Celebration of Ashadhi Ekadashi: मुंबई के चर्चगेट रेलवे स्टेशन पर लोगों ने मनाई आषाढ़ी एकादशी; 'जय हरी विट्ठल' से गूंजा परिसर;VIDEO
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मुंबई, महाराष्ट्र: आषाढ़ी एकादशी का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. पंढरपुर में वारकरी भी पहुंच चुके है. महाराष्ट्र में जगह जगह पर ये उत्सव मनाया जा रहा है.मुंबई के चर्चगेट पर भी ऐसा ही कुछ नजारा दिखाई दिया. जहांपर सैकड़ों की तादाद में शामिल लोगों ने कीर्तन और भजन किए. हाथों में मंजीरे लेकर लोग दिखाई दिए. इस दौरान 'जय हरी विट्ठल से पूरा स्टेशन परिसर गूंज उठा. बता दें कि हिंदू संस्कृति में जितने महत्व त्योहारों को दिया जाता है, उतना ही सम्मान व्रत-उपवासों को भी प्राप्त है. इनमें एकादशी, संकष्टी, प्रदोष और पूर्णिमा जैसे मासिक व्रत शामिल हैं.ये सभी धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माने जाते हैं.इन सभी एकादशियों में से आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को 'आषाढ़ी एकादशी' या 'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है.

चर्चगेट का वीडियो सोशल मीडिया X पर @WeUttarPradesh नाम के हैंडल से शेयर किया गया है. ये भी पढ़े:Devshayani Ekadashi 2025: आज से चातुर्मास शुरू, देवशयनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 5 गलतियां

चर्चगेट पर मनाई आषाढ़ी एकादशी

भगवान विष्णु को समर्पित होता है एकादशी व्रत

एकादशी व्रत विशेष रूप से भगवान श्रीविष्णु को समर्पित होता है. पंचांग के अनुसार, हर महीने दो बार एकादशी आती है.एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में. इस तरह एक वर्ष में 24 एकादशियां मनाई जाती हैं.

आषाढ़ी एकादशी सबसे पुण्यदायी एकादशी

इन सभी एकादशियों में से आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को 'आषाढ़ी एकादशी' या 'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है. यह दिन वार्षिक रूप से लाखों श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

आषाढ़ी एकादशी की तिथि और समय (2025)

हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में आषाढ़ी एकादशी की तिथि और समय इस प्रकार हैं:

तिथि आरंभ: 5 जुलाई 2025 (शनिवार), शाम 6:58 बजे

तिथि समाप्त: 6 जुलाई 2025 (रविवार), रात 9:14 बजे

व्रत रखने की तिथि (उदय तिथि के अनुसार): 6 जुलाई 2025 (रविवार)

पवित्र वारी और श्रद्धालुओं की आस्था

आषाढ़ी एकादशी के दिन विशेष रूप से महाराष्ट्र में पंढरपुर वारी का आयोजन होता है, जहां लाखों वारकरी पैदल यात्रा कर भगवान विठोबा रुक्मिणी के दर्शन करते हैं. यह पर्व केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और सामाजिक एकता का प्रतीक भी माना जाता है.