![Maha Kumbh: साल 2025 के बाद कब होगा अगला महाकुंभ, कब और कहां होगा आयोजन, जानें कुंभ मेले के प्रकार Maha Kumbh: साल 2025 के बाद कब होगा अगला महाकुंभ, कब और कहां होगा आयोजन, जानें कुंभ मेले के प्रकार](https://hist1.latestly.com/wp-content/uploads/2024/12/59-108-380x214.jpg)
Maha Kumbh 2025: हर बारह साल पर कुंभ मेले (Kumbh Mela) का आयोजन होता है, जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व बताया जाता है और यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन होता है. इस बार 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज (Prayagraj) में महाकुंभ (Maha Kumbh) का आयोजन किया गया है, जिसमें लोगों की आस्था और विश्वास का सैलाब देखने को मिल रहा है. महाकुंभ का समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि पर होगा. महाकुंभ मेला 2025 को अपने अद्वितीय खगोलीय संरेखण (Unique Celestial Alignments) और ऐतिहासिक महत्व के कारण सभी कुंभ मेलों में सबसे शुभ माना जा रहा है. नियमित कुंभ मेलों के विपरीत, जो हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों-प्रयागराज (Prayagraj), हरिद्वार (Haridwar), उज्जैन (Ujjain) और नासिक (Nasik) में होता है, महाकुंभ मेला एक दुर्लभ घटना है, जो हर 144 साल में एक बार होती है.
साल 2025 के बाद अगला महाकुंभ 2169 तक नहीं होगा, जिससे यह आयोजन भक्तों के लिए असाधारण रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. महाकुंभ मेला हर 12 साल पर ही क्यों लगता है? अगला महाकुंभ कब और कहां लगेगा, इसके कितने प्रकार हैं और इसका धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व क्या है? आइए विस्तार से जानते हैं.
क्यों लगता है कुंभ मेला?
कुंभ मेले का आयोजन खासतौर पर देश के चार पवित्र स्थानों पर होता है, जिनमें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक शामिल है. ऐसा माना जाता है कि जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तब इन चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं, इसलिए इन स्थानों को पवित्र माना जाता है और इन जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. यह भी पढ़ें: Prayagraj Mahakumbh Mouni Amavasya 2025: महाकुंभ में अब हालात सामान्य, 11 बजे शुरू होगा अखाड़ों का शाही स्नान, अब तक 3 करोड़ श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी
कुंभ मेले का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
कुंभ मेले का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्म शुद्धि का अवसर प्रदान करना है. माना जाता है कि इस मेले के दौरान पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. कुंभ मेला साधु-संतों, गुरुओं और भक्तों के मिलन का एक बड़ा केंद्र है, जहां लोग भक्ति, ज्ञान और सेवा का आदान-प्रदान करते हैं.
इसके विपरीत, नियमित कुंभ मेला हर 12 साल में चार स्थानों आयोजित किया जाता है और यह महत्वपूर्ण है, लेकिन इसमें महाकुंभ के समान आध्यात्मिक शक्ति नहीं होती है, जबकि महाकुंभ को विशेष रूप से शुभ माना जाता है और इस दौरान किए गए अनुष्ठानों का कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है. इस दौरान कई प्रमुख स्नान होते हैं, जिन्हें शाही स्नान या अमृत स्नान के रूप में जाना जाता है.
महाकुंभ साधु-संन्यासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ में स्नान करने से 1000 अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है. साधु-संत इस समय प्रभु का ध्यान करते हैं और मोक्ष पाने की कामना से महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के लिए जाते हैं.
हर 12 साल में क्यों लगता है कुंभ मेला?
कुंभ मेला का आयोजन खगोलीय घटनाओं के आधार पर होता है. ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेला आयोजित होता है. बृहस्पति को अपनी कक्षा में 12 साल का समय लगता है, इसलिए हर 12 साल में एक बार कुंभ मेले का आयोजन होता है. हिंदू ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां होती हैं, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मकर राशि में आते हैं, तब कुंभ मेला लगता है.
2025 के बाद अगला महाकुंभ कब लगेगा?
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, प्रयागराज में अब अगला महाकुंभ 2169 में लगेगा. महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल के अंतराल पर होता है, जिसके चलते इसका धार्मिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है. इस बीच कुंभ, अर्ध कुंभ और पूर्ण कुंभ भी हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में होते रहेंगे. इसके बाद अगला कुंभ साल 2027 में नासिक में लगेगा, साल 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ होगा और साल 2030 में प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन होगा. यह भी पढ़ें: Mahakumbh Stampede Video: महाकुंभ में मची भगदड़ में कई श्रद्धालुओं की मौत की आशंका, कई जख्मी, PM मोदी ने एक घंटे के अंदर दूसरी बार सीएम योगी से की बात
कुंभ मेले के प्रकार
कुंभ मेला विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, हर कुंभ मेले का अपना एक अलग महत्व होता है और उससे जुड़ी मान्यताएं भी अलग-अलग होती हैं.
महाकुंभ मेला: यह सबसे पवित्र मेला है, जो हर 144 साल में एक बार आता है, विशेष रूप से प्रयागराज में. ऐसा माना जाता है कि यह आध्यात्मिक गुणों को बढ़ाता है और लाखों भक्तों को आकर्षित करता है.
पूर्ण कुंभ मेला: हर 12 साल में आयोजित होने वाला यह मेला चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगता है. यह नदियों में पवित्र स्नान के लिए बड़ी सभाओं द्वारा चिह्नित है.
अर्ध कुंभ मेला: हर 6 साल में अर्ध कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज और हरिद्वार में होता है, जो पूर्ण कुंभ मेलों के बीच मध्य बिंदु के रूप में कार्य करता है.
माघ मेला: इसे छोटा कुंभ के तौर पर भी जाना जाता है, जिसका आयोजन हर साल माघ महीने (जनवरी-फरवरी) के दौरान प्रयागराज में किया जाता है और यह मेला पवित्र स्नान के लिए कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है.