Ganeshotsav 2019: गणपति बाप्पा (Ganpati Bappa) के आगमन का बेसब्री से इंतजार करने वाले भक्तों का इंतजार अब खत्म होने वाला है. जी हां, 2 अगस्त 2019 को बाप्पा का आगमन अपने भक्तों के बीच हो रहा है. गणेशोत्सव (Ganeshotsav) की धूम सिर्फ महाराष्ट्र (Maharashtra) ही नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों में देखने को मिलती है, लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. यहां लोग बाप्पा के स्वागत के लिए न सिर्फ अपने घरों को सजाते हैं, बल्कि सार्वजनिक पंडालों को भी हर साल अलग-अलग थीम पर सजाया जाता है. गणेशोत्सव के दौरान भक्त अपने आराध्य की एक झलक पाने के लिए विभिन्न पंडालों में जाते हैं और घंटों तक कतार में खड़े रहते हैं. मुबंई के गणेश पंडालों का जब भी जिक्र आता है, लालबाग के राजा (Lalbaugh Cha Raja) का नाम उसमें सबसे पहले आता है.
गणेशोत्सव के दौरान लालबाग के राजा (Lalbaugh ke Raja) के दरबार की रौनक देखने लायक होती है. यहां घंटों तक लोग लंबी कतार में खड़े रहते हैं, ताकि गणपति बाप्पा की एक झलक पा सकें और अपने मुरादों की झोली भरकर वापस लौट सकें. कहा जाता है कि लालबाग के राजा अपने दरबार से भक्तों को कभी खाली हाथ वापस नहीं जाने देते, इसलिए उन्हें मन्नतों का राजा (Mannato ke Raja) यानी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला गणपति भी कहा जाता है. यही वजह है कि आम लोगों से लेकर मनोरंजन जगत के सितारे और अन्य दिग्गज हस्तियां भी लालबाग के राजा के दरबार में हाजिरी लगाने जरूर आते हैं. चलिए जानते हैं लालबाग के राजा से जुड़ी दिलचस्प कहानी. यह भी पढ़ें: गणेश चतुर्थी 2019 में कब है? जानिए गणेशोत्सव का महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
लालबाग के राजा का इतिहास
कहा जाता है कि वर्तमान में जिस जगह पर लालबाग के राजा विराजमान हैं, वहां एक जमाने में व्यापारी रहा करते थे. इन व्यापारियों का व्यापार घाटे में चलता था, जिसके चलते ये लोग चाहते थे कि लालबाग के खुले स्थान पर बाजार लगे. व्यापार में घाटे से परेशान व्यापारियों ने खुले स्थान पर बाजार लगने की इच्छा से लालबाग के राजा के पंडाल की स्थापना की. राजा की मूर्ति स्थापित हो जाने के बाद व्यापारियों की मनोकामना पूरी हुई, जिसके बाद हर साल बहुत ही भव्य तरीके से यहां गणेशोत्सव का पर्व मनाया जाने लगा.
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जहां लालबाग के राजा विराजते हैं वहां अंग्रेजों के शासन काल में मिल मजदूर रहा करते थे. साल 1930 में जब उन्हें विस्थापित किया गया तो उन लोगों ने मन्नत मानी कि अगर उनके सिर पर छत बची रहेगी तो वो गणपति की प्रतिमा स्थापित करेंगे. वो कहते हैं ना कि सच्चे दिल से भगवान से अगर कुछ मांगे तो वह चीज जरूर मिलती है. बस फिर क्या था बाप्पा ने उनकी मन्नत मान ली और उन लोगों को नई जगह पर नया आशियाना मिल गया, जिसके बाद वो हर साल यहां गणपति बाप्पा की स्थापना करने लगे और यहां विराजमान गणेश को मन्नत का गणेश कहा जाने लगा.
दर्शन के लिए यहां लगती है मन्नत की कतार
लालबाग के राजा को मन्नतों का राजा कहा जाता है, इसलिए गणेशोत्सव के दौरान उनके दरबार में दर्शन पाने के लिए भक्तों की दो तरह की कतार लगाई जाती है. एक कतार में श्रद्धालुओं को राजा के दर्शन मिलते हैं, जबकि दूसरी कतार को मन्नत की कतार कहा जाता है. अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूर-दराज से आनेवाले भक्त मन्नत की कतार में कई घंटों तक खड़े रहते हैं और बाप्पा के दर्शन कर मन्नतों को झोली भरकर वापस जाते हैं. हर साल बाप्पा के दर्शन पाने के लिए यहां करीब 5 किलोमीटर तक की लंबी लाइन लगती है. यह भी पढ़ें: Lalbaugcha Raja 2019 First Look Photos OUT: मुंबई गणेश चतुर्थी के प्रसिद्ध पंडाल से लालबागचा राजा 2019 की पहली तस्वीरें आयीं सामने
साल 1990 से नहीं बदला बाप्पा का रूप
बता दें कि लालबाग के राजा की प्रतिमा के रूप में साल 1932 से लेकर 1989 तक बदलाव आता रहा, लेकिन साल 1990 से उनके रूप रंग में कोई बदलाव नहीं लाया गया. इस पंडाल में विराजमान लालबाग के राजा की खासियत है कि उनकी प्रतिमा को कभी बाहर से खरीदकर नहीं लाया जाता है, बल्कि उसी स्थान पर उनकी प्रतिमा बनाई जाती है. गणेशोत्सव के दसवें दिन यानी अनंत चतुर्दशी के दिन बहुत धूमधाम से लालबाग के राजा की विसर्जन यात्रा निकाली जाती है और मुंबई के गिरगांव चौपाटी में उनका विसर्जन किया जाता है.
गौरतलब है कि लालबाग के राजा के दर्शन पाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से भारी तादात में श्रद्धालु आते हैं. यहां बाप्पा के दरबार में भक्तों को सैलाब उमड़ता है. भक्तों की भीड़ को संभालने के लिए भारी तादात में पुलिस बल और हजारों की संख्या में स्वयंसेवक दिन रात डटे रहते हैं. इसके साथ ही सुरक्षा व्यवस्था पर नजर बनाए रखने के लिए जगह-जगह पर सीटीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं.