Chinnamasta Jayanti 2020: देवी पुराण में दैवीय शक्तियों पर तरह-तरह के रहस्य उल्लेखित हैं. इन्हीं में एक महाशक्ति हैं भगवती छिन्नमस्ता (Bhagawati Chinnamasta). भगवती छिन्नमस्ता की जयंती प्रत्येक वर्ष वैशाख मास में शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को मनायी जाती है. पौराणिक कथाओं में माता छिन्नमस्ता का स्वरूप बेहद गोपनीय बताया गया है, जिनके रहस्य को कोई सिद्ध पुरुष ही समझ सकता है.
जगत में वृद्धि ह्रास सृष्टि का नियम है, ह्रास जब कम और विकास ज्यादा होता है तब भुवनेश्वरी माता का प्रकाट्य होता है इसके विपरीत जब निर्गम अधिक और आगम कम होता है तब छिन्नमस्ता माता का प्रकाट्य होता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 6 मई को भगवती छिन्नमस्ता की जयंती मनायी जायेगी.
कौन हैं माता छिन्नमस्ता
दश महाविद्याओं में से छठी महाविद्या माता छिन्नमस्ता कहलाती हैं. छिन्नमस्ता. छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तष्क वाली देवी. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, छिन्नमस्ता वास्तव में माता काली की ही दिव्य अवतार हैं क्योंकि उन्हें जीवनदाता के साथ-साथ जीवन हरने वाली माता भी कहा जाता है. देश के कई हिस्सों में इन्हें ‘प्रचंड चंडिका’ या ‘छिन्नमस्तिका’ भी कहते हैं. मान्यता है कि देवी छिन्नमस्ता की विधि-विधान से पूजा करने से भक्त के सारे संकट दूर होते हैं.
छिन्ममस्ता माता का महात्म्य
धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है कि अगर मध्य रात्रि में छिन्नमस्ता माता का पूरी निष्ठा एवं विधान से अनुष्ठान एवं उपासना की जाये तो सरस्वती सिद्ध हो जाती हैं. ऐसा करने से खतरनाक शत्रुओं पर भी आसानी से विजय प्राप्त हो जाता है, खोया हुआ राज्य अथवा फंसा हुआ जायदाद वापस मिलता है साथ ही दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति होती है. छिन्ममस्ता मां की उपासना अमोघ होता है.
ऐसे करें छिन्नमस्ता का अनुष्ठान
वैशाख मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन पूर्व पूरे घर की अच्छे से सफाई करें. अगले दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. शाम के समय प्रदोषकाल में घर के मंदिर के सामने दक्षिण पश्चिम मुखी होकर नीले रंग का आसन बिछाकर उस बैठ जायें. अब अपने सामने लड़की की चौकी बिछाकर उस पर भी नीले रंग का नया आसन बिछाएं. अब इस पर छिन्नमस्ता का यंत्र मंत्रोच्चारण के साथ स्थापित करें. अब दाएं हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर संकल्प करें. इसके पश्चात हाथ जोड़कर छिन्नमस्ता देवी का ध्यान करें. ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें.
प्रचण्ड चंडिका वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्,
यस्याः स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर
माता छिन्नमस्ता की विभिन्न प्रकार से पूजन-अर्चन करें. सरसों के तेल में नील मिलाकर दीप प्रज्जवलित करें. अगर उपलब्ध हो तो देवी को नीले रंग का पुष्प अर्पित करें. देवी का काजल से तिलक करें. लोहबान से धुआं करें, और इत्र चढ़ाएं. उड़द से बने मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाएं. अब बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ रुद्राक्ष माला लेकर इस मंत्र का जाप करें.
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहाः
पारंपरिक कथा
काली तंत्रम के अनुसार एक बार माता पार्वती अपनी दो सखियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं. वहां कामाग्नि से पीड़ित होकर वे कृष्ण वर्ण की हो गयीं. इसी समय भूख से व्याकुल होकर जया और विजय ने उनसे भोजन की मांग की. माता पार्वती ने उन्हें कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा, किंतु दोनों सखियां तीव्र भूख से व्याकुल थीं.
उन्होंने माता पार्वती से पुनः भोजन की मांग की. इस पर देवी ने कटार निकाली और अपना सिर धड़ से अलग कर दिया. कटा हुआ शीश देवी के बाएं हाथों में गिरा. उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकलीं. दो धाराएं उनकी दोनों सहचरियों के मुख में गयी, तीसरी का पान देवी ने स्वयं कर लिया. इसके बाद से ही माता पार्वती छिन्नमस्ता नाम से भी जानी जाने लगीं.
कौन हैं माता छिन्नमस्ता
दश महाविद्याओं में से छठी महाविद्या माता छिन्नमस्ता कहलाती हैं. छिन्नमस्ता. छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तष्क वाली देवी. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, छिन्नमस्ता वास्तव में माता काली की ही दिव्य अवतार हैं क्योंकि उन्हें जीवनदाता के साथ-साथ जीवन हरने वाली माता भी कहा जाता है. देश के कई हिस्सों में इन्हें ‘प्रचंड चंडिका’ या ‘छिन्नमस्तिका’ भी कहते हैं. मान्यता है कि देवी छिन्नमस्ता की विधि-विधान से पूजा करने से भक्त के सारे संकट दूर होते हैं.
छिन्ममस्ता माता का महात्म्य
धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है कि अगर मध्य रात्रि में छिन्नमस्ता माता का पूरी निष्ठा एवं विधान से अनुष्ठान एवं उपासना की जाये तो सरस्वती सिद्ध हो जाती हैं. ऐसा करने से खतरनाक शत्रुओं पर भी आसानी से विजय प्राप्त हो जाता है, खोया हुआ राज्य अथवा फंसा हुआ जायदाद वापस मिलता है साथ ही दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति होती है. छिन्ममस्ता मां की उपासना अमोघ होता है.
ऐसे करें छिन्नमस्ता का अनुष्ठान
वैशाख मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन पूर्व पूरे घर की अच्छे से सफाई करें. अगले दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. शाम के समय प्रदोषकाल में घर के मंदिर के सामने दक्षिण पश्चिम मुखी होकर नीले रंग का आसन बिछाकर उस बैठ जायें. अब अपने सामने लड़की की चौकी बिछाकर उस पर भी नीले रंग का नया आसन बिछाएं. अब इस पर छिन्नमस्ता का यंत्र मंत्रोच्चारण के साथ स्थापित करें. अब दाएं हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर संकल्प करें. इसके पश्चात हाथ जोड़कर छिन्नमस्ता देवी का ध्यान करें. ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें.
प्रचण्ड चंडिका वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्,
यस्याः स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर
माता छिन्नमस्ता की विभिन्न प्रकार से पूजन-अर्चन करें. सरसों के तेल में नील मिलाकर दीप प्रज्जवलित करें. अगर उपलब्ध हो तो देवी को नीले रंग का पुष्प अर्पित करें. देवी का काजल से तिलक करें. लोहबान से धुआं करें, और इत्र चढ़ाएं. उड़द से बने मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाएं. अब बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ रुद्राक्ष माला लेकर इस मंत्र का जाप करें.
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहाः
पारंपरिक कथा
काली तंत्रम के अनुसार एक बार माता पार्वती अपनी दो सखियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं. वहां कामाग्नि से पीड़ित होकर वे कृष्ण वर्ण की हो गयीं. इसी समय भूख से व्याकुल होकर जया और विजय ने उनसे भोजन की मांग की. माता पार्वती ने उन्हें कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा, किंतु दोनों सखियां तीव्र भूख से व्याकुल थीं.
उन्होंने माता पार्वती से पुनः भोजन की मांग की. इस पर देवी ने कटार निकाली और अपना सिर धड़ से अलग कर दिया. कटा हुआ शीश देवी के बाएं हाथों में गिरा. उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकलीं. दो धाराएं उनकी दोनों सहचरियों के मुख में गयी, तीसरी का पान देवी ने स्वयं कर लिया. इसके बाद से ही माता पार्वती छिन्नमस्ता नाम से भी जानी जाने लगीं.