Ayodhya Verdict: 4 महीने पहले दुनिया को छोड़ने वाले रजनीकांत सोमपुरा ने 21 साल तराशे थे पत्थर, राम मंदिर बनाने का था सपना
रजनीकांत सोमपुरा (Photo Credits: IANS)

21 साल तक, उन्होंने अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर के निर्माण की आस में लाल पत्थरों पर नक्काशी की, लेकिन आज जब अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया तो वह इस दिन को देखने के लिए अब दुनिया में नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाए जाने से चार महीने पहले वह इस दुनिया से रुखसत कर गए.

53 साल के रजनीकांत सोमपुरा (Rajinikanth Sompura) अपने ससुर अन्नुभाई सोमपुरा संग काम करने के लिए अयोध्या आए थे और 21 साल तक कारसेवकपुरम में कार्यशाला में उन्होंने काम किया था. अन्नुभाई 1990 से कार्यशाला के पर्यवेक्षक थे, जब मंदिर का काम पहली बार शुरू हुआ था. जुलाई में रजनीकांत की मृत्यु हो गई और उनकी सहायता करने वाले मजदूर भी गुजरात वापस चले गए.

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कारसेवकपुरम में काम करने वाले एक स्थानीय निवासी महेश ने कहा, "रजनीकांत एक कुशल कारीगर थे और वह शानदार नक्काशी करते थे. अब जब काम पूरी गति से शुरू होगा, तो हम सभी को सोमपुरा की याद आएगी. जो राम मंदिर बनाया जाएगा, उसमें उनका योगदान बहुत बड़ा है. और हम इसे याद रखेंगे."

उन्होंने कहा कि जब 1990 में पत्थर की नक्काशी शुरू हुई थी, तब लगभग 125 नक्काशीकार थे. हाल के वर्षों में यह संख्या घटकर लगभग 50 हो गई. विव हिंदू परिषद (विहिप) के वरिष्ठ नेता पुरुषोत्तम नारायण सिंह ने कहा कि 1984 में विहिप द्वारा मंदिर के लिए 'शिलापूजन' (नींव रखने की रस्म) की गई थी. भक्तों ने प्रत्येक को 1.25 रुपये दिए और मंदिर के निर्माण के लिए 8 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हुई.