हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है. धर्म शास्त्रों में यह तिथि सप्तऋषि के पांच महर्षियों वशिष्ठ, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज, अत्रि एवं कश्यप को समर्पित किया गया है. इन महर्षियों ने पृथ्वी से बुराई एवं अत्याचार को खत्म करने के लिए अपने जीवन का बलिदान किया है, और मानव जाति में सुधार लाने के तमाम कार्य किये. इस दिन, महिलाएं अपने कर्मों और अशुद्धियों को धोने के लिए नदी अथवा पवित्र सरोवर में स्नान करती हैं. इस दिन संतों की पूजा करना शुभ माना जाता है. मान्यतानुसार यह व्रत करने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाता है. आइये जानते हैं ऋषि पंचमी के बारे में विस्तार से..
ऋषि पंचमी पर पूजा-अनुष्ठान!
भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यक्रिया एवं स्नानादि के पश्चात सप्तऋषियों का ध्यान करते हुए व्रत एवं अनुष्ठान का संकल्प लें. ऋषि पंचमी पर व्रत एवं अनुष्ठान करके मनुष्य स्वयं को पूरी तरह पवित्र करता है. इस दिन कुछ श्रद्धालु उपमर्गा जड़ी बूटी से दांत साफ करते हैं और डाटाबर्न जड़ी बूटी को पानी में मिलाकर पवित्र स्नान करते हैं. ये जड़ी बूटियां शरीर को शुद्ध करती हैं. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर एक साफ चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं. इस पर सप्तऋषियों अथवा अपने गुरू की तस्वीर रखें. धूप दीप प्रज्वलित करें औऱ निम्न मंत्र का निरंतर जाप करते हुए पूजा करें.
“ॐ नमः शिवाय”, “ॐ नमो नारायणाय
सर्वप्रथम जल एवं पुष्प चढ़ाएं. प्रसाद में फल एवं मिष्ठान के साथ
मक्खन, तुलसी, कच्चा दूध एवं दही का पंचामृत अर्पित करें. पूजा के पश्चात इन सप्तऋषियों का वंदना कर आशीर्वाद प्राप्त करें.
ऋषि पंचमी 2023 तिथि एवं शुभ मुहूर्त
भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी प्रारंभः 01.43 PM (19 सितंबर 2023, बुधवार)
भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी समाप्त 02.16 PM (20 सितंबर 2023, गुरूवार)
उदया तिथि के अनुसार 20 सितंबर 2023 को ऋषि पंचमी मनाई जाएगी.
पूजा का शुभ मुहूर्तः 11,01 AM से 01.28 PM तक
ऋषि पंचमी की पौराणिक कथा
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, सप्त ऋषियों ने अपने ज्ञान और आध्यात्मिक अंतदृष्टि से मानव सभ्यता के पाठ्यक्रम को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. एक दिन सप्त ऋषि नित्य कर्म से निवृत्त हो रहे थे, तभी वहां एक कुत्ता आ गया. अपने कर्मकांड में वह इतने लीन थे कि एक ऋषि का पैर कुत्त की पूंछ पर पड़ गया. ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्होंने कुत्ते का अनादर होने के लिए खुद को दोषी महसूस किया. सप्त ऋषियों ने अपने पापों और अशुद्धियों से खुद को शुद्ध करने का फैसला किया. उन्होंने कई दिनों तक उपवास और तपस्या की. तत्पश्चात उन्हें पवित्रता और मोचन प्राप्त हुआ. इस तरह ऋषि पंचमी का पर्व शुद्धता एवं मोचन के लिए मनाया जाता है.