच रहा है, जिसका वादा उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान किया था.

ट्रंप ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से कहा, "मैंने यह फैसला व्यापार में बराबरी बनाए रखने के लिए किया है. जिसका मतलब है कि अमेरिका भी उन्हीं दरों पर टैरिफ लगाएगा, जिन दरों पर दूसरे देश अमेरिका पर टैरिफ लगाते हैं. ना ज्यादा, ना कम.”

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ट्रंप ने दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद कई नए टैरिफों की घोषणा की है और ऐसे कई फैसले वापस भी लिए हैं. मार्च में चीन से आयात सामानों पर 20 फीसदी का अतिरिक्त कर लगाया गया. कनाडा और मेक्सिको से आने वाले सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की गई, लेकिन अभी के लिए इसे टाल दिया गया है. इसके अलावा ट्रंप ने स्टील और एल्युमिनियम के आयात पर भी टैरिफ की घोषणा की है, जो कि 12 मार्च से लागू होगा.

ट्रंप रेसिप्रोकल टैरिफ क्यों लगाना चाहते हैं?

ट्रंप का मानना है कि अमेरिका के साथ वैश्विक व्यापार में अन्य देश अनुचित व्यवहार करते हैं. उनका कहना है कि कई देश अमेरिकी सामानों पर अधिक टैरिफ लगाते हैं, जबकि अमेरिका उनके उत्पादों पर कम टैरिफ लगाता है, जिससे व्यापार में असंतुलन पैदा होता है.

उदाहरण के तौर पर, व्यापार नीति विश्लेषण संगठन 'ग्लोबल ट्रेड अलर्ट' के अनुसार, भारत 87 फीसदी आयात किए गए सामानों पर अमेरिका की तुलना में पांच से बीस फीसदी अधिक टैरिफ लगाता है. ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका भी हर उस देश से आयात किए गए सामान पर उतना ही टैरिफ लगाए, जितना वो देश अमेरिकी उत्पादों पर लगा रहा है.

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उनकी योजना है कि चीन और यूरोपीय संघ जैसे बड़े देशों को उनके आयात शुल्क कम करने के लिए मजबूर किया जाए. ट्रंप का मानना है कि इससे "अमेरिका फर्स्ट" नीति को बढ़ावा मिलेगा, अमेरिकी कंपनियां अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगी और अमेरिका का व्यापार घाटा कम होगा. ट्रंप ने फरवरी में इस टैरिफ नीति की घोषणा करते हुए कहा, "अगर कोई देश हमारे साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करता है, तो हम भी उनके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करेंगे."

हालांकि, अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिका को व्यापार में असंतुलन के बावजूद भी फायदा होता है. अमेरिकी डॉलर दुनिया की मुख्य व्यापारिक मुद्रा है, इसलिए अधिक व्यापार घाटे के बावजूद अमेरिका को आर्थिक लाभ मिलता है. जब देश अमेरिका से सामान खरीदते हैं, तो वह डॉलर में भुगतान करते हैं. फिर यह डॉलर अमेरिका में वापस निवेश किए जाते हैं, जैसे कि सरकारी बॉन्ड, शेयर बाजार और रियल एस्टेट में. इससे अमेरिका में ब्याज दरें कम रहती हैं, जिससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं को उधार लेने में और खर्चा करने में आसानी होती है.

ट्रंप की नीति को कैसे लागू किया जा रहा है?

व्हाइट हाउस के मेमो के अनुसार, अमेरिकी अधिकारियों को 180 दिनों का समय दिया गया ताकि वह उन देशों की पहचान कर सकें जो अमेरिका की तुलना में अधिक टैरिफ लगाते हैं. इसके बाद वह प्रत्येक देश के लिए अलग-अलग टैरिफ लगाने की सिफारिश करेंगे. हालांकि, यह टैरिफ 180 दिनों की समय सीमा से पहले भी लागू किया जा सकता है. ट्रंप के वाणिज्य सचिव, हावर्ड लटनिक ने उम्मीद जताई है कि ये प्रस्ताव तय समय से पहले भी तैयार किए जा सकते हैं.

ट्रंप के टैरिफों से बचने की पूरी कोशिश में यूरोपीय संघ और भारत

अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा था कि यह नीति सिर्फ अमेरिका के बड़े व्यापारिक भागीदारों को प्रभावित करेगी लेकिन ट्रंप ने 30 मार्च को एयर फोर्स वन में पत्रकारों से कहा कि यह टैरिफ "सभी देशों" पर लागू होगा, जिसमें अमेरिका के करीबी सहयोगी भी शामिल हैं. उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि इन टैरिफ को किस आधार पर लगाया जाएगा या वह इससे क्या उम्मीद कर रहे हैं लेकिन उन्होंने दो अप्रैल को इस पर आगे की जानकारी देने का वादा किया है.

ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के अनुसार इस नीति से सबसे अधिक नुकसान उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को होगा, जिसमें भारत, अर्जेंटीना, अफ्रीका के कई देश और दक्षिण पूर्व एशिया शामिल हैं. हाल ही में व्हाइट हाउस ने ब्राजील पर निशाना लगाया. बताया गया कि अमेरिका, ब्राजील से आयातित इथेनॉल पर 2.5 फीसदी टैरिफ लगाता है, जबकि ब्राजील अमेरिकी इथेनॉल पर 18 फीसदी टैरिफ लगाता है.

इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ऐसी कई कारकों का जिक्र कर रहा है, जिससे अमेरिकी उत्पादकों को नुकसान होता है. इसमें सरकारी सब्सिडी, कड़े नियम, वैल्यू-एडेड टैक्स, मुद्रा का अवमूल्यन और बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा भी शामिल हैं.

रेसिप्रोकल टैरिफ का क्या असर हो सकता है?

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ट्रंप के लगाए गए टैरिफ से अमेरिका में आयात किए जाने वाले सामान महंगे हो जाएंगे, जिससे महंगाई बढ़ सकती है.

अमेरिका में कोविड-19 महामारी के बाद महंगाई वैसे ही बहुत ज्यादा बढ़ गई थी. जनवरी 2025 में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स तीन फीसदी तक बढ़ गया, जो पिछले छह महीनों में सबसे ज्यादा था.

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का अनुमान है कि अगर चीन, कनाडा और मेक्सिको पर लगाए गए टैरिफ पूरी तरह लागू हो जाते हैं, तो अमेरिका में उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें एक बार में 0.7 फीसदी तक बढ़ सकती हैं. हालांकि जब तक यह रेसिप्रोकल टैरिफ पूर्ण रूप से लागू नहीं हो जाते हैं तब तक यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इससे अमेरिका में मुद्रास्फीती पर क्या असर होगा.

एक ओर कुछ अमेरिकी निर्माताओं और व्यापारियों को इससे फायदा होने की संभावना है, क्योंकि लोग आयात किए सामान की बजाय घरेलू उत्पाद खरीद सकते हैं. लेकिन उन्हें नुकसान भी हो सकता है क्योंकि कई अमेरिकी कंपनियां अपने लिए कच्चा माल और जरूरी उपकरण आयात करती हैं. टैरिफ बढ़ने से इन उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी और आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी.

अगर अमेरिका दूसरे देशों पर टैरिफ बढ़ाता है, तो वह भी जवाबी टैरिफ लगा सकते हैं. यूरोपीय संघ और चीन ने पहले ही ऐसे कदम उठाने की घोषणा कर दी है और अन्य देश भी इसी राह पर चल सकते हैं. इससे अमेरिकी कंपनियों का निर्यात महंगा हो जाएगा और इससे उनकी बिक्री और मुनाफा दोनों घट सकता है.

अन्य देश नए टैरिफों से बचने के लिए क्या कर सकते हैं?

ट्रंप के लगाए गए टैरिफ ने वैश्विक व्यापार युद्ध की चिंता को बढ़ा दिया है और कई उद्योगों और देशों में गहरी अनिश्चितता भी पैदा कर दी है.

रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा से बातचीत का नया दौर शुरू हो सकता है, जिसमें अमेरिका को निर्यात होने वाले सामानों पर लगाए गए टैरिफ को कम करने की कोशिशें की जा सकती हैं. उदाहरण के लिए, भारत ने पहले ही ट्रंप की धमकी के मद्देनजर कई उत्पादों पर टैरिफ में कटौती कर दी है. भारतीय विदेश सचिव, विक्रम मिस्री ने हाल ही में कहा कि ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वाशिंगटन में हुई बैठक के बाद व्यापारिक मुद्दों को हल करने के लिए अगले सात महीनों में एक समझौता हो सकता है.

ताइवान के राष्ट्रपति ने हाल ही में वाशिंगटन के साथ बातचीत में "विन-विन स्थिति" की पहल की, जिससे केवल अमेरिका को फायदा न हो, बल्कि ताइवान के उद्योगों को भी बढ़ावा मिले.

यूरोपीय आयोग ने रेसिप्रोकल टैरिफ को "गलत दिशा की ओर बढ़ता कदम” बताया है और फरवरी में कहा कि यूरोपीय संघ जल्द और सख्ती के साथ ऐसे अव्यावसायिक नीतियों पर प्रतिक्रिया देगा, जो स्वतंत्र और उचित व्यापार में बाधा पैदा करते हैं.

यूरोपीय संसद की व्यापार समिति के प्रमुख, बैर्न्ड लांगे ने फाइनेंशियल टाइम्स से कहा कि यूरोपीय संघ अमेरिकी कारों पर टैरिफ घटाने और अमेरिका से अधिक लिक्विफाइड नेचुरल गैस और सैन्य उपकरण खरीदने के लिए तैयार हैं, अगर यूरोपीय संघ को निर्यात पर अधिक टैरिफ का सामना ना करना पड़े.

यूरोपीय संघ आयात वाहनों पर 10 फीसदी टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका में यह दर सिर्फ 2.5 फीसदी है. हालांकि, अमेरिका का टैरिफ पिकअप ट्रकों और कमर्शियल वाहनों पर यूरोपीय संघ से कहीं अधिक है.

वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत 160 से अधिक सदस्य देश ज्यादातर बिना भेदभाव के टैरिफ लगाते हैं. हालांकि फ्री ट्रेड समझौते और कस्टम यूनियन जैसे कुछ नियम अवश्य होते हैं.

ट्रंप की योजना अन्य प्रमुख देशों को भी एक-एक कर टैरिफ की बातचीत करने के लिए मजबूर कर सकता है. इससे दशकों पुराने व्यापार नियम बदल सकते हैं.