सनातन धर्म में मां दुर्गा के तमाम रूपों में पूजा अनुष्ठान किया जाता है. हर रूप की अपनी व्याख्या, अपना महत्व होता है. स्कंद पुराण के अनुसार शीतला देवी भी दुर्गा जी का दिव्य स्वरूप हैं. इनकी विशिष्ट पूजा-अर्चना प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन की जाती है. देश के कुछ हिस्सों में इसे बासोड़ा पूजन के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष शीतलाष्टमी 25 मार्च को मनाई जाएगी. आइये जानें इस दिन का महात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त.
शीतला अष्टमी का महात्म्य!
मां के एक हाथ में झाड़ू स्वच्छता का प्रतीक है, वहीं दूसरे हाथ में मौजूद मटके में सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है, लेकिन यहां इसे जल संचय से भी जोड़ कर देखा जाता है. गर्मी में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है. स्कंद पुराण में अनुसार माता शीतला को चेचक, खसरा जैसे रोगों से बचाने वाली देवी बताया गया है. खासकर बच्चों के लिए यह व्रत और पूजा उनकी मां करती हैं, ताकि इन बीमारियों से उन्हें सुरक्षित रखा जा सके एवं घर में खुशियां तथा धन धान्य बना रहे. बहुत से घरों में चैत्र मास की शुरुआत होते ही महिलाएं साफ-सफाई, एवं नीम के पत्तों का इस्तेमाल करना शुरु कर देती हैं. इससे शीतलता बनी रहती है. यह भी पढ़ें : Shaheed Diwas Quotes 2022: शहीद दिवस पर ये Quotes, WhatsApp Stickers और HD Wallpapers के जरिए भेजकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को करें याद
शीतला देवी के व्रत एवं पूजा का विधान
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला अष्टमी के दिन घर में अग्नि नहीं जलाई जाती है. इस दिन शीतला माता की पूजा के लिए एक दिन पूर्व ही पूडी और आटे का हलवा बना लेते हैं. लेकिन इससे पहले पूरे घर, रसोई एवं पूजा स्थल की पानी से धुलाई की जाती है. स्नान करने के बाद इस मंत्र का जाप कर व्रत एवं पूजन का संकल्प लेना चाहिए.
'मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये'
सप्तमी के दिन मध्य रात्रि के बाद मुहूर्त के अनुसार माता शीतला की विधि-विधान से धूप-दीप, गंध एवं पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. सात जगह पर दो-दो पूडियां, हलवा, पानी में भिगोया हुआ चना एवं लौंग रखकर माता को अर्पित करे. भोग के समय शीतला स्तोत्र का पाठ करें. अंत में जाने-अंजाने में हुई गलतियों के लिए छमा याचना करें. माँ को चढ़ाया गया प्रसाद घर के सदस्यों में वितरित करें. ध्यान रहे प्रसाद खाने वाले को इस दिन, सामिष भोजन, प्याज, लहसुन अथवा मद्यपान इत्यादि नहीं करनी चाहिए.
बासी भोजन चढ़ाने का वैज्ञानिक तर्क?
वैज्ञानिक नजरिये से देखा जाये तो शीतलाष्टमी के बाद गरमी अपने चरम पर पहुंचने लगती है. ऐसे में बासी खाना खाना सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. पूजा में बासी भोजन चढ़ाने के पीछे यह तर्क है कि इस दिन आप आखिरी बार बासी भोजन खा सकते हैं, इसके बाद से बासी भोजन बिल्कुल बंद कर देना चाहिए. बासी खाना एक प्रतीक है कि इस दिन के बाद बासी खाना खाना वर्जित हो जाता है.
शीतलाष्टमी का शुभ मुहूर्त
अष्टमी प्रारंभ: 12.09 AM (25 मार्च, शुक्रवार 2022) से
अष्टमी समाप्त: 10.04 PM (25 मार्च, शुक्रवार 2022) तक