यूक्लिड टेलिस्कोप ने अंतरिक्ष में अपना पहला आइंस्टाइन रिंग खोज निकाला है जिस से ब्रह्मांड के राज जानने में मदद मिलेगी.यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के अंतरिक्ष यान ने अपना पहला मजबूत गुरुत्वाकर्षण लेंस खोज लिया है. एजेंसी ने ब्रह्मांड का अब तक का सबसे सटीक 3डी मैप बनाना शुरू किया था.
पहली बार यूक्लिड टेलिस्कोप ने अंतरिक्ष में अपना पहला आइंस्टाइन रिंग खोज निकाला है, जो एक सपने के पूरे होने जैसा है. खगोलविदों ने हाल ही में बताया कि उन्होंने यूरोप के यूक्लिड अंतरिक्ष टेलिस्कोप के जरिए पास की गैलेक्सी के चारों ओर एक गोल रोशनी का घेरा देखा है.
इस रोशनी के घेरे के जरिए वैज्ञानिक पता लगा पाएंगे कि इस 59 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर बानी आकाशगंगा में कितना ‘डार्क मैटर' मौजूद है.
कहां पाया गया आइंस्टाइन रिंग?
आइंस्टाइन रिंग भी कहा जाने वाला रोशनी का घेरा (हैलो) पृथ्वी से 59 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर बनी एक गैलक्सी के इर्दगिर्द पाया गया है. सुनने में तो यह बहुत दूर लग रहा है लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो ब्रह्मांड का विस्तार देखते हुए यह दूरी उतनी भी नहीं है.
जर्नल ऑफ 'एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स' में बताया गया कि खगोलविद इस गैलेक्सी के बारे में एक सदी से भी अधिक समय से जानते हैं और इसलिए जब यूक्लिड टेलिस्कोप से इस रोशनी का पता चला तो वे आश्चर्यचकित रह गए.
क्या होता है आइंस्टाइन रिंग
आइंस्टाइन रिंग का नाम मशहूर भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन के नाम पर पड़ा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसके कुछ हिस्से 1915 में दी गई आइंस्टाइन की जनरल रिलेटिविटी की थ्योरी ‘गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग' से आते हैं.
इस प्रक्रिया में होता ये है कि गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग के परिणामस्वरूप, एक एकल बैकग्राउंड में प्रकाश उत्सर्जित करने वाला पिंड यूक्लिड जैसी दूरबीन द्वारा ली गई एक ही तस्वीर में कई स्थानों पर दिखाई दे सकता है. और फिर इनसे आइंस्टाइन रिंग, आइंस्टाइन क्रॉस और यहां तक कि दुर्लभ आइंस्टीन जिगजैग जैसे दिखने वाले आकार भी बन सकते हैं.
यह आकाशगंगा जिसका नाम एनजीसी 6505 है, उसका गुरुत्वाकर्षण लेंस यूक्लिड टेलिस्कोप ने इत्तेफाक से ढूंढ लिया था, वह भी 2023 के लॉन्च के 2 महीने बाद.
आइंस्टाइन रिंग के पता लगने का फायदा
अमूमन जो आकाशगंगा पृथ्वी के करीब होती हैं, वे इतनी मजबूत नहीं होतीं कि बैकग्राउंड स्रोतों से इतना प्रकाश उत्सर्जित कर दें कि कई सारे आकार साफ दिखने लगें. लेकिन जब आकाशगंगा के बीचोबीच बहुत सारा मैटर होता है तब ऐसा नहीं होता.
यूक्लिड द्वारा देखी गई आइंस्टाइन रिंग बनाने वाली रोशनी कहीं ज्यादा दूर की आकाशगंगा से आ रही है. यह इतनी दूर है कि लगभग 4.4 अरब सालों के बाद हम तक पहुंची है. यानी जब यह पहली बार उत्सर्जित हुई होगी, उस समय सौर मंडल लगभग 20 करोड़ वर्ष पुराना ही रहा होगा.
एक बयान में टीम के सदस्य और नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के शोधकर्ता मासिमो मेनेगेटी कहते हैं, "एनजीसी 6505 की तरह पूरे आइंस्टाइन रिंग का बनना एक दुर्लभ घटना है क्योंकि इसके लिए जरूरी है कि लेंस की आकाशगंगा और स्रोत वाली हमारी दूरबीन के साथ पूरी तरह से एक ही लाइन में हों. इन कारणों से, जरूरी नहीं कि यूक्लिड को ऐसे कई और आकार मिलें.”
इसका अर्थ यह है की बैकग्रॉउंड से आ रहे प्रकाश का सीधा संबंध गुरुत्वाकर्षण लेंस के मास से है. इसका मतलब है कि इस आइंस्टाइन रिंग का इस्तेमाल उस आकाशगंगा के मास के वितरण की जांच के रूप में किया जा सकता है. इसमें डार्क मैटर का मास भी शामिल होगा जिस पर सभी विकसित और विकासशील देशों में गहन अध्ययन हो रहा है.
‘डार्क मैटर का जासूस'
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के अंतरिक्ष यान को जुलाई 2023 में लॉन्च किया गया था. इसने ब्रह्मांड का अब तक का सबसे सटीक 3डी मैप बनाना शुरू किया है और यह पहली बार है कि इसे इतना मजबूत गुरुत्वाकर्षण लेंस दिखा है जिसने एक बेहतरीन गोलाकार का रोशनी वाला घेरा बना दिया है.
यह मैप ब्रह्मांड के 10 अरब साल पुराने इतिहास के बारे में पता लगा सकेगा जिससे वैज्ञानिकों को डार्क यूनिवर्स की गुत्थियां सुलझाने में मदद मिलेगी. इसमें डार्क मैटर और डार्क एनर्जी भी शामिल हैं. इसलिए यूक्लिड टेलिस्कोप को डार्कयूनिवर्स डिटेक्टिव भी कहा जाता है.
बहुत दुर्लभ है यह आकार
इस पर काम कर रहे जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स में कॉनर ओ'रिओर्डन कहते हैं, "सभी स्ट्रॉन्ग लेंस यानी ऐसे घेरे खास होते हैं क्योंकि ये बहुत कम ही पाए जाते हैं और इनसे हमें वैज्ञानिक तौर पर काफी कुछ समझने को मिलता है. लेकिन ये वाला और भी ज्यादा खास है क्योंकि ये पृथ्वी के बहुत करीब पाया गया है और इसकी स्थिति इसे और भी ज्यादा सुंदर बनाती है.”
यूक्लिड को 2023 में फ्लोरिडा से रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया था. ब्रह्मांड में डार्क एनर्जी और डार्क मैटर का पता लगाने के मिशन को इसकी मदद से आगे बढ़ाया जा रहा है.
एसके/वीके (एपी)













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