Chhath Puja 2018: नि:संतानों को संतान का सुख प्रदान करती हैं छठी मैया, जानें इस पर्व से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
छठ पूजा 2018 (Photo Credits: Facebook)

Chhath Puja 2018:  कहा जाता है कि कार्तिक महीना भगवान विष्णु को अतिप्रिय है और इस महीने में कई बड़े त्योहार और पर्व भी मनाए जाते हैं. दिवाली के बाद कार्तिक मास में ही सूर्य की उपासना का पर्व छठ मनाया जाता है.  बता दें कि सूर्य देव की उपासना का महापर्व छठ पूजा 11 नवंबर से नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है और आज यानी 13 नवंबर की शाम को भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, जबकि अगली सुबह 14 नवंबर को सूर्योदय के समय अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन किया जाएगा. बता दें कि यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है.

दरअसल, दिवाली के छह दिन बाद चार दिनों की छठ पूजा का त्योहार शुरू हो जाता है. छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है, इसलिए इसे महाव्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान सूर्य के साथ-साथ छठी मैया की पूजा की जाती है. मान्यता है कि छठी मैया भगवान सूर्य की बहन हैं, लेकिन छठ व्रत कथा के मुताबिक वे प्रकृति के मूल प्रवृति के छठें अंश से उत्पन्न हुई हैं. चलिए जानते हैं आखिर कौन हैं छठी मैया और इस महापर्व को मनाने की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?

ब्रह्मा जी की मानस पूत्री हैं छठी मैया

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया भगवान सूर्य की बहन और ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं. वे नि:संतानों को संतान का सुख प्रदान करती हैं और जिनकी संतान हैं उन्हें दीर्घायु होने का वरदान देती हैं. इसलिए इन्हें विष्णुमाया तथा बालदा यानी पुत्र देने वाली भी कहा गया है. यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2018: चार दिनों तक मनाया जाएगा छठ का महापर्व, जानें तिथियां, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

कहा जाता है कि बच्चे के जन्म के छह दिन बाद जो छठी मनाई जाती है, उस दौरान भी इन्हीं की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म के पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, मां छठी को कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है और नवरात्रि के षष्ठी तिथि को इन्हीं की पूजा की जाती है.

छठ मनाने की परंपरा की शुरुआत

छठ पूजा भगवान सूर्य और छठी मैया की उपासना का पर्व है, इसलिए इस पूजा में किसी भी तरह की मूर्तिपूजा शामिल नहीं है. बता दें कि छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व के बारे में कई उल्लेख मिलते हैं. कहा जाता है कि छठ की पहली पूजा सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी. वहीं यह भी माना जाता है कि यह व्रत द्रौपदी ने भी रखा था. यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2018: छठ पूजा से पहले जुटा लें ये आवश्यक पूजन सामग्रियां, देखें पूरी लिस्ट

कर्ण ने की थी सबसे पहले सूर्य की पूजा 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा के महापर्व को मनाने की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. कहा जाता है कि कर्ण ने सबसे पहले सूर्य की उपासना की था, इसलिए उन्हें सूर्यपूत्र भी कहा जाता है. वे प्रतिदिन घंटों नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे, जिसकी वजह से वो महान योद्धा बने.

द्रोपदी ने भी रखा था यह व्रत

छठ पर्व से जुड़ी एक और कथा के मुताबिक, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी छठ का व्रत किया था. कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था, जिसके प्रभाव से पांडवों को सारा राजपाठ वापस मिल गया. यह भी पढ़ें: Chhath Puja wishes 2018: छठ पूजा के पर्व को बेहद खास बना देंगे ये शानदार मैसेजेस, इन्हें वॉट्सऐप व फेसबुक पर भेजकर दें सभी को शुभकामनाएं