
Ashura 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने कहा है कि हजरत इमाम हुसैन (एएस) द्वारा किए गए बलिदान ने उनकी धार्मिकता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया है. रविवार को अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में पीएम मोदी (PM Modi) ने कहा कि उन्होंने लोगों को विपरीत परिस्थितियों में सच्चाई को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया. पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा- ‘हजरत इमाम हुसैन (एएस) द्वारा किए गए बलिदान ने उनकी धार्मिकता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया है.’ उन्होंने लोगों को विपरीत परिस्थितियों में सच्चाई को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया. वर्तमान में प्रधानमंत्री ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हैं, जहां वे 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और एक राजकीय यात्रा करेंगे.
आशूरा-ए-मुहर्रम (Ashoora-e-Muharram) का पवित्र उत्सव इस्लामी इतिहास में एक मार्मिक दिन (Poignant Day) है, जो पैगंबर मुहम्मद के सम्मानित पोते हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का सम्मान करता है. यह दिन अत्याचार के सामने साहस, बलिदान और दृढ़ता का पर्याय है. यह भी पढ़ें: Hazrat Imam Hussain Quotes: आशूरा पर अपनों को भेजें हजरत इमाम हुसैन के ये प्रेरणादायी हिंदी कोट्स और उनकी शहादत को करें याद
प्रधानमंत्री मोदी ने हजरत इमाम हुसैन के बलिदान को याद किया
The sacrifices made by Hazrat Imam Hussain (AS) emphasise his commitment to righteousness. He inspires people to uphold truth in the face of adversity.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 6, 2025
कर्बला की लड़ाई में सत्य, धार्मिकता और न्याय के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए लाखों लोग एकत्रित होते हैं. रविवार को पूरे देश में 10वां मुहर्रम मनाया जा रहा है, जिसे आशूरा कहा जाता है. मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है. दुनिया भर के शिया मुसलमान सार्वजनिक शोक मनाते हैं.
कश्मीर में शिया समुदाय ने शुक्रवार (4 जुलाई) को शोक के आठवें दिन शहर में पारंपरिक मार्ग पर मुहर्रम जुलूस निकाला. दसवें दिन के उपलक्ष्य में रविवार को भी जुलूस निकाले जाएंगे.
मुस्लिम कैलेंडर के मुहर्रम के पहले महीने का 10वां दिन इमाम हुसैन की शहादत का दिन है, जिन्हें 680 ई. में इराक के कर्बला क्षेत्र में फरात नदी के किनारे राजा यजीद की सेना ने मार डाला था. इमाम हुसैन के घिरे हुए परिवार, उनके परिवार और साथियों को फरात नदी के किनारे डेरा डाले रहने के बावजूद पीने का पानी नहीं दिया गया. यहां तक कि 6 महीने के अली असगर को भी यजीद की सेना ने पीने का पानी नहीं दिया. इमाम हुसैन ने सच्चाई पर बुराई की सर्वोच्चता को स्वीकार करने के बजाय खुद और अपने परिवार और साथियों की बलि देना चुना.
शिया मुसलमान जुलूस निकालकर और छाती पीटकर इस घटना को मनाते हैं, लेकिन मुहर्रम का शोक शिया और सुन्नी दोनों मुसलमानों के लिए समान रूप से पवित्र है.